गुर प्रसादि आपन आपु सुझै ॥
तिस की जानहु त्रिसना बुझै ॥
व्यक्ति के अच्छे विचार ही व्यक्ति को महान बनाते है। इस दुनिया में खुद के भले के लिए तो सब काम करते है किन्तु जो दुसरो के भले के लिए काम करे और दुसरो के लिए जिए वो महान होता है।
एक दिन एक महान विद्वान से मिलने के लिए एक राजा आये थे। राजा ने उस विद्वान से पूछा की क्या इस दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति है जो बहुत महान हो लेकिन उसे दुनिया वाले नहीं जानते हो?
विद्वान ने राजा से विनम्र भाव से मुस्कुराते हुए कहा – हम दुनिया के ज्यादातर महान लोगो को नहीं जानते है। दुनिया में ऐसे कई लोग है जो महान लोगो से भी कई ज्यादा महान है।
राजा ने विद्वान से कहा, ऐसा कैसे संभव है? विद्वान ने कहा – मैं आपको ऐसे कई व्यक्तियों से मिलवाऊंगा। विद्वान राजा को लेकर एक गांव की ओर चल पड़े। रास्ते में कुछ दुरी पर पेड़ के नीचे एक बूढ़ा आदमी उनको मिला। उस बूढ़े आदमी के पास पानी का एक घड़ा और कुछ रोटियां थी।
विद्वान और राजा ने उससे मांगकर रोटी खाई और पानी पिया। जब राजा उस बूढ़े आदमी को रोटी के दाम देने लगा तो वह आदमी बोला, महोदय मैं कोई दुकानदार नहीं हू। मैं बस वही कर रहा हू जो मैं इस उम्र में करने योग्य हू।
विद्वान ने राजा को इशारा करते हुए कहा कि देखो राजन, इस बूढ़े आदमी कि इतनी अच्छी सोच ही इसे महान बनाती है। फिर दोनों ने गांव में प्रवेश किया, वहा पर उन्हें एक स्कूल नजर आया। स्कूल में उन दोनों कि मुलाक़ात एक शिक्षक से हुई।
राजा ने उससे पूछा कि आप इतने सारे छात्रों को पढ़ाते हो तो फिर आपको कितनी तनख्वाह मिलती है? उस शिक्षक ने राजा से कहा कि महाराज मैं तनख्वाह के लिए नहीं पढ़ा रहा हू। यहाँ पर कोई शिक्षक नहीं था और विद्यार्थियों का भविष्य दाव पर था, इस कारण मैं उन्हें मुफ्त में शिक्षा देने आ रहा हू।
विद्वान ने राजा से कहा कि महाराज दुसरो के लिए जीनेवाले बहुत ही महान होते है। विद्वान की बात राजा अच्छे से समझ गए की वास्तव में महान लोग कैसे होते है।