विणु बोलिआ सभु किछु जाणदा किसु आगै कीचै अरदासि ॥
नानक घटि घटि एको वरतदा सबदि करे परगास ॥
बहुत दूर से ब्राह्मण संत एकनाथ महाराज का घर ढूँढ़ता हुआ आया था। जब वह नाथ के द्वार पर आया, तो उसकी सारी ओस गायब हो गई। उसके मन में एक अधीरता थी, एक जुनून था। घर में प्रवेश करने के बाद जैसे ही नाथ पर नजर पड़ी तो ब्राह्मण ने उनके पैर पकड़ लिए। उन्होंने हाथ जोड़कर नाथ से कहा,
नाथबाबा, मुझे भगवान श्री कृष्ण के दर्शन कराओ।
एकनाथ महाराज को कुछ समझ नहीं आया। आप कौन हैं? मैं तुम्हें और उसे भी नहीं जानता, मैं कहाँ रहता हूँ? ये भी नहीं पता। तभी गिरिजादेवी (नाथ की पत्नी) वहाँ आ गयीं। वे भी सुन चुकी थीं कि वह ब्राह्मण नाथों से क्या कह रहा था।
नाथ ने उसे उठाकर अपने पास रख लिया। लेकिन वह ब्राह्मण बार-बार एक ही वाक्य कह रहा था।
नाथबाबा, मुझे भगवान कृष्ण के दर्शन कराओ।
ब्राह्मण की निगाहें घर का कोना-कोना तलाश रही थीं। नाथ ने उन्हें मंच पर बैठाया। उन्होंने अपने हाथों से उनके पैर धोये। तब तक गिरिजादेवी मीठा जल ले आईं। यह देखकर उस ब्राह्मण का हृदय भर आया।
वह झट से बैठ गया और नाथ के पैर पकड़कर उससे बोला, नाथ बाबा, मुझे 15 दिन पहले एक दर्शन हुआ था। भगवान कृष्ण मेरे स्वप्न में आये और मुझसे कहा कि मैं पिछले 12 वर्षों से एकनाथ महाराज के घर में श्रीखंड्या के रूप में रह रहा हूँ। अब मेरे जाने का समय हो गया है। यदि तुम मुझसे मिलना चाहते हो तो एकनाथ महाराज के घर आओ।
नाथबाबा, बताओ प्रभु तुम्हारे घर में श्रीखंड्या के नाम से 12 वर्षोंसे रह रहें हैं। वे कहां हैं? उनके विरह से मेरे प्राण निकले जा रहे हैं।
यह सुनकर गिरिजादेवी के होश उड़ गये। नाथ को होश भूल गया। दरअसल श्रीखंड्या पिछले 12 साल से उनके घर में पानी भरने का काम कर रहा था। और वो कल ही नाथ जी से ये कहकर गया था की वो कल वापस काम पे आएगा।
नाथजी सोचने लगे “उन्होंने हमें साधारण पहचान भी नहीं दी। ये कैसी लीला रची उन्होंने ? एक बार पहचान बता तो देते, उसी पल उनके चरणों में प्राण अर्पण कर देता। नाथजी प्रभू के विरह में और भी व्याकुल हो गए उनकी आँखे भर आई ।
नाथ खम्भे का सहारा लेकर धीरे से बैठ गये। गिरिजादेवी को होश आ गया। फिर श्रीखंड्या की यादें याद आने लगीं।
वो श्रीखंड्या की सादगी, उसकी हर हरकत, चुपचाप अपना काम करना, वही कल वाली मनमोहक मुस्कान।
नाथ की आँखें बहने लगीं। उन्होंने ध्यान किया। और उन्हें एहसास हुआ कि स्वयं भगवान कृष्ण, विश्वके के स्वामी, पिछले 12 वर्षों से उनके घर में श्रीखंड्या के रूपमें पानी भर रहे थे।
यहां गिरिजादेवी की स्थिति भी कुछ अलग नहीं थी। दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा। गिरिजादेवी मन में कह रही थीं,
चोर, एक चोर ! आप बारह वर्ष तक हमारे निकट रहे, परन्तु आपने हमें खबर तक न होने दी। इन सभी वर्षों में आपने हमें बहुत प्यार किया है।
नाथ खंभा पकड़कर उठ गये। उन्होंने उस घड़े को देखा, छुआ। श्रीखंड्या ने बारह वर्षों तक अपने कंधोंसे उठाई हुई कावड़ को देखा, उसे छुआ। नाथ की आँखों से आँसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। जहाँ श्रीखंड्या भोजन करने बैठते थे, जहाँ विश्राम करते थे। नाथ श्रीखंड्या ने जहां-जहां स्पर्श किया, वहां-वहां अपने हाथों से स्पर्श करने लगे।
गिरिजादेवी ने अपनी आंखों में आंसुओं के साथ सचमुच उस जमीन को भिगो दिया जहां श्रीखंड्या बैठे थे। उनका ह्रदय प्रभू के विरह से भर गया। उन्होंने आसमान की ओर देखा। और कहा,
“हे प्रभु, आप हर जगह हैं, आप आंखों में हैं, आप शरीर में हैं, आप अंदर हैं। आप हमारे घर में श्रीखण्ड्या बनकर रहते थे। हमने तुम्हें एक बेचारा साधारण पनक्या समझ लिया। हमें क्षमा करें भगवान कृष्ण! परंतु यदि यह सत्य है कि आप सचमुच पिछले 12 वर्षों से श्रीखंड्या के रूप में हमारे साथ रह रहे हैं तो श्रीखंड्या के उपलक्ष्य में प्रसाद के रूप में कुछ दे दीजिए।”
क्या आश्चर्य है! इसके साथ ही नदी मूसलाधार बहने लगी, हवा तेज़ थी। कोने में श्रीखंड्याकी लाठी जिसपर घुंघरू बांधे थे, वो उस हवा के साथ गिर गयी। घंटियाँ बज उठीं। उस घुँघुरकाठी में एक शंख बंधा हुआ था। उस शंख से केसर और कस्तूरी की सुगंध नाथ के घर में चारों ओर भर गई।
वह ब्राह्मण इस सबका साक्षी था। वह आश्चर्य एवं अविश्वास से यह देख रहा था। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी यह इच्छा भी पूरी की थी। और उसकी आंखे भी कब बहने लगी इसका उसे भी पता नही चला…
तो ऐसे है हमारे प्रभू। कोई उनकी थोड़िसी भक्ति क्यों ना करे, वे अपना सबकुछ उसपर दोनो हातोंसे लूटा देते है। जिन परमात्मा श्रीकृष्ण ने गीता में अपना असीम सामर्थ्य और ऐश्वर्य का वर्णन किया जिनकी पत्नी अनंत संपत्ति और धन धान्य की देवी है, जिनके रोम रोम में अनंत ब्रम्हांड बसते है, सार्वभौम स्वर्ग का राजा इंद्र भी नित्य जिनकी सेवा में तत्पर होता है, उन परम शक्तिशाली भगवान ने अपना वैभवशाली वैकुंठ छोड़कर अपने भक्त के छोटेसे घर में सेवक बनकर १२ सालोंतक पानी भरा।ऐसे है हमारे प्रभू धन्य धन्य है उनका भक्तप्रेम और उनसे भी धन्य है उनके परम भाग्यशाली भक्त, जो संपूर्ण विश्वके स्वामी को अपने भक्तिप्रेम से बांध लेते है।