सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले…

सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥
होरि केते गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ वीचारे ॥

वही तेरा गुणगान करते हैं, जो तेरी इच्छा में रत हैं, जो तेरे भक्त हैं और प्रेम रस में लीन हैं।
अन्य बहुत से लोग भी तेरा गुणगान करते हैं, परंतु वे मेरे मन में नहीं आते। नानक कहते हैं, मैं क्या सोचूं या विचार करूं?

गहरा विश्लेषण:

1. ईश्वर की इच्छा में रत भक्त:

“सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले” का अर्थ है कि वे ही लोग सच्चे तौर पर ईश्वर का गुणगान करते हैं, जो उनकी इच्छा में पूरी तरह से लीन हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि जो भक्त सच्चे दिल से और ईश्वर के प्रति प्रेम में डूबे हुए हैं, वे ही उनके वास्तविक भजन गा सकते हैं। उनकी भक्ति ईश्वर की इच्छा के अनुसार होती है, और उनके हृदय में केवल ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण होता है।

2. सच्चे भक्तों का प्रेम रस:

“तेरे भगत रसाले” का अर्थ है कि तेरे भक्त प्रेम रस में डूबे हुए हैं। यहाँ “रस” का अर्थ प्रेम, आनंद, और ईश्वर के प्रति लगाव से है। जो भक्त ईश्वर के प्रति सच्चे प्रेम और भक्ति से जुड़े होते हैं, उनके हृदय में ईश्वर के प्रति एक गहरा प्रेम और आनंद होता है। उनकी भक्ति एक मीठे प्रेम रस की तरह होती है, जिसमें वे ईश्वर की महिमा का गान करते हैं।

3. अन्य लोगों द्वारा गान:

“होरि केते गावनि” का अर्थ है कि और भी बहुत से लोग ईश्वर की महिमा गाते हैं। इस पंक्ति से यह बात स्पष्ट होती है कि दुनिया में बहुत से लोग ईश्वर के नाम का जाप करते हैं, उनकी स्तुति करते हैं, लेकिन उनकी भक्ति सच्ची हो, यह जरूरी नहीं है। केवल भौतिक रूप से या दिखावे के लिए किया गया भजन ईश्वर तक नहीं पहुँचता, क्योंकि वह सच्चे दिल से नहीं होता।

4. सच्ची भक्ति और दिखावे की भक्ति का अंतर:

“से मै चिति न आवनि” का अर्थ है कि नानक के मन में उन लोगों की भक्ति नहीं आती, जो केवल बाहरी दिखावे के लिए ईश्वर का गुणगान करते हैं। यहाँ गुरु नानकजी यह संदेश दे रहे हैं कि केवल वही भक्त सच्चे माने जाते हैं, जो हृदय से ईश्वर में लीन होते हैं। अन्य लोग, जो केवल औपचारिकता निभाते हैं या दिखावे के लिए भक्ति करते हैं, उनकी भक्ति सच्ची नहीं होती और वह ईश्वर के प्रेम में नहीं होती।

5. नानक की विनम्रता:

“नानकु किआ वीचारे” का अर्थ है कि नानक विनम्रतापूर्वक कहते हैं, “मैं क्या सोच सकता हूँ, मैं क्या विचार कर सकता हूँ?”। यहाँ गुरु नानकजी अपनी विनम्रता व्यक्त कर रहे हैं और यह कह रहे हैं कि सच्ची भक्ति को परखने की शक्ति उनके पास नहीं है, यह तो केवल ईश्वर ही जान सकते हैं। नानकजी अपने आप को एक सामान्य भक्त के रूप में देखते हैं, जो ईश्वर के सच्चे भक्तों की तरह भक्ति करने की कोशिश करते हैं।

6. भक्ति में ईश्वर की इच्छा का महत्व:

इस शबद का प्रमुख संदेश यह है कि सच्ची भक्ति वही है, जो ईश्वर की इच्छा के अनुसार हो। जो भक्त ईश्वर की इच्छा में रत होते हैं, वे सच्चे होते हैं, क्योंकि वे दिखावे के लिए नहीं बल्कि सच्चे प्रेम और समर्पण के साथ भक्ति करते हैं। नानकजी इस पंक्ति में यही समझा रहे हैं कि भले ही बहुत लोग ईश्वर का नाम लेते हैं, लेकिन सच्ची भक्ति केवल वही होती है, जो हृदय से और ईश्वर के प्रेम में डूबकर की जाती है।

सारांश:

“सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥
होरि केते गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ वीचारे ॥”
का संदेश यह है कि सच्चे भक्त वही हैं, जो ईश्वर की इच्छा में लीन होकर, प्रेम के रस में डूबकर उनकी स्तुति करते हैं। अन्य लोग भी भजन करते हैं, लेकिन उनकी भक्ति नानक के मन में नहीं आती, क्योंकि वह सच्चे प्रेम और समर्पण से रहित होती है। नानकजी कहते हैं कि सच्ची भक्ति की पहचान केवल ईश्वर ही कर सकते हैं, और वे खुद को एक विनम्र भक्त मानते हैं।

 

 

Scroll to Top