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मुझे अपना अहंकार दे दीजिए

प्रभ दीन दइआल सुनहु बेनंती किरपा अपनी धारु
नामु निधानु उचरउ नित रसना नानक सद बलिहारु

पुराने समय में एक राजा बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का था। उसने अपने जन्मदिन पर सोचा कि मेरे पास इतनी धन-संपत्ति है। मैं किसी का भी जीवन बदल सकता हूं। इसीलिए आज किसी एक व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूरी करूंगा।

राज्य की प्रजा राजा को शुभकामनाएं देने के लिए राजमहल पहुंची। प्रजा के साथ एक संत भी राजा को बधाई देने के लिए आए थे। राजा संत से मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने संत से कहा कि गुरुदेव मेरे पास अपार धन-संपदा है, आज मैं आपकी सभी इच्छाएं पूरी करूंगा। आप जो चाहें मुझसे मांग सकते हैं। मैं आपकी हर बात पूरी करूंगा।

संत ने कहा कि मैं तो वैरागी हूं, मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है। अगर आप कुछ देना ही चाहते हैं तो अपनी इच्छा से मुझे कुछ भी दान दे सकते हैं।

संत की बात सोचकर राजा सोचने लगा कि वह संत को क्या दे, राजा ने कहा कि मैं आपको एक गांव दे देता हूं। संत बोले कि नहीं महाराज, गांव तो वहां रहनी वाली प्रजा का है। आप तो सिर्फ उस गांव के रक्षक हैं।

राजा ने अपना महल दान में देने की बात कही। संत बोलें कि ये भी आपके राज्य का ही है। यहां बैठकर आप प्रजा के लिए काम करते हैं। ये आपकी प्रजा की संपत्ति है।

बहुत सोचने के बाद राजा बोला कि आप मुझे अपना सेवक बना लें। मैं खुद को सपर्पित करता हूं। संत ने कहा कि नहीं महाराज आप पर तो आपकी पत्नी और बच्चों का अधिकार है। मैं आपको अपनी सेवा में नहीं रख सकता हूं।

ये सुनकर राजा परेशान हो गया, उसने कहा कि गुरुदेव अब आप ही बताएं, मैं क्या दूं? संत ने कहा कि राजन् आप मुझे अपना अहंकार दे दीजिए। अहंकार का त्याग करें, क्योंकि यही एक ऐसी बुराई है जो इंसान आसानी से छोड़ नहीं पाता है। अहंकार की वजह से व्यक्ति के जीवन में कई परेशानियां आती हैं। रावण, कंस और दुर्योधन भी अहंकार की वजह से ही मृत्यु को प्राप्त हुए और उनके वंश का नाश हो गया। ये बातें सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया। वह अपनी धन-संपत्ति पर घमंड कर रहा था। राजा ने संत से क्षमा मांगी और इस बुराई को छोड़ने का वचन दिया।

खुश रहो

तेरी सरनि पूरन सुख सागर करि किरपा देवहु दान
सिमरि सिमरि नानक प्रभ जीवै बिनसि जाइ अभिमान

एक बार दो दोस्त घूमते हुए एक महल के पास पहुँच गए तो, पहले दोस्त ने उस शानदार महल को देखकर कहा की जब इनमें रहने वालों की किस्मत लिखी जा रही थी तब हम कहाँ थे?

दूसरा दोस्त पहले वाले का हाथ पकड़ कर अस्पताल ले गया और मरीजो को दिखाते हुए कहा कि जब इनकी किस्मत लिखी जा रही थी तब हम कहाँ थे?

भगवान ने हमें जो भी दिया उसमें हमे हमेशा खुश रहना है।

किसी संत ने क्या खूब कहा है कि तुम अपने पुराने जूतों को देखकर क्यों परेशान होते हो दुनिया में तो कई लोग ऐसे भी हैं जिनके तो पैर ही नहीं है।

उस मालिक का हर हाल में शुक्र करना सीखना है।
मेरे मालिक ने सब कुछ दिया है।

आज भी तेरा शुक्राना।
कल भी तेरा शुक्राना।
हर पल तेरा शुक्राना।

कौन है ग़रीब

एक आदमी ने गुरू नानक जी से पूछा: मैं इतना गरीब क्यों हूँ?

गुरू नानक जी ने कहा: तुम गरीब हो क्योंकि तुमने देना नहीं सीखा।

आदमी ने कहा: परन्तु मेरे पास तो देने के लिए कुछ भी नहीं है।

गुरू नानक जी ने कहा: तुम्हारा चेहरा, एक मुस्कान दे सकता है। तुम्हारा मुँह, किसी की प्रशंसा कर सकता है या दूसरों को सुकून पहुंचाने के लिए दो मीठे बोल बोल सकता है।

तुम्हारे हाथ, किसी ज़रूरतमंद की सहायता कर सकते हैं, और तुम कहते हो तुम्हारे पास देने के लिए कुछ भी नहीं!

आत्मा की गरीबी ही वास्तविक गरीबी है।

पाने का हक उसी को है, जो देना जानता है।

मै आजाद कैसे होऊंगा ? (हरि के नाम की गति ठांढी…)

हरि के नाम की गति ठांढी
बेद पुरान सिम्रिति साधू जन खोजत खोजत काढी

 

एक सेठ और सेठानी रोज सत्संग में जाते थे। सेठजी के एक घर एक पिंजरे में तोता पाला हुआ था। तोता एक दिन पूछता हैं कि सेठजी आप रोज कहाँ जाते है। सेठजी बोले कि सत्संग में ज्ञान सुनने जाते है। तोता कहता है, सेठजी संत महात्मा से एक बात पूछना कि में आजाद कब होऊंगा।

सेठजी सत्संग खत्म होने के बाद संत से पूछते है कि महाराज हमारे घर जो तोता है उसने पूछा हैं की वो आजाद कब होगा? संत जी ऐसा सुनते हीं बेहोश होकर गिर जाते है। सेठजी संत की हालत देख कर चुप-चाप वहाँ से निकल जाते है। घर आते ही तोता सेठजी से पूछता है कि सेठजी संत ने क्या कहा। सेठजी कहते है कि तेरे किस्मत ही खराब है जो तेरी आजादी का पूछते ही वो बेहोश हो गए। तोता कहता है कोई बात नही सेठजी में सब समझ गया।

दूसरे दिन सेठजी सत्संग में जाने लगते है तब तोता पिंजरे में जानबूझ कर बेहोश होकर गिर जाता हैं। सेठजी उसे मरा हुआ मानकर जैसे हीं उसे पिंजरे से बाहर निकालते है, तो वो उड़ जाता है।

सत्संग जाते ही संत सेठजी को पूछते है कि कल आप उस तोते के बारे में पूछ रहे थे ना अब वो कहाँ हैं। सेठजी कहते हैं, हाँ महाराज आज सुबह-सुबह वो जानबुझ कर बेहोश हो गया , मैंने देखा की वो मर गया है इसलिये मैंने उसे जैसे ही बाहर निकाला तो वो उड़ गया।

तब संत ने सेठजी से कहा की देखो तुम इतने समय से सत्संग सुनकर भी आज तक सांसारिक मोह-माया के पिंजरे में फंसे हुए हो और उस तोते को देखो बिना सत्संग में आये मेरा एक इशारा समझ कर आजाद हो गया। इस कहानी से तात्पर्य ये है कि हम सत्संग में तो जाते हैं ज्ञान की बाते करते हैं या सुनते भी हैं, पर हमारा मन हमेशा सांसारिक बातों में हीं उलझा रहता हैं। सत्संग में भी हम सिर्फ उन बातों को पसंद करते है जिसमे हमारा स्वार्थ सिद्ध होता हैं। जबकि सत्संग जाकर हमें सत्य को स्वीकार कर सभी बातों को महत्व देना चाहिये और जिस असत्य, झूठ और अहंकार को हम धारण किये हुए हैं उसे साहस के साथ मन से उतार कर सत्य को स्वीकार करना चाहिए।

हर घर गुरुवाणी

Shri Guru Granth Saheb Ji

सिमरत नामु प्रान गति पावै

सिमरत नामु प्रान गति पावै
मिटहि कलेस त्रास सभ नासै साधसंगि हितु लावै

एक साधु वर्षा के जल में प्रेम और मस्ती से भरा चला जा रहा था कि इस साधु ने एक मिठाई की दुकान को देखा जहां एक कढ़ाई में गरम दूध उबला जा रहा था, तो मौसम के हिसाब से दूसरी कढ़ाई में गरमा गरम जलेबियां तैयार हो रही थी।

साधु कुछ क्षणों के लिए वहाँ रुक गया। शायद भूख का एहसास हो रहा था या मौसम का असर था। साधु हलवाई की भट्ठी को बड़े गौर से देखने लगा। साधु कुछ खाना चाहता था। लेकिन साधु की जेब ही नहीं थी तो पैसे भला कहां से होते।

साधु कुछ पल भट्ठी से हाथ सेंकने के बाद चला ही जाना चाहता था कि नेक दिल हलवाई से रहा न गया और एक प्याला गरम दूध और कुछ जलेबियां साधु को दें दी। मलंग ने गरम जलेबियां गरम दूध के साथ खाई और फिर हाथों को ऊपर की ओर उठाकर हलवाई के लिऐ प्रार्थना की फिर आगे चल दिया।

साधु बाबा का पेट भर चुका था। दुनिया के दु:खों से बेपरवाह वे फिर इक नए जोश से बारिश के गंदले पानी के छींटे उड़ाता चला जा रहा था। वह इस बात से बेखबर था कि एक युवा नव विवाहिता जोड़ा भी वर्षा के जल से बचता बचाता उसके पीछे चला आ रहें है।

एक बार इस मस्त साधु ने बारिश के गंदले पानी में जोर से लात मारी। बारिश का पानी उड़ता हुआ सीधा पीछे आने वाली युवती के कपड़ों को भिगो गया उस औरत के कीमती कपड़े कीचड़ से लथपथ हो गये। उसके युवा पति से यह बात बर्दाश्त नहीं हुई।

इसलिए वह आस्तीन चढ़ाकर आगे बढ़ा और साधु के कपड़ो से पकड़ कर कहने लगा अंधा है। तुमको नज़र नहीं आता तेरी हरकत की वजह से मेरी पत्नी के कपड़े गीले हो गऐ हैं और कीचड़ से भर गऐ हैं। साधु हक्का-बक्का सा खड़ा था। जबकि इस युवा को साधु का चुप रहना नाखुशगवार गुजर रहा था। महिला ने आगे बढ़कर युवा के हाथों से साधु को छुड़ाना भी चाहा। लेकिन युवा की आंखों से निकलती नफरत की चिंगारी देख वह भी फिर पीछे खिसकने पर मजबूर हो गई।

राह चलते राहगीर भी उदासीनता से यह सब दृश्य देख रहे थे लेकिन युवा के गुस्से को देखकर किसी में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उसे रोक पाते और आख़िर जवानी के नशे मे चूर इस युवक ने एक जोरदार थप्पड़ साधु के चेहरे पर जड़ दिया बूढ़ा मलंग थप्पड़ की ताब ना झेलता हुआ लड़खड़ाता हुऐ कीचड़ में जा पड़ा। युवक ने जब साधु को नीचे गिरता देखा तो मुस्कुराते हुए वहां से चल दिया। बूढे साधु ने आकाश की ओर देखा और उसके होठों से निकला वाह मेरे भगवान कभी गरम दूध जलेबियां और कभी गरम थप्पड़। लेकिन जो तू चाहे मुझे भी वही पसंद है। यह कहता हुआ वह एक बार फिर अपने रास्ते पर चल दिया। दूसरी ओर वह युवा जोड़ा अपनी मस्ती को समर्पित अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गया।

थोड़ी ही दूर चलने के बाद वे एक मकान के सामने पहुंचकर रुक गए। वह अपने घर पहुंच गए थे। वो युवा अपनी जेब से चाबी निकाल कर अपनी पत्नी से हंसी मजाक करते हुए ऊपर घर की सीढ़ियों तय कर रहा था। बारिश के कारण सीढ़ियों पर फिसलन हो गई थी। अचानक युवा का पैर फिसल गया और वह सीढ़ियों से नीचे गिरने लगा। महिला ने बहुत जोर से शोर मचा कर लोगों का ध्यान अपने पति की ओर आकर्षित करने लगी जिसकी वजह से काफी लोग तुरंत सहायता के लिये युवा की ओर लपके। लेकिन देर हो चुकी थी।

युवक का सिर फट गया था और कुछ ही देर मे ज्यादा खून बह जाने के कारण इस नौजवान युवक की मौत हो चुकी थी। कुछ लोगों ने दूर से आते साधु बाबा को देखा तो आपस में कानाफुसी होने लगीं कि निश्चित रूप से इस साधु बाबा ने थप्पड़ खाकर युवा को श्राप दिया है। अन्यथा ऐसे नौजवान युवक का केवल सीढ़ियों से गिर कर मर जाना बड़े अचम्भे की बात लगती है। कुछ मनचले युवकों ने यह बात सुनकर साधु बाबा को घेर लिया। एक युवा कहने लगा कि आप कैसे भगवान के भक्त हैं जो केवल एक थप्पड़ के कारण युवा को श्राप दे बैठे।
भगवान के भक्त मे रोष व गुस्सा हरगिज़ नहीं होता। आप तो जरा सी असुविधा पर भी धैर्य न कर सकें। साधु बाबा कहने लगा भगवान की क़सम मैंने इस युवा को श्राप नहीं दिया।

अगर आप ने श्राप नहीं दिया तो ऐसा नौजवान युवा सीढ़ियों से गिरकर कैसे मर गया? तब साधु बाबा ने दर्शकों से एक अनोखा सवाल किया कि आप में से कोई इस सब घटना का चश्मदीद गवाह मौजूद है? एक युवक ने आगे बढ़कर कहा। हाँ, मैं इस सब घटना का चश्मदीद गवाह हूँ।

साधु ने अगला सवाल किया। मेरे क़दमों से जो कीचड़ उछला था क्या उसने युवा के कपड़े को दागी किया था? युवा बोला नहीं, लेकिन महिला के कपड़े जरूर खराब हुए थे। मलंग ने युवक की बाँहों को थामते हुए पूछा। फिर युवक ने मुझे क्यों मारा? युवा कहने लगा। क्योंकि वह युवा इस महिला का प्रेमी था और यह बर्दाश्त नहीं कर सका कि कोई उसके प्रेमी के कपड़ों को गंदा करे। इसलिए उस युवक ने आपको मारा।

युवा बात सुनकर साधु बाबा ने एक जोरदार ठहाका बुलंद किया और यह कहता हुआ वहाँ से विदा हो गया। तो भगवान की क़सम मैंने श्राप कभी किसी को नहीं दिया। लेकिन कोई है जो मुझसे प्रेम रखता है। अगर उसका यार सहन नहीं कर सका तो मेरे यार को कैसे बर्दाश्त होगा कि कोई मुझे मारे और वह इतना शक्तिशाली है कि दुनिया का बड़े से बड़ा राजा भी उसकी लाठी से डरता है।

उस परमात्मा की लाठी दिखती नही और आवाज भी नही करती। लेकिन पडती हैं तों बहुत दर्द देंती हैं। हमारें कर्म ही हमें उसकी लाठ़ी से बचातें हैं।

कभी किसी को परेशान ना करो, कभी किसी का दिल ना दुखाओ। हिसाब हर चीज़ का देना पड़ता है।

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