गावहि ईसरु बरमा देवी सोहनि सदा सवारे ॥
गावहि इंद इदासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥
ईश्वर (शिव), ब्रह्मा और देवियाँ (देवी-देवता) जो सदा ही सुशोभित और शोभायमान रहते हैं, वे भी तुम्हारी स्तुति गाते हैं।
इंद्र, जो देवताओं के राजा हैं, अपने सिंहासन पर बैठे हुए, अन्य देवताओं के साथ तुम्हारी महिमा का गान करते हैं।
इस पंक्ति का गहरा विश्लेषण:
1. ईश्वर और ब्रह्मा की स्तुति:
“गावहि ईसरु बरमा देवी” का अर्थ है कि भगवान शिव (ईसर) और ब्रह्मा, जो सृष्टि के निर्माता माने जाते हैं, वे भी ईश्वर की महिमा गाते हैं। यह दर्शाता है कि वे जो खुद सृष्टि का निर्माण और पालन करते हैं, वे भी परमात्मा की महिमा में लीन रहते हैं। शिव और ब्रह्मा, जो ब्रह्मांड के प्रमुख देवता हैं, उनके लिए भी ईश्वर की स्तुति करना आवश्यक है, क्योंकि असली शक्ति ईश्वर में ही निहित है। यहाँ यह दिखाया गया है कि सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार की शक्तियाँ भी परमात्मा के अधीन हैं।
2. देवियों की सुंदरता और सजीवता:
“सोहनि सदा सवारे” का मतलब है कि देवियाँ सदा सजीव और सुंदर रहती हैं। यह पंक्ति दर्शाती है कि ईश्वर की महिमा और शक्ति की वजह से देवियाँ भी शोभायमान रहती हैं और उनका सौंदर्य हमेशा बना रहता है। यह एक रूपक है जो बताता है कि ईश्वर की उपस्थिति में हर चीज़ सजीव और सुंदर हो जाती है। ईश्वर की महिमा ही सब कुछ को प्राण देती है, चाहे वह देवियाँ हों या प्रकृति के अन्य तत्व।
3. देवताओं के राजा इंद्र की स्तुति:
“गावहि इंद इदासणि बैठे” का अर्थ है कि इंद्र, जो देवताओं के राजा हैं और अपने सिंहासन पर विराजमान हैं, वे भी ईश्वर की महिमा गाते हैं। इंद्र का यहाँ प्रतीकात्मक रूप से उपयोग किया गया है ताकि यह दिखाया जा सके कि वह जो देवताओं का राजा है और सभी देवताओं पर शासन करता है, वह भी ईश्वर की स्तुति में लीन रहता है। इंद्र के साथ बैठे अन्य देवता भी ईश्वर की महिमा का गान करते हैं। इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, ईश्वर की स्तुति से परे नहीं है।
4. सभी देवता ईश्वर की महिमा में लीन:
“देवतिआ दरि नाले” का अर्थ है कि देवता भी ईश्वर के दरबार में बैठकर उनकी महिमा गाते हैं। यह दर्शाता है कि चाहे कितने भी बड़े देवता या शक्तियाँ क्यों न हों, वे भी ईश्वर के सामने नतमस्तक रहते हैं और उनकी स्तुति गाते हैं। ईश्वर का दरबार सभी के लिए सर्वोच्च है, और वहाँ सभी देवताओं की उपस्थिति यह दर्शाती है कि ईश्वर से ऊपर कोई नहीं है।
5. सर्वोच्च ईश्वर:
यह पंक्ति हमें सिखाती है कि ईश्वर की महिमा को देवता, देवी-देवता, और यहाँ तक कि ब्रह्मा और शिव जैसे प्रमुख देवता भी गाते हैं। इससे पता चलता है कि ईश्वर सर्वश्रेष्ठ हैं और उनके बिना कोई भी महत्ता या शक्ति नहीं है। यहाँ यह बताने की कोशिश की गई है कि सृष्टि के सभी तत्व, चाहे वे कितने भी शक्तिशाली हों, ईश्वर की कृपा पर निर्भर हैं।
6. भक्ति की व्यापकता:
इस शबद से यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति और स्तुति केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि देवता, देवी, और सभी शक्तियाँ भी ईश्वर की महिमा का गान करते हैं। इसका मतलब यह है कि हम चाहे कितने भी उच्च स्थान पर क्यों न पहुँच जाएँ, हमें हमेशा ईश्वर की स्तुति और उनकी महिमा को याद रखना चाहिए।
सारांश:
“गावहि ईसरु बरमा देवी सोहनि सदा सवारे ॥
गावहि इंद इदासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥” का संदेश यह है कि भगवान शिव, ब्रह्मा, और सभी देवता, जो सृष्टि के शक्तिशाली प्रतीक हैं, वे भी ईश्वर की महिमा गाते हैं। देवताओं के राजा इंद्र और अन्य देवता भी ईश्वर की स्तुति में लीन रहते हैं। यह पंक्ति इस तथ्य पर जोर देती है कि ईश्वर ही सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हैं, और सृष्टि के सभी प्राणी और शक्तियाँ उनकी स्तुति करने के लिए बाध्य हैं।