Author name: EkAdmin

साध कै संगि मुख ऊजल होत

साध कै संगि मुख ऊजल होत ॥ साधसंगि मलु सगली खोत ॥
साध कै संगि मिटै अभिमानु ॥ साध कै संगि प्रगटै सुगिआनु ॥
साध कै संगि बुझै प्रभु नेरा ॥ साधसंगि सभु होत निबेरा ॥
साध कै संगि पाए नाम रतनु ॥ साध कै संगि एक ऊपरि जतनु ॥
साध की महिमा बरनै कउनु प्रानी ॥ नानक साध की सोभा प्रभ माहि समानी ॥

 

पुराने समय में एक महिला सुबह-शाम पूजा करती थी, साधु-संतों का सम्मान करती थी, लेकिन उसे मन की शांति नहीं मिल रही थी।

एक दिन उसके गांव में प्रसिद्ध संत पहुंचे। संत गांव के लोगों को प्रवचन देते थे। जीवन यापन के लिए घर-घर जाकर भिक्षा मांगते थे।

संत उस महिला के घर भिक्षा मांगने पहुंचे। महिला ने संत को खाना देते हुए कहा कि महाराज जीवन में सच्चा सुख और आनंद कैसे मिलता है? मैं सुबह-शाम पूजा करती हूं, लेकिन मेरा मन शांत नहीं है। कृपया मेरे परेशानी को दूर करें।

संत ने कहा कि इसका जवाब मैं कल दूंगा।

अगले दिन संत महिला के घर फिर आने वाले थे। इस वजह से महिला ने संत के सत्कार के लिए खीर बनाई। वह संत से सुख और आनंद का ज्ञान जानना चाहती थी। संत महिला के घर पहुंचे। उन्होंने भिक्षा के लिए महिला को आवाज लगाई। महिला खीर लेकर बाहर आई। संत ने खीर लेने के लिए अपना कमंडल आगे बढ़ा दिया।

महिला कमंडल में खीर डालने वाली थी, तभी उसकी नजर कमंडल के अंदर गंदगी पर पड़ी। उसने बोला महाराज आपका कमंडल तो गंदा है, इसमें कचरा पड़ा हुआ है।

संत ने कहा कि हां ये गंदा तो है, लेकिन आप खीर इसी में डाल दो। महिला ने कहा कि नहीं महाराज, ऐसे तो खीर खराब हो जाएगी। आप कमंडल दें, मैं इसे धोकर साफ कर देती हूं।

संत ने पूछा कि मतलब जब कमंडल साफ होगा, तभी आप इसमें खीर देंगी? महिला ने जवाब दिया कि जी महाराज इसे साफ करने के बाद ही मैं इसमें खीर दूंगी।

संत ने कहा कि ठीक इसी तरह जब तक हमारे मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह, बुरे विचारों की गंदगी है, तब तक उसमें ज्ञान कैसे डाल सकते हैं?

अगर ऐसे मन में उपदेश डालेंगे तो अपना असर नहीं दिखा पाएंगे। इसीलिए उपदेश सुनने से पहले हमें हमारे मन को शांत और पवित्र करना चाहिए। तभी हम ज्ञान की बातें ग्रहण कर सकते हैं। पवित्र मन वाले ही सच्चा सुख और आनंद प्राप्त कर पाते हैं।

किनका एक किनका जिस जी बसावे


वाहेगुरु वाहेगुरु॥॥
आद गुरे नम्हे, जुगाद गुरे नम्हे,
सतगुरे नम्हे, श्री गुरुदेवे नम्हे,

किनका एक किनका जिस जी बसावे, 2x
ताकि महिमा गनी ना आवे, महिमा गनी ना आवे, 2x
किनका एक किनका जिस जी बसावे 2x
वाहेगुरु वाहेगुरु॥॥

सिमरो सिमर सिमर सुख पाओ
कल क्लेश तन
माध मिटाओ 3x
कल क्लेश तन माध मिटाओ 2x
किनका एक किनका जिस जी बसावे 2x
ताकि महिमा गनी ना आवे, महिमा गनी ना आवे,
किनका एक किनका जिस जी बसावे 2x
वाहेगुरु वाहेगुरु॥॥ 2x

सिमरो जास वसंभर एके,
नाम जपत आगंत अनेके, आगंत अनेके, आगंत अनेके

सिमरो जास वसंभर एके,
नाम जपत आगंत अनेके

किनका एक किनका जिस जी बसावे 2x
ताकि महिमा गनी ना आवे, महिमा गनी ना आवे 2x
किनका एक किनका जिस जी बसावे 2x
वाहेगुरु वाहेगुरु॥॥ 2x

वेद पराण सिमरत सुध्याकार,
तिने राम नाम एक आखर, नाम एक आखर,, नाम एक आखर,

किनका एक किनका जिस जी बसावे 2x
ताकि महिमा गनी ना आवे, महिमा गनी ना आवे 2x
किनका एक किनका जिस जी बसावे 2x
वाहेगुरु वाहेगुरु॥॥ 2x

काकी एके दरस तु्हारो,
नानक उन संग मोह उतारो, मोह उतारो, मोह उतारो

काकी एके दरस तु्हारो,
नानक उन संग मोह उतारो

किनका एक किनका जिस जी बसावे 2x
ताकि महिमा गनी ना आवे, महिमा गनी ना आवे 2x
किनका एक किनका जिस जी बसावे 2x
वाहेगुरु वाहेगुरु॥॥ 10x

थिर घर बैसो हर्जन प्यारे


थिर घर बैसो हर्जन प्यारे 2x
सतगुर तुमरे काज सवारे 2x
दुष्ट दूत परमेशवर मारे 2x
जान की पैज राखी करतारे 2x
बादशाह शाह सभ वस् कर दीने 2x
अमृत नाम महा रस पीने 2x
निरभउ होये पजो भगवान 2x
साध सांगत मिल कीनो दान 2x
सरन परे प्रभ अंतर जामी 2x
नानक यह पकरि प्रभ स्वामी 2x
थिर घर बैसो हर्जन प्यारे 2x
सतगुर तुमरे काज सवारे 4x

दुःख भंजन तेरा नाम जी


दुःख भंजन तेरा नाम जी
दुःख भंजन तेरा नाम 2x

आठ पेहेर आराधिये 2x
पूरन सतगुर ज्ञान

दुःख भंजन तेरा नाम जी
दुःख भंजन तेरा नाम

दुःख भंजन तेरा नाम जी
दुःख भंजन तेरा नाम

जित घत वसे पारब्रहम सोई सुहावा पाओ
जम कंकरु नेड़े न आवे रसना हरी गुण गाऊ,

आठ पेहेर आराधिये 2x
पूरन सतगुर ज्ञान
दुःख भंजन तेरा नाम जी दुःख भंजन तेरा नाम जी

सेवा सुरत न जानियाँ न जापे आराधि
ओत तेरी जगजीवना मेरे ठाकुर अगम अगाधि

आठ पेहेर आराधिये 2x
पूरन सतगुर ज्ञान
दुःख भंजन तेरा नाम जी दुःख भंजन तेरा नाम जी

भए किरपाल गुसाइयां लठे सोग संताप
तत्ती वाऊ न लगाई सतिगुरु रखे आपी

आठ पेहेर आराधिये 2x
पूरन सतगुर ज्ञान
दुःख भंजन तेरा नाम जी दुःख भंजन तेरा नाम जी

गुरु नारायाण द्यो गुरु गुरु सचा सिरजन हारू,
गुरु तुठे सब कीछ पाया जन नानक सद बलिहार

आठ पेहेर आराधिये 2x
पूरन सतगुर ज्ञान
दुःख भंजन तेरा नाम जी दुःख भंजन तेरा नाम जी

आठ पेहेर आराधिये 2x
पूरन सतगुर ज्ञान
दुःख भंजन तेरा नाम जी दुःख भंजन तेरा नाम जी

आठ पेहेर आराधिये 2x
पूरन सतगुर ज्ञान
दुःख भंजन तेरा नाम जी दुःख भंजन तेरा नाम जी

तेरा नाम… तेरा नाम….. तेरा नाम…..

क्रोध करना अपने ही शरीर पर चाकू मारने के समान

काम क्रोध अरु लोभ मोह बिनसि जाइ अहमेव
नानक प्रभ सरणागती करि प्रसादु गुरदेव

 

एक महात्मा जंगल में कुटिया बनाकर रहते थे. उनके प्रेम, क्षमा, शांति और निर्मोहिता जैसे गुणों की ख्याति दूर-दूर फैली हुई थी. मनुष्य पर गुण असहिष्णुत होता है. उनकी शांति भंग करके क्रोध दिलाया जाए इसकी होड़ लगी.
दो मनुष्यों ने इसका बीड़ा लिया. वे महात्मा की कुटिया पर गए. एक ने कहा, महाराज !! जरा गांजे की चिलम तो लाइए. महात्मा बोले, भाई मैं गांजा नहीं पीता. उसने फिर कहा, अच्छा तो तंबाकू लाओ.

महात्मा जी ने कहा, मैंने कभी तंबाकू का व्यवहार नहीं किया और न ही उसे खाया है. तब वो शख्स बोला फिर बाबा बनकर तब जंगल में क्यों बैठे हो, धूर्त कहीं का !! इतने में पूर्व योजना के अनुसार बहुत से लोग वहां जमा हो गए. उस आदमी ने सबको सुनाकर फिर कहा, पूरा ठग है ये !! चार बार तो जेल की हवा खा चुका है.

उसके दूसरे साथी ने कहा, अरे भाई !! मैं खूब जानता हूं इसे, मेरे साथ ही तो था. इसने जेल में मुझको डंडों से मारा था. ये देखो उसका निशान अभी तक पड़ा है. रात को रगंरेलियां करता है, दिन में बड़ा संत बन जाता है.

वे दोनों एक से एक बढ़कर झूठे और बेबुनियाद आरोप लगाने लगे. उनका पूरा प्रयास था कि कैसे भी महात्मा जी को क्रोध आ जाए. महात्मा जी चुप रहे. तब महात्मा ने शक्कर की पुड़िया आगे कर हंस कर कहा, भैया !! थक गए होंगे आप !! एक भक्त ने चीनी की पुड़िया दी है. इसे जरा पानी में डालकर पी लो.

वह मनुष्य महात्मा के चरणों पर पड़ गए और बोले, हमें क्षमा कीजिए महाराज !! हमने बड़ा अपराध किया है. हम लोगों के इतना कहने पर भी महाराज आपको क्रोध कैसे नहीं आया ?

महात्मा बोले, जिसके पास जो माल होता है, वो उसी को दिखाता है. ये तो ग्राहक की इच्छा है कि उसे ले या न ले. तुम्हारे पास जो माल था, तुमने मुझे वही दिखाया. इसमें तुम्हारा क्या दोष है ? परंतु मुझे तुम्हारा माल पसंद नहीं आया.

दोनों लज्जित हो गए तो महात्मा ने फिर कहा, अगर दूसरा आदमी गलती करे और हम अपने अंदर आग जला दें, ये तो उचित नहीं. मेरे गुरु जी ने मुझे सिखाया है कि क्रोध करना और अपने ही शरीर पर चाकू मारने के समान है. ईर्ष्या करना और जहर पीना बराबर है. दूसरों की दी हुई गालियों और दुष्ट व्यवहार हमारा कोई नुकसान नहीं कर सकते.

दातार उह न मंगिये

दातार उह न मंगिये 2x
फिर मंगन जाइए 2x
दातार उह न मंगिये 2x

फिर मंगन जाइए 2x

होछा शाह न किचइ फिर पछतायो
साहिब उह न सेविये
जम दंड सहाईये 2x
दातार उह न मंगिये 2x
फिर मंगन जाइए 2x

हउमै रोग न कतेयी उह वैद न लाइए 2x
दुर्मत मेल न उतरे कियो तीरथ नाइये 3 x
दातार उह न मंगिये 2x
फिर मंगन जाइए 2x

पीर मुरीदा पिरहाड्रा सुख सहज समाइये 3x

दातार उह न मंगिये 2x
फिर मंगन जाइए 2x

दातार उह न मंगिये 2x
फिर मंगन जाइए 2x

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