चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरमु हदूरि…

चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरमु हदूरि ॥
करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूरि ॥

 

अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा धर्म के न्यायालय में रखा जाता है।
हर व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार ईश्वर के समीप या दूर होता है।

गहरा विश्लेषण:

  1. कर्मों का हिसाब और न्याय: “चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरमु हदूरि” का भावार्थ यह है कि हमारे जीवन में किए गए अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब एक दिव्य न्यायालय में होता है। “धरमु” से तात्पर्य उस परम शक्ति से है जो निष्पक्षता और न्याय का प्रतीक है। हमारे कर्मों का लेखा-जोखा उसी के समक्ष प्रस्तुत होता है, और वह न्याय के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों का फल देता है।
  2. कर्मों के आधार पर दूरी या निकटता: “करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूरि” का अर्थ है कि हमारे कर्म ही हमें ईश्वर के करीब या दूर ले जाते हैं। अच्छे कर्म हमें आध्यात्मिक निकटता की ओर बढ़ाते हैं, जबकि बुरे कर्म हमें परमात्मा से दूर कर देते हैं। यह विचार हमें सिखाता है कि हमारी प्रत्येक क्रिया का प्रभाव हमारे आत्मिक विकास और हमारे ईश्वर से संबंध पर पड़ता है।
  3. जीवन में कर्म का महत्व: इन पंक्तियों में यह सन्देश है कि मनुष्य को अपने कर्मों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि वही उसे ईश्वर के समीप या दूर ले जाते हैं। यह केवल बाहरी कार्य नहीं, बल्कि हमारे विचार, इरादे और व्यवहार भी इसमें सम्मिलित हैं। जीवन में धर्म की सार्थकता और कर्म की जिम्मेदारी को समझने का यह एक महत्वपूर्ण संदेश है।

संदेश:

इस शबद का मुख्य संदेश यह है कि हमारे कर्मों का फल हमें ईश्वर से निकटता या दूरी के रूप में मिलता है। हमें सिखाया गया है कि ईश्वर के न्यायालय में सभी कर्मों का लेखा-जोखा होता है और प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों के अनुरूप फल पाता है। यह दृष्टिकोण हमें सच्चाई और न्याय के पथ पर चलने और अच्छे कर्मों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है।

सारांश:

“चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरमु हदूरि” से लेकर “करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूरि” तक का संदेश यह है कि हमारे कर्म ही हमें ईश्वर के समीप या दूर करते हैं, और धर्म के न्यायालय में हमारे कर्मों का निष्पक्ष मूल्यांकन होता है। यह दृष्टिकोण जीवन में अच्छे कार्यों को अपनाने और आत्मिक विकास की दिशा में प्रेरित करता है।

Scroll to Top