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मित्र

कई कोटि खाणी अरु खंड ॥ कई कोटि अकास ब्रहमंड ॥
कई कोटि होए अवतार ॥ कई जुगति कीनो बिसथार ॥

 

ये बहुत समय पहले की स्कूल के चार करीबी दोस्तों की है जिन्होंने बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई एक ही स्कूल में की है।

उस समय यह शहर का एकमात्र Luxury Hotel था। बारहवीं कक्षा की परीक्षा के बाद उन चारो ने निर्णय लिया कि हमें उस होटल में जाकर चाय-नाश्ता करना चाहिए।

उन चारों ने बहुत मुश्किल से चालीस रुपये जमा किये थे, रविवार का दिन था और साढ़े दस बजे साइकिल से होटल पहुँच गये।

चाय-नाश्ता करते हुए रोहन, जय, राम और रवि बातें करने लगे। उन चारों ने एकमत से तय किया कि चालीस साल बाद हम 1 अप्रैल को इसी होटल में दोबारा मिलेंगे।

तब तक हम सभी को खूब मेहनत करनी चाहिए, यह देखना दिलचस्प होगा कि किसने कितनी प्रगति की है। जो दोस्त उस दिन सबसे बाद में होटल में आएगा, उसे उस समय का होटल का बिल चुकाना होगा।

ये सब बात उन्हें चाय-नाश्ता परोसने वाला वेटर कालू सुन रहा था, उसने कहा कि अगर मैं यहां रुकूंगा तो इसी होटल में आप सबका इंतजार करूंगा। आगे की पढ़ाई के लिए चारों अलग हो गए।

आगे की पढ़ाई के लिए रोहन शहर छोड़कर अपने चाचा के पास चला गया, जय अपनी आगे की पढ़ाई के लिए कही ओर चला गया, राम और रवि को शहर के अलग-अलग कॉलेजों में दाखिला मिल गया। अंततः राम ने भी नगर छोड़ दिया।

दिन, महीने, साल बीत गए।

चालीस वर्षों में उस शहर में बहुत सारा परिवर्तन आया, शहर की आबादी बढ़ी, सड़कों, फ्लाईओवरों ने महानगर की शक्ल ही बदल दी।

अब वह होटल फाइव स्टार होटल बन गया था, वेटर कालू अब कालू सेठ बन गया और इस होटल का मालिक बन गया।

चालीस साल बाद, निर्धारित तिथि 01 अप्रैल को दोपहर के समय एक लग्जरी कार होटल के दरवाजे पर पहुंची। रोहन कार से बाहर निकला और पोर्च की ओर चलने लगा, रोहन के पास अब तीन आभूषण शोरूम हैं।

रोहन होटल मालिक कालू सेठ के पास पहुंचा, दोनों एक दूसरे को देखते रहे। कालू सेठ ने कहा कि रवि सर ने एक महीने पहले आपके लिए एक टेबल बुक की थी।

रोहन दिल से खुश था कि वह चारों में से पहला था, इसलिए उसे आज का बिल नहीं देना पड़ेगा, और पहले आने के कारण वह अपने दोस्तों का मज़ाक उड़ाएगा।

एक घंटे में जय आ गया, जय शहर का बड़ा राजनेता और बिजनेसमैन बन गया था। अपनी उम्र के हिसाब से वह अब एक वरिष्ठ नागरिक जैसा दिखता था।

अभी दोनों बातें कर रहे थे और बाकी दोस्तों का इंतजार कर रहे थे, आधे घंटे में तीसरा दोस्त राम आ गया। उनसे बात करने पर दोनों को पता चला कि राम व्यापारी बन गये हैं।

तीनों दोस्तों की नजर बार-बार दरवाजे पर जाती थी, रवि कब आएगा? इसके बाद कालू सेठ ने कहा कि रवि सर का मैसेज आया है, आप लोग चाय-नाश्ता शुरू करें, मैं आ रहा हूं।

चालीस साल बाद एक-दूसरे से मिलकर तीनों बहुत खुश हुए। घंटों मजाक चलता रहा, लेकिन रवि नहीं आये। कालू सेठ ने कहा कि फिर रवि सर का मैसेज आया है, आप तीनों अपना पसंदीदा मेनू चुनकर खाना शुरू करें।

खाना खाने के बाद भी जब रवि नहीं आए तो उन्होंने बिल मांगा तो तीनों को जवाब मिला कि ऑनलाइन बिल का भुगतान कर दिया गया है।

शाम आठ बजे एक युवक कार से उतरा और भारी मन से जाने की तैयारी कर रहे तीनों दोस्तों के पास पहुंचा, तीनों उस आदमी को देखते रहे।

युवक कहने लगा, मैं आपके दोस्त का बेटा यशवर्धन हूं, मेरे पिता का नाम रवि है। पिताजी ने मुझे आज आपके आगमन के बारे में बताया, वह इस दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन पिछले महीने एक गंभीर बीमारी के कारण उनका निधन हो गया।

उन्होंने मुझसे कहा था कि देर से मिलना, अगर मैं जल्दी चला गया तो उन्हें दुख होगा, क्योंकि मेरे दोस्त हंसेंगे नहीं जब उन्हें पता चलेगा कि मैं इस दुनिया में नहीं हूं, वे एक-दूसरे से मिलने की खुशी खो देंगे।

इसलिए उन्होंने मुझे देर से आने का आदेश दिया। उन्होंने मुझसे अपनी ओर से तुम्हें गले लगाने के लिए भी कहा, यशवर्धन ने अपने दोनों हाथ फैला दिए।

आसपास के लोग उत्सुकता से यह दृश्य देख रहे थे, उन्हें लगा कि उन्होंने इस युवक को कहीं देखा है। यशवर्धन ने कहा कि मेरे पिता शिक्षक बने और मुझे पढ़ाकर कलेक्टर बनाया, आज मैं इस शहर का कलेक्टर हूं।

सभी आश्चर्यचकित रह गए, कालू सेठ ने कहा कि अब चालीस साल बाद नहीं, बल्कि हर चालीस दिन में हम अपने होटल में बार-बार मिलेंगे और हर बार मेरी तरफ से एक शानदार पार्टी होगी।

अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते रहिए, अपनों से मिलने के लिए सालों का इंतजार मत कीजिए, पता नहीं कब बिछड़ने का वक्त आ जाए और हमें पता भी न चले।

शायद हमारे बारे में भी यही सच है, हम अपने कुछ दोस्तों को गुड मॉर्निंग, गुड नाइट आदि के मैसेज भेजकर अपने जिंदा होने का सबूत देते हैं।

जिंदगी एक रेलगाड़ी की तरह है, जब स्टेशन आएगी तो उतर जाएगी। केवल धुंधली यादें ही शेष हैं। परिवार के साथ रहें, जीवित रहने की खुशी महसूस करें..

सिर्फ होली या दीपावली के दिन ही नहीं बल्कि सभी मौकों पर गले मिलें और हर दिन मिलें, इससे दोस्ती और मजबूत होगी।

खुद पर विश्‍वास

जीअ जंत्र सभ ता कै हाथ ॥
दीन दइआल अनाथ को नाथु ॥

ये कहानी ऐसे लोगो के लिए है जो जल्‍द ही लोगों कि बातों में आ कर अपना लक्ष्‍य बदल देते है और असफल हो जाता है।

एक गांव में एक प्रसिद्ध पंडित रहता था। उस पंडित का नाम गंगाराम था। वह पंडित जिस गांव में रहता था उस गांव के प्रसिद्ध मंदिर में वो पूजा करता था। गंगाराम सिर्फ पूजा ही नहीं बल्कि सभी शादियां व सभी धार्मिक कार्य वही कराता था।

गंगाराम इतना प्रसिद्ध था कि आस-पास के सभी गांवो में उसकी चर्चा हुआ करती थी और सभी लोग उस पंडित का बहुत आदर किया करते थे।

गंगाराम पंडित इतने प्रसिद्ध थे कि सभी लोग उन्‍ही से अपना धार्मिक कार्य कराने के लिए दूर-दूर गांव से बुलाया करते और अच्‍छा दान भी दिया करते थे।

एक बार पंडित जी अपने गांव से दूसरे गांव शादी कराने के लिए गए थे। वह गांव पंडित जी के गांव से 3-4 गांव छोड कर था। पंडित जी जब शादी कराने के बाद वहां से लौट रहे थे तो उन्‍हे एक बकरी भेंट स्‍वरूप दी गई।

गंगाराम बकरी को लेकर पैदल अपने रास्‍ते धीरे-धीरे लौट रहे थे क्‍योंकि उनका गांव 4 गांव के बाद था। जिस रास्‍ते से गंगाराम लौट रहे थे उस रास्‍ते पर चार ठग रहते थे और वह आने जाने वाले लोगों को लूटा करते थे।

जब उन चार ठगों ने पंडित जी को देखा तो बोलने लगे आज तो सुबह से कोई नहीं मिला है और हमारे खाने पीने की व्‍यवस्‍था भी नहीं हुई। चलो आज हम इस पंडित को ही लूट लेते हैं और इनसे ये बकरी चुरा लेते हैं।

किन्तु उन में से एक ठग बोलता है अगर पंडित जी को हमने मारा तो सारे गांव वाले हमें छोडेंगे नहीं और हमें बहुत पाप लगेगा। ये चारो ठग पंडित जी से बकरी छुडाने कि एक नई तरकीब निकालते हैं और चारो ठग अपने अपने काम पर लग जाते हैं।

गंगाराम जब पहले गांव पहुंचने वाले होते हैं तो वहां पहला ठग उन्‍हें मिलता है। ये ठग एक साधारण व्‍यक्ति कि तरह पंडित जी से राम-राम करता है और उनके पैर पड़ने के लिए झुकता है, लेकिन वह रुक जाता है और पंडित जी से बोलता है। पंडित जी आप तो बहुत ज्यादा प्रसिद्ध पंडित हैं और लोग आप कि बहुत इज्‍जत करते हैं ,लेकिन ये क्या आप इस गधे के साथ क्‍या कर रहे हैं?

पहले ठग की बात सुनकर पंडितजी गुस्‍सा हो जाते हैं और बोलते हैं अरे मूर्ख ये गधा नहीं ये बकरी है बकरी। लेकिन वह ठग पंडित जी से कहता है की ये बकरी नहीं गधा है, आपको किसी ने बेवकूफ बनाया है।

पंडित जी फिर गुस्‍से से कहते हैं कि तू ही मूर्ख है, यह गधा नहीं बकरी है , और इतना बोलकर पंडित जी आगे निकल जाते है। पंडित जी आगे तो निकल गए लेकिन इस घटना की वजह से पंडितजी के दिमाग में एक हल्‍का सा भ्रम हो गया।

धीरे-धीरे पंडित जी आगे बढ़ ही रहे थे और वो दूसरे गांव पहुंचने ही वाले थे कि उन्‍हे वहां दूसरा ठग मिला जो कि बिल्‍कुल साधारण व्‍यक्ति कि तरह वहां खड़ा था। वो दूसरा ठग पंडित जी से राम-राम करता है और उनके पैर पड़ने के लिए झुकता है, लेकिन वह भी पहले ठग की तरह रुक जाता है।

पंडित जी उस दूसरे ठग को ऐसे रुकते हुए देखकर पूछते है क्‍या हुआ? रुक क्‍यूं गए? तो वह बोलता है पंडित जी आप इस गधे को साथ लेकर क्‍यूं घूम रहे हो इससे आप खंडित हो जाओगे और लोग आपके बारे में क्‍या सोचेंगे, इससे बेहतर आपके लिए यही है की आप इस गधे को भगा दो।

इस दूसरे ठग की बात सुनकर पंडित जी को बहुत गुस्सा आता है और बोलते हैं तुम मूर्ख हो दिखाई नहीं देता यह बकरी है और तुम बोल रहे हो गधा है।

दूसरा ठग बोलता है कि पंडित जी आप को किसी ने पागल बना दिया यह बकरी नहीं यह तो गधा है, और ये आपके साथ रहेगा तो आपकी क्‍या इज्‍जत रह जाएगी।

यह सुनते ही पंडित जी सोचने लगे कि यह क्‍या बोल रहा है मैं तो बकरी लाया हूं पर ये सब इसे गधा क्‍यूं बोल रहे हैं, कहीं मैं सच में गधे को लेकर तो नहीं घूम रहा हूं। अब पंडित जी सोच में पड़ जाते है और वो ठग वहा से चला जाता है और पंडित जी भी आगे बढ़ने लगते हैं।

पंडित जी के दिमाग में अभी भी यही बात चल रही थी की ये बकरी है या गधा।

जब पंडित जी तीसरे गांव में पहुंचने वाले होते हैं तो उन्‍हें वहां तीसरा ठग मिलता है। वो भी पंडित जी से राम-राम करता है और पैर पड़ने के लिए झुकता है लेकिन रुक जाता है, तो पंडित जी पूछते हैं क्‍या हुआ, तो वह ठग पंडित जी से बोलता है पंडित जी बाकी सब तो ठीक है आप इस गधे को साथ में लेकर क्‍यूं घूम रहे हो?

तीसरे ठग की बात सुन कर पंडित जी कहते हैं कि मैं इस गधे को गांव के बाहर छोडने जा रहा हूं, मुझे रास्‍ते में दयनीय हालत में मिला था और पंडित जी वहां से निकल जाते हैं।

ये तीन ठगो की बात सुनकर पंडित जी का विश्‍वास खुद से उठ जाता है और उन्‍हें लगता है कि लोग सही बोल रहे हैं और मैं गलत हूं। लेकिन फिर सोचते हैं कि मैं सही हूं।

इसी तरह उनका विश्‍वास खुद पर से गिरने लगता है और सोचते हैं कि मैं अपने गांव पहुंचने वाला हूं अगर ये बकरी नहीं हुई और गधा हुआ तो लोग मेरे बारे में क्‍या सोचेंगे?

इन्ही सब विचारो के चलते पंडित जी चौथे गांव पहुंचने वाले होते हैं कि उन्‍हें चौथा ठग मिलता है और वो भी पंडित जी से राम-राम करता है और पैर पड़ने के लिए झुकता है लेकिन वो भी रुक जाता है, पंडित जी इस चौथे ठग से पूछते हैं क्‍या हुआ, तो वह ठग पंडित जी से कहता है की पंडित जी आप इस गधे को साथ में लेकर क्‍यूं चल रहे हो?

पंडित जी उस चौथे ठग से कहते हैं कि मैं इस गधे को गांव के बाहर छोडने ही वाला था, तो वह ठग बोलता है कि पंडित जी यह गधा आपको शोभा नहीं देता ,लोग आपके बारे में क्‍या सोचेंगे? आप इसे मुझे दे दीजिए मैं इसे बाहर छोड आउंगा।

इसी के साथ पंडित जी अपने आप पर विश्‍वास को खो देते हैं और उस बकरी को गधा समझ कर उस ठग को दे देते हैं और अपनी बकरी को छोड कर आ जाते हैं।

उन चारो ठगो की ये तरकीब काम कर जाती है और वह पंडित जी से बकरी छुडा लेते हैं और उसे बेचकर पैसा कमा लेते हैं।

खुद पर विश्‍वास रखना चाहिए। दूसरा व्‍यक्ति क्‍या कह रहा है उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए क्‍योंकि रास्‍ता भटकाने वाले बहुत मिलेंगे। इस कहानी में भी वही हुआ है अगर पंडित जी को खुद पर पूरा विश्‍वास होता कि हां ये बकरी ही है तो वह अपनी बकरी को ठगों को नहीं देते। इसी तरह हमें भी अपने ऊपर विश्‍वास रखना होगा।

कायर

आपे बीना आपे दाना ॥
गहिर ग्मभीरु गहीरु सुजाना ॥

एक आदमी जिसे कायर का बिरुद मिला हुआ था वो अपने आपको साहसी बना लेता है और अपने कायर के बिरुद को हटाता है। वो ये सब कैसे करता है ये जानने के लिए आपको पढ़नी पड़ेगी ये कहानी।

ये कहानी बहुत समय पहले की है। एक गांव में एक आदमी रहता था। उस आदमी की हरकतों की वजह से गांव के लोगो ने उसे कायर का बिरुद दिया हुआ था।

गांव के सभी लोग उसे उसके नाम से नहीं बल्कि कायर कहके ही बुलाते थे। वो आदमी खुद भी इस बिरुद की वजह से काफी परेशान रहता था। इसलिए ही उसने एक दिन तय किया की वो अपने आप को बदलेगा।

उस आदमी ने गांव के एक साधु के बारे में सुन रखा था, वो उस साधु के पास चला गया। उस आदमी ने साधु को अपनी परेशानी सुनाई और उनसे प्रार्थना की कि वो उसे बहादुरी सीखाएं जिससे उसे जो कायर का बिरुद मिला है वो चला जाए।

साधु ने उसकी सारी बात सुनी और उसे कहा कि, मै तुम्हारी मदद जरूर करुगा और तुम्हे बहादुरी और निडरता दोनों ही सिखाऊंगा किन्तु उससे पहले तुम्हें एक काम करना पड़ेगा।

उस आदमी ने कहा, आप जो कहोगे मै वह करूंगा लेकिन मुझे जल्द से जल्द इस कायर बिरुद से छुटकारा पाना है।

साधु ने कहा, तुम्हे एक महीने तक किसी दूसरे गांव में जाकर रहना पड़ेगा और वहां पर आते जाते हर एक व्यक्ति जिस जिससे तुम मिलोगे उन सभी को जोर जोर से कहना पड़ेगा कि तुम कायर हो।

साधु की ये शर्त सुनकर उस आदमी के चेहरे पर घबराहट और चिंता साफ साफ दिख रही थी मगर वह कर भी क्या सकता था, वो अपने घर चला गया।

उस आदमी के कुछ दिन उसी विचार में बीत गए कि मैं यह काम करूं या ना करूं? किन्तु कई दिन सोचने के बाद उस आदमी ने तय किया की पूरी जिंदगी कायर बने रहने से अच्छा है एक महीने तक गुरुजी का कहा मान लिया जाए।

ये करने में शुरू शुरू में तो उसे बहुत परेशानी हुई। उसके मुँह से कोई शब्द ही नहीं निकलता था और वो थरथर कापने लगता था, लेकिन जैसे – जैसे दिन बीतते गए उसके अंदर की घबराहट खत्म होने लगी और उसकी आवाज तेज होने लगी।

अब पहले की तरह उसका शरीर भी नहीं कांपता था और वह किसी भी व्यक्ति की आंखों में आंखें डाल कर जो कहना है कह सकता था।

एक महीना ख़त्म होने पर वह आदमी साधु के पास वापस लौटा और उसने कहा, अब मेरे अंदर की कायरता जा चुकी है, अब मै किसी से नहीं डरता हू और अब में कुछ भी कर सकता हू। उस आदमी ने कहा लेकिन मेरे मन में एक प्रश्न अभी भी है कि ये आपको कैसे लगा की ऐसा काम करने से मैं बहादुर बन जाऊंगा।

साधु ने उस आदमी को समझाया की कोई भी व्यक्ति तभी बहादुर बनता है जब वो अपनी समस्याओं का डटकर सामना करता है, जिनसे उसे सबसे ज्यादा डर लगता है। इसीलए यह काम खत्म करने पर तुम्हारी अंदर की कायरता भी जा चुकी है।

हमें जिससे सबसे ज्यादा डर लगता है उस चीज़ का अगर हम डटकर सामना करे तो हम बहादुर बन सकते है।

कर्म एक समान

ब्रहम गिआनी सभ स्रिसटि का करता ॥
ब्रहम गिआनी सद जीवै नही मरता ॥

आप में से कई सारे लोग सोचते होंगे की ईश्वर ने सबको एक समान क्यों नहीं बनाया? उसने सब को एक जैसी सुविधा क्यों नहीं दी? ईश्वर ने ऐसा इसलिए नहीं किया है क्योकि सभी के कर्म एक समान नहीं है।

एक दिन एक अमीर आदमी भगवान शिव के दर्शन करने के लिए मंदिर में गया। इस अमीर आदमी ने बहुत ही महंगे जूते पहन रखे थे और उसने ऐसा भी सुना था की इस मंदिर में अक्सर चोरी होती रहती है। इस वजह से उसका मन नहीं हुआ की वह अपने कीमती जूते वहा बाहर छोड़कर चला जाए।

जूते पहनकर वह मंदिर में नहीं जा सकता था और उसे ऐसे ही बाहर छोड़कर वह जाना नहीं चाहता था। अब वह करे तो क्या करे? वह बड़ी दुविधा में पड़ गया था।

थोड़ी देर सोचने के बाद उस अमीर आदमी ने मंदिर के बाहर बैठे एक भिखारी से बात की। अमीर आदमी ने उस भिखारी को अपने जूते संभालने के लिए दे दिए। भिखारी भी उसके जूते संभालने के लिए राजी हो गया। फिर वो अमीर आदमी अंदर मंदिर में पूजा करने के लिए चला गया।

पूजा में बैठे-बैठे उस अमीर आदमी के मन में ख्याल आया कि भगवान ने कैसी विषम दुनिया बनाई है। मेरे जैसे कई लोगों को पैरों में कीमती जूते पहनने लायक बनाया है लेकिन उस बिचारे भिखारी जैसे अनगिनत लोगों को रोटी खाने के लिए भी भीख मांगनी पड़ती हैं।

वो अमीर आदमी मन ही मन भगवान से फरियाद करते हुए बोला कि आपने सब लोगों को एक समान क्यों नहीं बनाया? आपने सभी को एक जैसी सुविधा क्यों नहीं दी? फिर उसने मन ही मन तय किया की यहाँ से वापस जाते समय वो उस भिखारी को 500 रूपये देकर जाएगा।

पूजा खत्म होने के बाद जब अमीर आदमी बाहर आया तो ना उसे अपने जूते दिखे नाही उसे वो भिखारी दिखा। उस अमीर आदमी को लगा की भिखारी किसी काम से कही बाहर गया होंगा। इसलिए थोड़ी देर तक उसने वही खड़े रहकर भिखारी का इंतज़ार किया।

काफी देर तक इंतज़ार करने के बाद भी जब भिखारी वापस नहीं आया तो उस अमीर आदमी को पता चल गया की भिखारी उसे ठग के चला गया है।

दुखी होकर अमीर आदमी नंगे पैर ही अपने घर की तरफ चल पड़ा। रास्ते में उस अमीर आदमी ने देखा की फुटपाथ पर एक जूते चप्पल बेचने वाला बैठा है। अमीर आदमी एक जोड़ी चप्पल खरीदने के लिए उसके पास पहुंचा।

वहां पहुंचते ही उस अमीर आदमी की नजर उसके जूते के जैसे ही जूते पर पड़ी। अमीर आदमी पहचान गया कि ये उसी के जूते है। पूछने पर बेचने वाले ने पहले मना किया लेकिन बार-बार पूछने पर और दबाव देने पर उसने माना कि यह जूते उसे एक भिखारी ₹500 में बेच कर गया है।

अब वह अमीर आदमी बिना चप्पल खरीदे मुस्कुराते हुए वहां से अपने घर की तरफ नंगे पैर ही चला गया। उसे भगवान से की गई अपनी फरियाद का जवाब मिल चुका था। उसे समझ में आ गया था कि जब तक लोगों के कर्म एक जैसे नहीं होते तब तक सब एक समान नहीं हो सकते।

भगवान ने उस भिखारी के तकदीर में 500 रूपये लिखे ही थे लेकिन कैसे कर्म करके उन्हें लेना है यह उस भिखारी के हाथ में था। अगर वह चोरी ना भी करता फिर भी उसे 500 रूपये मिलने वाले थे। शायद उसके ऐसे ही बुरे कर्मों की वजह से आज वो एक भिखारी था।

 

भगवान का प्रसाद

मिरतक कउ जीवालनहार ॥
भूखे कउ देवत अधार ॥

 

हम जब भगवान को भोग चढ़ाते है तो फिर भोग चढ़ने के बाद हमारा चढ़ाया हुआ भोग मतलब की प्रसाद वैसा का वैसा ही क्यों होता है? उसमे से कुछ कम क्यों नहीं होता है? क्या आपको भी इस प्रश्न का जवाब नहीं पता है? क्या आप भी इस प्रश्न का जवाब जानना चाहते है? तो फिर ये कहानी ( भगवान का प्रसाद – Short Story In Hindi ) आपके लिए ही है।

एक दिन एक लड़के ने क्लास में अपने शिक्षक से प्रश्न पूछा की गुरूजी हम भगवान् को भोग चढ़ाते है तो फिर उस भोग में से भगवान कुछ लेते क्यों नहीं है? हमारा प्रसाद उतना का उतना ही क्यों होता है? उसमे से कुछ कम क्यों नहीं होता है?

गुरूजी ने उस लड़के को तत्काल कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने उस बच्चे से कहा की में तुम्हे इसका जवाब कुछ समय के बाद देता हू। उस दिन गुरूजी ने पाठ के अंत में एक श्लोक पढ़ाया। पाठ पूरा करने के बाद गुरु जी ने सभी शिष्यों से कहा की वे सब पुस्तक में से देखकर श्लोक कंठस्थ कर ले।

करीब एक घंटे बाद गुरु ने प्रश्न करने वाले शिष्य से पूछा की उसे श्लोक कंठस्थ हुआ की नहीं? उस शिष्य ने पूरा श्लोक शुद्ध-शुद्ध गुरु को सुना दिया। फिर भी गुरु ने सिर “नहीं” में हिलाया। शिष्य ने गुरु से कहा – अगर आप चाहो तो आप पुस्तक देख लो, श्लोक बिलकुल वैसा ही मेने सुनाया जैसा इस पुस्तक में है।

गुरु ने पुस्तक दिखाते हुए कहा – श्लोक तो पुस्तक में ही है, तो तुम्हे कैसे याद हो गया? शिष्य ने कुछ नहीं कहा।

गुरु ने कहा – पुस्तक में जो श्लोक है वह स्थूल रूप में है। तुमने जब श्लोक पढ़ा, तो वह सूक्ष्म रूप में तुम्हारे अंदर प्रवेश कर गया। उसी सूक्ष्म रूप में वह तुम्हारे मन में रहता है। इतना ही नहीं, जब तुमने इसको पढ़कर कंठस्थ कर दिया, तब भी पुस्तक के स्थूल रूप के श्लोक में कोई कमी नहीं आई।

इसी प्रकार पुरे विश्व में रहते परमात्मा हमारे द्वारा चढ़ाये गए भोग को सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते है और इससे स्थूल रूप के वस्तु में कोई कमी नहीं होती है। उसी को हम प्रसाद के रूप में स्वीकार करते है। शिष्य को उसके प्रश्न का उत्तर मिल चूका था।

शिष्य को तो उसका जवाब मिल गया। क्या आपको भी अपने प्रश्न का जवाब मिल गया? मुझे कमेंट में जरुरु बताना।

अन्न की कीमत

बाहरि गिआन धिआन इसनान ॥
अंतरि बिआपै लोभु सुआनु ॥

 

संभु एक ठेला लगा कर काम करता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी और दो छोटे छोटे बच्चे थे। उनके बच्चो में एक लड़का था और एक लड़की थी। उसकी पत्नी का नाम सिमा था। उसके लड़के का नाम छोटू था और लड़की का नाम मुन्नी था।

एक दिन ठेले पर भार ज्यादा होने की वजह से संभु उसे ठीक से सम्भाल नहीं पाया और तेज गति से आती ट्रक से टकरा गया। अगले ही पल उसकी मौत हो गयी और उसके पीछे रह गयी उसकी पत्नी सिमा और दो छोटे-छोटे बच्चे छोटू और मुन्नी।

एक तरफ संभु का अंतिम संस्कार किया जा रहा था और दूसरी तरफ उसके बच्चे भूख की वजह से तड़प – तड़पकर रो रहे थे। बच्चो ने कई दिनों से पेट भर खाना नहीं खाया था।

उनके छोटे से बच्चो को रोते हुए देखकर पड़ोसियों को उसपे दया आ गई। पड़ोसियों ने दोनों बच्चो को खाना दिया। बहुत दिनों बाद छोटू और मुन्नी पेट भर कर खाना खा रहे थे। वो दोनों आज बहुत खुश थे।

एक तरफ लोग संभु की मौत पर दुःख व्यक्त कर रहे थे वहीँ दूसरी तरफ उसके अपने बच्चे बड़े चाव से भोजन कर रहे थे! सिमा ने अगले कुछ दिनों तक इसी तरह उधार लेकर और इधर-उधर से मांग कर अपना और बच्चों का पेट पाला।

लेकिन ये सब कितने दिनों तक चलता? कुछ समय के बाद तो लोगो ने मदद करना भी बंद कर दिया। सिमा पागलो की तरह इधर – उधर काम ढूंढती रही। बहुत प्रयास करने के बाद भी उसे काम नहीं मिला।

थक हार कर जब सिमा घर पर लौटी तो बच्चे उम्मीद से उसकी तरफ देखने लगे। छोटू अपनी तुतलाती आवाज़ में बोला – “त्या लायी हो माँ…जल्दी से मुझे खिला दो, मुझे बलि भूख लगी है…”

छोटू की बात सुनकर सिमा रो पड़ी और उसी के साथ दोनों बच्चे समझ गए की माँ के पास कुछ भी नहीं है…एक पल के लिए अजीब सा सन्नाटा छा गया।

फिर मुन्नी बोली – ” माँ, ये छोटू कब मरेगा! ”

माँ ने कहा तू पागल हो गई हो? ऐसा क्यों बोल रही है? माँ ने उसे डांटते हुए कहा।

तभी मुन्नी ने कहा माँ जब पापा मरे थे तो उस दिन हम लोगों को पेट भर खाना मिला था….छोटू मरेगा तो फिर खाना आएगा ना!

मुन्नी की बाते सुनकर माँ कि आँखें फटी की फटी रही गयीं। उसके पास मुन्नी की बात को कोई जवाब नहीं था!

ये सिर्फ कहानी ही नहीं है, लेकिन ये दुनिया के करोड़ों लोगों की हक़ीकत है!

एक दिन, बस सिर्फ एक दिन भूखा रह कर देखिये और आप करोड़ों लोगों का दर्द समझ जायेंगे!

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