मन अपुने ते बुरा मिटाना ॥ पेखै सगल स्रिसटि साजना ॥
सूख दूख जन सम द्रिसटेता ॥ नानक पाप पुंन नही लेपा ॥
विनम्रता से आप किसी के भी सामने जीत सकते हो। कुछ लोग ऊँची मंजिल हासिल कर लेने के बाद अपने अहंकार की वजह से फिर से निचे आ जाते है।
एक बार नदी ने समुद्र से अहंकार से कहा की बताओ पानी के प्रचंड वेग से में तुम्हारे लिए क्या बहा कर लाउ? तुम चाहो तो में पहाड़ , मकान , पेड़ , पशु, मानव आदि सभी को जड़ से उखाड़कर ला सकती हु।
समुद्र समज गया की नदी को अहंकार आ गया है। उसने कहा यदि मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो तो थोड़ी सी घास उखाड़कर लेकर आना। समुद्र की बात सुनकर नदी हंसी और कहा बस इतनी सी बात अभी आपकी सेवा में हाजिर कर देती हु।
नदी ने अपने पानी का प्रचंड प्रवाह घास उखाड़ने के लिए लगाया। किन्तु घास नहीं उखड़ी। नदी ने हार नहीं मानी और वह बार – बार अपने वेग से प्रयत्न करती रही किन्तु वह घास को उखाड़ने में सक्षम नहीं रही।
नदी को सफलता नहीं मिली और थकी हारी निराश नदी समुद्र के पास पहोची और अपना शिर झुकाकर कहने लगी में मकान, पेड़ , पहाड़ , पशु , मानव आदि बहाकर ला सकती हु किन्तु घास उखाड़कर नहीं ला सकी, क्योकि जब भी मेने प्रचंड वेग से घास पर प्रहार किया तो घास ने झुककर अपने आप को बचा लिया और में ऊपर से खाली हाथ निकल आयी।
नदी की बात सुनकर समुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा जो कठोर है , अड़ियल है और अहंकारी है , वे आसानी से उखड जाते है। लेकिन जिसने घास जैसी विनम्रता सिख ली हो उसे प्रचंड वेग भी नष्ट नहीं कर सकता।
जो परिस्थिति के अनुसार आसानी से अपने आप को ढाल लेता है वह टूटता नहीं है और विनम्रता से आप सभी से जित सकता है। ऊँची से ऊँची मंजिल हासिल कर लेने के बाद भी अहंकार से दूर रहकर विनम्र बने रहना चाहिए।
कई बार इंसान जब किसी ऊँचे स्थान पर पहुंच जाता है उसके बाद वह सभी के साथ अहंकार से बर्तता है। लेकिन ऐसा करने से उसे नहीं पता की वो भी एक न एक दिन मकान, पेड़ , पहाड़ , पशु , मानव आदि की तरह नष्ट हो ही जाएगा। जिसके पास घास जैसी विनम्रता हो वही आसानी से अपने आप को बचा सकता है। इसलिए हमें हमेशा विनम्र बने रहना चाहिए।