ततु बिचारु यहै मथुरा जग तारन कउ अवतारु बनायउ ॥
जप्यउ जिन्ह अरजुन देव गुरू फिरि संकट जोनि गरभ न आयउ ॥
एक दिन की बात है, जब मैं अपने ऑफिस से थका हुआ घर लौटा। रास्ते में कुछ छोटे-छोटे कुत्ते के बच्चे हर रोज की तरह मेरे पीछे-पीछे दौड़ते हुए आ रहे थे। इन बच्चों से मेरी जान-पहचान कुछ ही दिनों पहले हुई थी, जब मैंने पहली बार उन्हें रास्ते में बिस्किट खिलाए थे। तब से ये छोटे जीव हर शाम मुझे देखते ही मेरे पीछे दौड़ते आते, मानो मेरे लौटने का इंतजार कर रहे हों।
उस दिन काम से बहुत थका हुआ था और ध्यान ही नहीं रहा कि बिस्किट खत्म हो चुके थे। रात भी गहरी हो चुकी थी और आस-पास की दुकानें भी बंद हो चुकी थीं। जैसे ही मैं अपने घर के दरवाजे तक पहुंचा, मैंने देखा कि उन छोटे कुत्तों में से कुछ बच्चे अब भी मेरे साथ आए थे। उनकी आंखों में एक मासूम-सी उम्मीद थी कि मैं उन्हें बिस्किट खिलाऊं, जैसे रोज खिलाता था। मुझे खेद महसूस हुआ, लेकिन उस समय मैं कुछ नहीं कर सकता था।
मैंने दरवाजा खोला और अंदर चला गया, सोचा कि शायद कल उन्हें कुछ अच्छा खिलाने का वादा कर पाऊंगा। लेकिन जब मैंने एक बार दरवाजा बंद किया और मुड़कर देखा, तो उन कुत्तों में से केवल एक ही कुत्ता का बच्चा बाहर खड़ा रहा। बाकी सभी अपने-अपने रास्ते जा चुके थे। यह छोटा बच्चा अपने नन्हे पंजों पर धीरे-धीरे आगे-पीछे टहलता रहा, मानो उसे यकीन हो कि मैं बाहर आऊंगा और उसे कुछ दूंगा।
उस मासूम के इस भरोसे ने मुझे कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। एक गहरी अनुभूति मन में जागी – ये छोटा कुत्ता बिना किसी उम्मीद के, बिना किसी स्वार्थ के, केवल भरोसे और स्नेह से मेरे साथ खड़ा था। उसे पता था कि शायद उसे आज बिस्किट नहीं मिलेंगे, लेकिन फिर भी उसने मेरा साथ नहीं छोड़ा। उसकी मासूमियत में मुझे एक गहरा संदेश मिला।
असल में यह छोटे कुत्ते का बच्चा मुझे समझा रहा था कि विश्वास और निष्ठा का अर्थ क्या होता है। हमारे जीवन में भी कुछ ऐसा ही होता है। जब तक हमें भगवान से सबकुछ मिलता रहता है, हम उनकी पूजा-अर्चना में लगे रहते हैं, उनको धन्यवाद देते हैं। लेकिन जैसे ही कोई कठिनाई आती है या हमारी उम्मीदें पूरी नहीं होतीं, हम उनका साथ छोड़ देते हैं, उनकी याद से दूर हो जाते हैं। हमारी आस्था डगमगाने लगती है।
उस नन्हे जीव ने मेरी ओर टकटकी बांधे देखा और धीरे-धीरे पूंछ हिलाई, मानो मुझे सांत्वना दे रहा हो कि वह यहां है और उसे मेरा इंतजार करने में कोई आपत्ति नहीं। मैंने दरवाजा खोला और बाहर आकर उसे प्यार से सहलाया। भले ही उस रात उसके लिए बिस्किट न था, लेकिन उसकी निष्ठा ने मेरे दिल में एक खास जगह बना ली थी। मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा और मन में संकल्प लिया कि अगले दिन उसे कुछ अच्छा खिलाने का वादा पूरा करूंगा।
उस छोटे कुत्ते ने मुझे यह सिखाया कि सच्ची निष्ठा वह होती है, जो बिना शर्त और बिना किसी अपेक्षा के साथ बनी रहे। जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, चाहे कैसी भी परिस्थितियां हों, जिस तरह वह छोटा-सा जीव मेरे साथ खड़ा रहा, उसी तरह हमें भी अपने विश्वास को, अपने आराध्य के प्रति प्रेम को बनाए रखना चाहिए।
हमारे जीवन में भी भगवान कई रूपों में हमारे साथ होते हैं। जब तक वह हमें सबकुछ देते रहते हैं, तब तक हम उनके प्रति कृतज्ञ रहते हैं। लेकिन जैसे ही हमें कुछ कम मिलता है, हम उनसे शिकायत करने लगते हैं या उनकी पूजा छोड़ देते हैं। परन्तु सच्चा भक्त वही है, जो अंत तक अपने आराध्य में आस्था बनाए रखता है, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों।
अगले दिन जब मैं ऑफिस से लौटा, तो मेरी जेब में कुत्तों के लिए विशेष रूप से खरीदे हुए बिस्किट थे। जैसे ही वह छोटा कुत्ता मुझे देखता, खुशी से उछलने लगा। मैंने उसके आगे बिस्किट रखे, और वह खुशी-खुशी खाने लगा। उस मासूम के चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान थी, और मेरा दिल भी उस छोटे-से जीव की निष्ठा को देखकर भर आया।
उस दिन के बाद से मेरी दृष्टि में भगवान का आशीर्वाद सिर्फ भौतिक चीजों तक सीमित नहीं रह गया। मुझे महसूस हुआ कि उनके साथ हमारा रिश्ता भी इसी मासूम और निःस्वार्थ भावनाओं पर आधारित होना चाहिए। जिस तरह वह छोटा कुत्ता बिना किसी अपेक्षा के, बिना किसी शर्त के मेरे पास रहा, वैसे ही हमें भी अपने ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, सच्ची भक्ति और अटूट आस्था बनाए रखनी चाहिए।
आखिर में, वह नन्हा कुत्ता सिर्फ एक जीव नहीं था, बल्कि एक अनमोल शिक्षा देने वाला गुरु बन गया। उसने मुझे दिखाया कि सच्चा प्रेम, सच्ची निष्ठा और सच्चा समर्पण कैसे बिना किसी अपेक्षा के होता है।