सो दरु केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले…

सो दरु केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥
वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥
केते राग परी सिउ कहीअनि केते गावणहारे ॥

 

वह दरवाज़ा (ईश्वर का दर) कैसा है और वह घर कैसा है, जहाँ बैठकर वह सबकी देखभाल करता है?
वहाँ अनगिनत अनहद नाद (ध्वनियाँ) बजती हैं, और इन ध्वनियों को पैदा करने वाले असंख्य हैं।
बहुत से राग और सुर हैं, जिन्हें असंख्य संगीतकार गा रहे हैं।

इस पंक्ति का गहरा विश्लेषण:

1. ईश्वर का घर और दरवाजा कैसा है?

“सो दरु केहा सो घरु केहा” का अर्थ है, “वह दर और घर कैसा है, जहाँ ईश्वर विराजमान हैं और सबकी देखभाल करते हैं?” गुरुजी यहाँ उस आध्यात्मिक स्थिति की बात कर रहे हैं जहाँ ईश्वर निवास करते हैं। यह सवाल प्रतीकात्मक है और ईश्वर की उपस्थिति और उनकी असीम शक्ति की ओर इशारा करता है। हम इस पंक्ति से जान सकते हैं कि ईश्वर के घर या दर तक पहुँचने के लिए हमें खुद को आध्यात्मिक रूप से तैयार करना होगा, क्योंकि वह स्थान केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभूति का स्थान है।

2. अनहद नाद और दिव्य संगीत

“वाजे नाद अनेक असंखा” का मतलब है कि वहाँ अनगिनत दिव्य ध्वनियाँ बज रही हैं। यह “अनहद नाद” की ओर संकेत करता है, जो आत्मिक संगीत है जिसे केवल ध्यान और गहन साधना में ही सुना जा सकता है। इस पंक्ति का गहरा आध्यात्मिक अर्थ यह है कि जब कोई व्यक्ति ईश्वर की उपस्थिति में होता है, तो वह इस दिव्य संगीत को सुनता है, जो आत्मिक आनंद और शांति की ओर ले जाता है। यह ध्वनियाँ भौतिक कानों से नहीं, बल्कि आत्मा के अनुभव से सुनी जाती हैं।

3. अनगिनत रचनाएँ और सुर

“केते राग परी सिउ कहीअनि” का अर्थ है कि वहाँ अनगिनत राग और सुर हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर की महिमा का वर्णन करने के लिए असंख्य संगीत और सुर हैं। हर राग और सुर ईश्वर की महिमा को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होते हैं, लेकिन फिर भी उनकी महिमा का पूर्ण वर्णन नहीं हो सकता। यह इस बात पर जोर देता है कि ईश्वर की महिमा को समझने और व्यक्त करने के लिए हम जो भी प्रयास करें, वह अपर्याप्त हैं।

4. असंख्य गायक

“केते गावणहारे” का मतलब है कि असंख्य गायक ईश्वर की महिमा गा रहे हैं। यह दर्शाता है कि संसार में हर प्राणी, हर जीवात्मा, चाहे वह इंसान हो, देवता हो, या कोई अन्य जीव हो, ईश्वर की स्तुति कर रहे हैं। चाहे वह किसी भी रूप में हो, हर कोई किसी न किसी तरह से ईश्वर की आराधना कर रहा है। यह विचार कि हर प्राणी, हर जीवात्मा अपनी-अपनी भाषा, सुर और तरीके से ईश्वर की प्रशंसा कर रहा है, इस बात की पुष्टि करता है कि ईश्वर की महिमा असीम और सर्वव्यापी है।

5. संगीत और भक्ति का गहरा संबंध

यह शबद संगीत और भक्ति के गहरे संबंध को भी दर्शाता है। गुरबाणी में संगीत का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि संगीत ईश्वर की ओर ध्यान केंद्रित करने और आत्मिक शांति प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। “राग” और “गावणहारे” यहाँ प्रतीकात्मक रूप से यह दर्शाते हैं कि भक्ति और भजन ईश्वर तक पहुँचने के साधन हैं।

6. आध्यात्मिक अनुभव का वर्णन

यह शबद ईश्वर के दिव्य दर (उसकी उपस्थिति) का वर्णन करता है, जहाँ आत्मा को अनहद नाद सुनाई देती हैं और दिव्य संगीत का अनुभव होता है। यह हमें इस बात की याद दिलाता है कि सच्ची भक्ति और ध्यान के माध्यम से हम भी उस आध्यात्मिक स्थान तक पहुँच सकते हैं, जहाँ ईश्वर का साक्षात्कार होता है और उसकी असीम महिमा का अनुभव होता है।

इस प्रकार, “सो दरु केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥
वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥
केते राग परी सिउ कहीअनि केते गावणहारे ॥”
यह शबद हमें यह सिखाता है कि ईश्वर का घर वह आध्यात्मिक स्थिति है जहाँ दिव्य संगीत बज रहा है और अनगिनत राग और गायक उसकी महिमा गा रहे हैं। यह पंक्तियाँ हमें भक्ति, समर्पण, और ध्यान के महत्व का अनुभव करने और ईश्वर की असीम महिमा को समझने की प्रेरणा देती हैं।

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