May 2024

तुमरी सरन तुम्हारी आसा

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तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले
तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले 5x
तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले
तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले
तुम दाते ठाकुर प्रतपाले
नायक खसम हमारे
निमख निमख तुमहि प्रतपालो
हम बारीक तुमरे धारे
तुम्ही सजन सोहेले 5x
तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले
जिह्वा इक कवन गुन कहिऐ
बेशुमार बेअंत स्वामी तेरो तेरो तेरो तेरो अंत न किन ही लहिये
तेरो तेरो तेरो अंत न किन ही लहियै न किन ही लहियै
जिह्वा इक कवन गुन कहिऐ
बेशुमार बेअंत स्वामी तेरो अंत न किन ही लहिये
तुम्ही सजन सोहेले 5x
तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले
तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले
कोट पराध हमारे खंडोह
अनिक बिधी समझाओं
हम अज्ञान्त अनध मत थोड़ी 2x
तुम आपन बिरद रखाहो
तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले
राखो राखन हार दयाला 3x
नानक घर के बोले
तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले
राखो राखन हार दयाला
नानक घर के बोले
तुम्ही सजन सोहेले 5x
तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले
तुमरी सरन तुम्हारी आसा
तुम्ही सजन सोहेले
तुम्ही सजन सोहेले4x

चोर

नह किछु जनमै नह किछु मरै ॥
आपन चलितु आप ही करै ॥

हम कई बार अपना सुख दुसरो के अंदर ढूंढते रहते हैं, पर ऐसा करने से हमें सुख नहीं मिलता है, अगर हम दुसरो में अपना सुख देखने के बजाय खुद अपने आप में देखे, अपने खुद के गिरेबान में झांके तो हमें सुख अवश्य मिलता है।

एक समय की बात है, एक यात्री एक ट्रेन में सफर कर रहा था। उसके साथ एक पोटली थी जिसमें कीमती हीरे रखे गए थे। उस यात्री को दो दिन और दो रात ट्रेन में गुजारने थे। उस यात्री को इतना सारा सफर करके कही पहुंचना था।

सफर के पहले ही दिन एक चोर की नजर उस यात्री के हीरो की पोटली पर पड़ गयी। अब चोर ने दिमाग लगाया और एक बड़ा सा बैग लेकर उसे यात्री के पास जाकर बैठ गया, और उस यात्री से मीठी-मीठी बातें करने लगा।

चोर ने सोचा की रात में जब सब सो जाएंगे, तो मैं चुपके से उठकर उन हीरे को चुरा लूंगा। ये सब सोचकर वो चोर बहुत खुश होने लगा।

जब शाम का वक्त हुआ 6 या 7 बज रहे थे, तब चोर सो गया, क्योकि उसे रात में जागना था और हीरे चुराने थे, इसलिए ही वो जल्दी से सो जाता है।

जब उस यात्री का सोने का वक्त आया तो उसने चुपके से अपने हीरो की पोटली अपने बैग में से निकाल कर, उसके पास जो आदमी सोया था यानि की जो चोर था उसके बैग में डाल दी। यह सब करने के बाद वह यात्री आराम से सो गया।

रात के जब दो-तीन बज रहे थे, तब वो चोर उठा और उसने देखा सब लोग सो गए हैं। फिर उसने, उस यात्री के बैग को अपनी तरफ खींचा और उस बैग को पूरा अच्छी तरह से जाँचा पर उसे उस बैग में कुछ नहीं मिला।

चोर परेशान हो गया, लेकिन पूरी रात जाँच करने के बावजूद भी उसे कुछ नहीं मिला। तब उसने देखा कि सुबह के 4 बज रहे थे, तब वह फिर से सो गया।

उसके सोने के बाद वह यात्री उठा, उसने अपने हीरो की पोटली उस चोर के बैग से निकालकर अपने बैग में वापस रख दी।

जब सुबह हुई और वो चोर सो कर उठा, तो उसने देखा कि हीरो की पोटली तो उस यात्री के पास ही है, उसे लगा कि मेने रात में कुछ गड़बड़ कि है। शायद उस यात्री के बैग को अच्छे से चेक नहीं किया। उसने फिर से Plan बनाया, कि इस रात बैग को अच्छे से जाँच करेगा।

चोर फिर से शाम होती ही 7 बजे जल्दी से सो गया और उस यात्री ने फिर से अपने हीरो की पोटली को अपने बैग से निकाल कर, उस चोर के बैग में डाल दी।

चोर रात में फिर से उठा, उस यात्री के बैग को खिंचा, फिर से ढूंढने लगा, लेकिन इस बार भी चोर को हीरे नहीं मिले।

वह परेशान होकर फिर से सो गया। वह यात्री सुबह के 5 बजे उठा अपने हीरो की पोटली को चोर की बैग से निकाल कर, अपने बैग में वापस डाल दिया।

जब सुबह हुई स्टेशन आया वह यात्री स्टेशन पर उतरा, तो चोर उसके पास आकर कहने लगा, मैं जिंदगी में कभी भी चोरी नहीं करूंगा, बस मुझे इतना बता दो की हीरो की पोटली आपने कहाँ रखी थी?

उस यात्री ने कहा अरे मूर्ख! तू अपना सुख दूसरों की तरफ ढूंढ रहा था अगर तू खुद के अंदर देखता तो तुझे सुख जरूर मिलता। अगर तू अपने गिरेबान में झांकता, तो तुझे पता चलता कि तू चोर नहीं, बल्कि तू तो मालिक था। वो हीरो की पोटली तेरे ही पास थी!

हम भी इस चोर की तरह कई बार हमारा सुख दूसरों की तरफ ढूंढ रहे होते है, और ऐसा करने से हमें कुछ नहीं मिलता है। अगर हम दुसरो की तरफ देखने के बजाय अपने खुद के अंदर झांके तो हमें कभी ही किसी भी चीज़ की कमी महसूस नहीं होगी।

गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे

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गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे 2x

मैं मूरख की केतक बात है, मैं मूरख की केतक बात है
कोट अपराधे तर्या रे

गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे 2x

कोट ब्रह्मांड को ठाकुर स्वामी, सरब जीय का दाता रे 2x
प्रतपाले नित सार संभाले, इक गुण नहिं मूरख जाता रे, इक गुण नहिं मूरख जाता रे, इक गुण नहिं मूरख जाता रे

गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे 2x

मैं मूर्ख की केतक बात है, मैं मूर्ख की केतक बात है कोट अपराधी तर्या रे, कोट अपराधी तर्या रे
गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे 2x

हर आराध न जाना रे हर हर गुरु गुर करता रे
हर आराध न जाना रे हर हर गुरु गुरु करता रे
हर जियो नाम पढयो रामदास 2x

गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे2x
मैं मूरख की केतक बात है, मैं मूरख की केतक बात है ,कोट अपराधी तर्या रे , कोट अपराधी तर्या रे
गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे2x

दीन दयाल किरपाल सुख सागर, सरब घटा भरपूरि रे2x
पेखत सुनत सदा है संगे, मैं मूरख जान्या दूरी रे, मैं मूरख जान्या दूरी रे, मैं मूरख जान्या दूरी रे

गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे 2x
मैं मूरख की केतक बात है, मैं मूरख की केतक बात है ,कोट अपराधी तर्या रे , कोट अपराधी तर्या रे
गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे 2x

हर बेअंत हौं नित कर वर्नो क्या जाना होए कैसो रे, क्या जाना होए कैसो रे, क्या जाना क्या जाना होए कैसो रे
हर बेअंत हौं नित कर वर्नो, क्या जाना होए
करो बेनती सतगुरु अपने, मैं मूरख देहो उपदेसो रे, मैं मूरख देहो उपदेसो रे

गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे 2x
मैं मूरख की केतक बात है, मैं मूरख की केतक बात है ,कोट अपराधी तर्या रे , कोट अपराधी तर्या रे
गुरु नानक जिन सुनिया पेखिया, से फिर गरबास न परिया रे 2x

कोई जन हर सियो देवे जोर , देवे जोर

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Hindi Lyrics

कोई जन हर सियो देवे जोर , देवे जोर 3x
चरण गहो बको शुभ रसना दीजे प्रान अकोर 2x
कोई जन हर सियो देवे जोर , देवे जोर 2x
मन तन निर्मल करत कियारो
हर सींचे सुधा संजोर
मन तन निर्मल करत कियारो
हर सींचे सुधा संजोर
इया रस मैं मगन होत किरपा
ते महा बिखिया ते तोर , महा बिखिया ते तोर , महा बिखिया ते तोर
कोई जन हर सियो देवे जोर , देवे जोर 2x
आयो सरन दीन दुःख भजन
चीतवो तुमरी ओर
आयो सरन दीन दुःख भजन
आयो आयो आयो सरन दीन दुःख भजन
चीतवो तुमरी ओर 2x
आयो सरन दीन दुःख भजन
अभै पद दान सिमरन सुवामी को प्रभ ननक बंदन छोर प्रभ ननक बंदन छोर प्रभ ननक बंदन छोर 2x
कोई जन हर सियो देवे जोर , देवे जोर 2x
चरण गहो बको शुभ रसना दीजे प्रान अकोर 2x
कोई जन हर सियो देवे जोर , देवे जोर 4x

अतीत

करन करावन करनैहारु ॥ इस कै हाथि कहा बीचारु ॥
जैसी द्रिसटि करे तैसा होइ ॥ आपे आपि आपि प्रभु सोइ ॥

 

बहुत सारे लोग अपनी अतीत की बुरी यादे वर्तमान में भी याद रखके हमेंशा उदास ही रहते है और जीना ही छोड़ देते है ।

एक दिन अध्यापक क्लास में पढ़ा रहे थे । क्लास में सभी छात्र अच्छे से रूचि के साथ उनका Lecture सुन रहे थे । अध्यापक जो भी सवाल पूछते थे सभी छात्र जवाब दे रहे थे । किन्तु उन सभी छात्रों के बिच में एक ऐसा भी छात्र था जो गुमसुम बैठा रहता था ।

अध्यापक ने पहले भी उस छात्र को Notice किया था । 4-5 दिन तक ऐसा ही चलता रहा । सारे बच्चे बड़ी रूचि के साथ पढ़ रहे थे और सभी सवालों के जवाब भी उत्साह के साथ दे रहे थे लेकिन ये छात्र एकदम चुप बैठा रहता था ।

अध्यापक ने एक दिन उस छात्र को अपनी केबिन में बुलाया और उनसे पूछा की बेटा तुम हमेंशा इतने गुमसुम क्यों रहते हो ?तुम्हे कोई परेशानी है क्या ? उस छात्र ने कहा सर वो और इतना बोलते ही वो हिचकिचाने लगा और हिचकिचाते उसने कहा की मेरे अतीत में कुछ ऐसा हुआ है की जिसकी वजह से में आज भी परेशान हु ।

वो अध्यापक अच्छे थे । उन्होंने देखा की वो छात्र बात करने में हिचकिचा रहा है । उन्होंने कहा की बेटा तुम शाम को मेरे घर पर आना । छात्र ने कहा अच्छा ठीक है सर ।

शाम को जब वो छात्र उस अध्यापक के घर पर जाता है तब अध्यापक उस छात्र को अंदर बुलाकर बिठाते है । फिर वो अध्यापक अंदर Kitchen में जाते है और उस छात्र के लिए निम्बू का सरबत बनाते है । वो जान बूझकर निम्बू के सरबत में नमक ज्यादा डालते है ।

Kitchen से बहार आकर वो उस छात्र को निम्बू सरबत देते है और कहते है की ये लो बेटा तुम निम्बू सरबत पियो । वो जब सरबत पिता है तब ज्यादा नमक के कारण उसका मुँह अजीब सा हो जाता है । ये देखकर अध्यापक उसे पूछते है की क्या हुआ बेटा ? तुम्हे मेरा बनाया हुआ निम्बू का सरबत पसंद नहीं आया ?

वो बोलता है जी नहीं सर ऐसी बात नहीं है , बस निम्बू के सरबत में थोड़ा नमक ज्यादा है । ये सुनते ही अध्यापक उसे कहते है की अब तो ये सरबत बेकार हो गया । लाओ में इसे फेक देता हु । अध्यापक छात्र के हाथ में से गिलास लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाते है ।

लेकिन छात्र ने मना कर दिया और कहने लगा की थोड़ा सा नमक ज्यादा है इसे फेकने की कोई जरुरत नहीं है , बस थोड़ी चीनी और मिलायेगे तो इसका स्वाद अच्छा हो जायेगा ।

छात्र के मुँह से ये बात सुनकर अध्यापक खुश हो जाते है और उसे कहते है की में भी तुम्हे यही कहना चाहता हु । ये निम्बू सरबत तुम्हारी जिंदगी है और इसमें अधिक नमक तुम्हारे अतीत की बुरी यादे है ।

जैसे ही हम इस नमक को निम्बू के सरबत में से बहार नहीं निकाल सकते है , वैसे ही तुम तुम्हारे अतीत की बुरी यादो को अपने जीवन में से नहीं निकाल सकते हो ।

लेकिन जिस तरह हम चीनी डालकर सरबत का स्वाद बदल सकते है , वैसे ही तुम अपनी अतीत की बुरी यादो को भूलने के लिए अपने जीवन में मिठास दाल सकते हो ।

में चाहता हु की तुम अपने अतीत के बुरे अनुभवों में वर्तमान की मिठास डालो और जिंदिगी को अच्छे से जिओ । अध्यापक की बाते वो अच्छे से समाज गया और उसने तैय किया की में अपने अतीत की सारी बाते भूल जाऊँगा और अपनी वर्तमान की जिंदिगी अच्छे से जीऊंगा ।

हम अक्सर अपने अतीत की बुरी यादो और अनुभवों को याद रखके परेशान होते है । अपने अतीत की वजह से हम अपना वर्तमान भी अच्छे से नहीं जी पाते है और अपना भविष्य भी खराब कर देते है ।

हमारे अतीत में जो कुछ भी हो गया है उसे हम नहीं बदल सकते है पर उसे हमेंशा याद रखकर हम अपने भविष्य को भी ख़राब करने की गलती कर देते है । बेहतर यही होता है की हम अपने अतीत को भूल जाये और अपने वर्तमान को अच्छे से जिए ।

अनंद भया मेरी माए सतगुरू मैं पाईया।

रामकली महला 3 अनंद एक ओनकार सतगुर प्रसाद ॥

अनंद भया मेरी माए सतगुरू मैं पाईया।
सतगुर त पाया सहज सेती मन वजीया वधाईया।
राग रतन परवार परीआ सबद गावण आया।
शबदो त गावहु हरि केरा मन जिनी वसाईया॥
कहै नानक अनंद होआ सतगुरू मैं पाया॥

ऐ मन मेरया तू सदा रहो हरनाल॥
हर नाल रहु तु मन मेरे दुख सभ विसारणा।
अंगीकार उह करे तेरा कारज सभ सवारणा॥
सभनाा गला समरथ स्वामी सौ क्यूँ मनहु विसारे॥
कहै नानक मन मेरे सदा रहो हरनाले॥

साचे साहबा क्या नहीं घर तेरे ॥
घर त तेरे सभ किछ है जिसदे हे सोपावे॥
सदा सिफत सलाह तेरी नाम मन वसावै॥
नाम जिन कै मन वसया वाजे सबद घनेरे॥
कहै नानक सचे साहब क्या नाहीं घर तेरै॥

साचा नाम मेरा आधारे॥
साच नाम अधार मेरा जिन भुखा सभ गवाईया॥
कर शांत सुख मन आए वसया जिन इच्छा सभ पुजाया॥
सदा कुरबान किता गुरू विटहु जिस दिया एही वडिआईया।
कहै नानक सुनहो संतहो सबद धरहु प्यारे॥

साचा नाम मेरा आधारो॥
वाजे पंच सबद तितु घर सभारै॥
घर सभारै सबद वाजे कलाजित घर धारया॥
पंचदूत तूध वस किते काल कंटक मारयाा॥
धुर करम पाया तुध जिन कउ सिनाम हर कै लागे।
कहै नानक तह मुख होआ तित घर अनहद वाजे॥

अनंद सुनहु वडभागिहो सगल मनोरथ पूरे॥
पारब्रहम प्रभ पाया उतरे सगल विसुरे॥
दुख रोग संताप उतरे सुणी सच्ची वाणी॥
संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी॥
सुणते पूणित कहते पवित सतगुरू रहया भरपूरे॥
बिणवंत नानक गुर चरण लागै वाजे अनहद तूरे॥

श्लोक
पवन गुरू पानी पिता माता धरत महत, दिवस रात दुई दाई दया॥
खेले सकल जगत
चंगी आइया बुरी-आइया, वाजे धरम हदूर॥
कर्मी आपो आपनी के ने डे के दूर॥
जिनी नाम धिआइया, गेय मसकत घाल॥
नानक तय मुख उजले, केती छूटी नाल॥

वाहेगुरु , जिनी नाम धिआइया, गेय मसकत घाल॥
नानक तय मुख उजले, केती छूटी नाल॥

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