Author name: EkAdmin

आनंद भया वडभागियो


आनंद भया वडभागियो 2x
गृह प्रगटे प्रभ आये जियो
आनंद भया 8x
आनंद भया वडभागियो 2x
गृह प्रगटे प्रभ आये जियो
आनंद भया 8x
सगल इछ मेरी पुनिआ 2x
मिलिया निरंजन राय जियो
आनंद भया 4x
आनंद भया वडभागियो 2x
गृह प्रगटे प्रभ आये जियो
आनंद भया 8x
गृह लाल आये पुरब कमाए 2x
ता की उपमा क्या गड़ा 2x
बेअंत पूरन सुख सहज दाता 2x
कवन रसना रतन भना 2x
गृह प्रगटे प्रभ आये जियो
आनंद भया 4x
आनंद भया वडभागियो 2x
गृह प्रगटे प्रभ आये जियो
आनंद भया 8x
आप मिलाए गहे कंत लाए 2x
तिस बिना नहो जाए जियो 2x
बल जाए नानक सदा करते 2x
सब में रहिये समाए जियो 2x
गृह प्रगटे प्रभ आये जियो
आनंद भया 4x
आनंद भया वडभागियो 2x
गृह प्रगटे प्रभ आये जियो
आनंद भया 8x

परेशानियां

एको जपि एको सालाहि ॥
एकु सिमरि एको मन आहि ॥

परेशानियां किसके जीवन में नहीं होती है? हमें हमेशा अपनी परेशानी दुसरो की परेशानी से बड़ी लगती है, पर वास्तव में देखा जाए तो हमारी परेशानी दुसरो की परेशानी की तुलना में कुछ भी नहीं होती है।

ये कहानी बहुत समय पहले के एक छोटे से गांव की है। उस समय हमारे भारत में छोटे – छोटे गांव ज्यादा थे और उन गांवो में आज के जितना विकास भी नहीं हुआ था। उस समय गांव के लोगो में शिक्षण की भी बहुत कमी थी।

अच्छा शिक्षण ना मिलने के कारण लोगों में अज्ञानता का प्रमाण बहुत ज्यादा था। गांव के लगभग सभी लोग अपनी छोटी-छोटी समस्याओं से बहुत ज्यादा परेशान रहा करते थे।

एक दिन इस छोटे से गांव में भ्रमण करते करते एक बहुत विख्यात संत महात्मा पधारे। ये संत किसी भी व्यक्ति की समस्या का चुटकियों में हल करने का सामर्थ्य रखते थे।

इस बात की चर्चा पूरे गांव में होने लगी। गांव के सभी लोगो को कुछ न कुछ समस्या थी और इसलिए ही अपनी समस्या का निवारण लाने के लिए एक-एक करके सारे गांव वाले संत के पास आकर इकट्ठा हो गए।

सभी अपनी अपनी समस्या का समाधान लाने के लिए जल्दबाजी कर रहे थे। हर कोई सबसे पहले अपनी परेशानी का समाधान करवाना चाहता था। इस वजह से सब लोग इकठ्ठा होकर एक साथ बोलने लगे।

गांव के लोगो का इतना शोर देखकर संत को गुस्सा आने लगा और संत ने उची आवाज में सबको चुप रहने के लिए कहा।

जब गांव के लोग शांत हो गए तो संत ने सबसे कहा कि, इस तरह ना मुझे किसी की समस्या समझ में आएगी और ना ही किसी भी समस्या का समाधान हो पाएगा। मैं जैसा बोलता हूं वैसा करो तो में सब की समस्या का समाधान कर दूंगा।

संत की बात सुनकर सारे गांववाले खुश हो गए। संत ने कहा की सब अपनी अपनी समस्याएं कागज में लिख कर लेकर आओ और इस टोकरी में रख दो। संत ने जैसे कहा था ठीक बिलकुल वैसे ही सभी ने अपनी अपनी समस्याएं पर्चियों में लिख दी और उन्हें टोकरी में डाल दिया।

इसके बाद संतने सभी को उस टोकरी में से एक – एक पर्ची उठाने के लिए कहा और अपनी शर्त बताते हुए कहा, मै आप सभी की समस्या हल कर दूंगा पर बदले में सब को किसी भी एक व्यक्ति की ऐसी समस्या हल करनी होगी जो उनकी समस्या से छोटी हो।

गांव के सभी लोगो ने टोकरी में से एक एक पर्ची उठाई और उनमें लिखी समस्या पढ़ने लगे। हर एक गांववाले का चेहरा देखकर साफ पता चल रहा था कि उन्होंने जो भी समस्याएं पढ़ी वो उनको अपनी समस्या जितनी या उससे भी बड़ी लग रही थी क्योंकि वे सभी आपसमे पर्चियां बदल बदलकर समस्याएं पढ़ रहे थे।

एक घंटे से भी ज्यादा समय बीत गया, तब सभी ने संत को अपनी अपनी पर्चियां दिखाते हुए कहा कि, महात्मा हम समझ गए है की हमारी समस्याएं केवल हम ही हल कर सकते है, इसलिए हम अपनी खुद की लिखी पर्ची हाथ में पकड़े हुए है और अब हम स्वयं ही इनका निवारण करेंगे।

परेशानियां किसके जीवन में नहीं होती है? हमें हमेशा अपनी परेशानी दुसरो की परेशानी से बड़ी लगती है, पर वास्तव में देखा जाए तो हमारी परेशानी दुसरो की परेशानी की तुलना में कुछ भी नहीं होती है। रोने से कुछ नहीं होता है। हमें रोने के बदले समस्याओं का डटकर सामना करना चाहिए।

सतगुर आयो सरन तुहारी


सतगुर आयो सरन तुहारी 2x
सरन तुहारी सतगुर आयो सरन तुहारी सतगुर आयो सरन तुहारी
मिले सूख नाम हर सोभा 2x
चिंता लायी हमारी
सतगुर आयो सरन तुहारी 2x
अवर न सूझे दूजी ठाहर 2x
हार परयो तउ दुआरी 2x
सतगुर आयो सरन तुहारी 2x
मिले सूख नाम हर सोभा 2x
चिंता लायी हमारी
सतगुर आयो सरन तुहारी 2x
लेखा छोड़ अलेखे छूटेह लेखा छोड़ अलेखे छूटेह , अलेखे छूटेह
लेखा छोड़, लेखा छोड़, लेखा छोड़ लेखा छोड़, लेखा छोड़, लेखा छोड़
लेखा छोड़ अलेखे छूटेह
हम निरगुन लेहो उबारी 2x
सतगुर आयो सरन तुहारी 2x
मिले सूख नाम हर सोभा 2x
चिंता लायी हमारी
सतगुर आयो सरन तुहारी 2x
सद बख्शंद सदा मेहरवाना 2x
सभना देह आधारी
नानक दास संत पाछे परियो 2x
राख लेयो एह बारी 2x
सतगुर आयो सरन तुहारी 2x
मिले सूख नाम हर सोभा 2x
चिंता लायी हमारी
सतगुर आयो सरन तुहारी 2x
सतगुर आयो, सतगुर आयो, सतगुर आयो सरन तुहारी

मैं अंधुले की तक तेरा नाम खुंदकरा


मैं अंधुले की तक तेरा नाम खुंदकरा 2x
मैं गरीब मैं मस्कीन तेरा नाम आधारा
मैं अंधुले की तक तेरा नाम खुंदकरा

करीमा रहीमा अल्लाह तू गनी 2x
हाजरा हजूर दर पेस तू मनि
मैं अंधुले की तक तेरा नाम खुंदकरा
दरी आउ तू दिहंद तू बिसीआर तू धनि 2x
देह लेह एक तू दीगर को नहीं
मैं अंधुले की तक तेरा नाम खुंदकरा
तू दाना तू बिना मैं बिचार क्या करी
नामे चे स्वामी बख्शंद तू हरी
मैं अंधुले की तक तेरा नाम खुंदकरा 2x

मन की झोली

साधसंगि मिलि करहु अनंद ॥
गुन गावहु प्रभ परमानंद ॥
राम नाम ततु करहु बीचारु ॥
द्रुलभ देह का करहु उधारु ॥

कई बार ऐसा होता है कि प्रवचन तो सभी एक ही सुनते है पर उसका मतलब सब लोग अलग – अलग निकालते है। जिसकी जितनी ज्ञान पाने कि क्षमता होती है वो उतना ही ज्ञान पा सकता है।

एक बार बुद्ध कही प्रवचन दे रहे थे। अपने प्रवचन ख़त्म करते हुए उन्होंने आखिर में कहा – जागो, समय हाथ से निकला जा रहा है।

सभा विसर्जित होने के बाद उन्होंने प्रिय शिष्य आनंद से कहा – चलो थोड़ी देर घूम कर आते है। आनंद बुद्ध के साथ चल दिए। अभी वे विहार के मुख्य दरवाजे तक ही पहुंचे थे कि एक किनारे रुक कर खड़े हो गये।

प्रवचन सुनने आये लोग एक – एक कर बाहर निकल रहे थे। इसलिए भीड़ हो गयी थी। अचानक उसमे से निकल कर एक स्त्री गौतम बुद्ध से मिलने आयी। उसने कहा – तथागत मै नर्तकी हू। आज नगर सेठ के घर मेरे नृत्य का कार्यक्रम पहले से तय था, लेकिन मै उसके बारे में भूल चुकी थी।

आपने कहा – समय निकला जा रहा है, तो मुझे तुरंत वह बात याद आ गयी।

उसके बाद एक डकैत बुद्ध कि ओर आया। उसने कहा – तथागत मै आपसे कोई बात छिपाऊँगा नहीं। मै भूल गया था कि आज मुझे एक जगह डाका डालने जाना था। मगर आपका उपदेश सुनते ही मुझे अपनी योजना याद आ गयी। बहुत बहुत धन्यवाद!

उसके जाने के बाद धीरे – धीरे चलता हुआ एक बूढ़ा व्यक्ति बुद्ध के पास आया। उस वृद्ध व्यक्ति ने कहा – जिंदगी भर दुनियादारी कि चीज़ो के पीछे भागता रहा। अब मौत का सामना करने का दिन नजदीक आता जा रहा है। अब मुझे लगता है कि सारी जिंदगी यू ही बेकार हो गयी।आपकी बातो से आज मेरी आँखे खुल गयी। आज से मै अपने सारे दुनियावी मोह छोड़कर निर्वाण के लिए प्रयास करना चाहता हू।

जब सब लोग चले गये तो बुद्ध ने कहा – देखो आनंद! प्रवचन मैंने एक ही दिया, लेकिन हर किसी ने उसका अलग – अलग मतलब निकाला। जिसकी जितनी झोली होती है, उतना ही दान वह समेट पाता है।

निर्वाण प्राप्ति के लिए भी मन कि झोली को उसके लायक होना होता है। इसके लिए मन का सुद्ध होना बहुत जरुरी है।

गुर पूरे मेरी राख लयी


गुर पूरे मेरी राख लयी 4x
अमृत नाम रीदे में दिनों 2x
जनम जनम की मेल गयी
गुर पूरे मेरी राख लयी 4x
अमृत नाम रीदे में दिनों 2x
जनम जनम की मेल गयी
गुर पूरे मेरी राख लयी 4x

निमरे दुःख दुष्ट पेहराई
गुर पूरे का जपेया जा
निमरे दुःख दुष्ट पेहराई
गुर पूरे का जपेया जा
कहा टारे लोई में चारा
प्रभ मेरे का वदपरताप 3x
गुर पूरे मेरी राख लयी 4x
अमृत नाम रीदे में दिनों 2x
जनम जनम की मेल गयी
गुर पूरे मेरी राख लयी 4x

सीमार सीमार सीमार सुख पाया
चरण कमल रख मन माहि
सीमार सीमार सीमार सुख पाया
चरण कमल रख मन माहि
ता की शरन परयो नानक दास
जा के ऊपर तो नहीं
ता की शरन परयो नानक दास
जा के ऊपर तो नहीं 3x
गुर पूरे मेरी राख लयी 4x
अमृत नाम रीदे में दिनों 2x
जनम जनम की मेल गयी
गुर पूरे मेरी राख लयी 4x

निमरे दुःख दुष्ट पेहराई
गुर पूरे का जपेया जा
निमरे दुःख दुष्ट पेहराई
गुर पूरे का जपेया जा
कहा टारे लोई में चारा
प्रभ मेरे का वदपरताप
कहा टारे लोई में चारा
प्रभ मेरे का वदपरताप3x

गुर पूरे मेरी राख लयी 4x
अमृत नाम रीदे में दिनों 2x
जनम जनम की मेल गयी
गुर पूरे मेरी राख लयी 38x

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