भउ खला अगनि तप ताउ ॥
भांडा भाउ अम्रितु तितु ढालि ॥ घड़ीऐ सबदु सची टकसाल ॥
भय को भट्टी बनाओ और प्रेम के पात्र में अमृत भर दो।
सच्चे शबद (गुरु के वचनों) की टकसाल में इसे ढालो।
गहरा विश्लेषण:
- भय को भट्टी बनाना: “भउ खला अगनि तप ताउ” का अर्थ है कि ईश्वर का भय (भक्ति भाव में रहने का डर) अपने भीतर अग्नि (भट्टी) की तरह बना लो। यह भय अहंकार और सांसारिक मोह के पिघलने की प्रक्रिया का प्रतीक है। जैसे भट्टी में धातुओं को तपाकर शुद्ध किया जाता है, वैसे ही इस भय से हमारे मन की अशुद्धियाँ दूर होती हैं और हमें ईश्वर के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
- प्रेम का पात्र और अमृत: “भांडा भाउ अम्रितु तितु ढालि” का अर्थ है कि प्रेम के पात्र में अमृत (ईश्वरीय प्रेम) को ढालना। यह प्रेम, मन को निर्मल और पवित्र बनाने का माध्यम है, और अमृत का प्रतीक है, जो हमें अमरता का अनुभव कराता है। ईश्वर के प्रति प्रेम से भरा हुआ यह मन रूपी पात्र हमारे जीवन में आनंद और शांति का संचार करता है।
- सच्चे शबद की टकसाल में ढलना: “घड़ीऐ सबदु सची टकसाल” का अर्थ है कि सच्चे शबद की टकसाल में खुद को ढालो। टकसाल वह जगह होती है जहाँ धातुओं को ढालकर सिक्के बनाए जाते हैं। इसी तरह, गुरु के शबद (वचन) में ढलकर हमें एक पवित्र और सच्चे व्यक्तित्व में बदलने का प्रयास करना चाहिए। यह सच्चा व्यक्तित्व वही है जो आत्मा के भीतर स्थायित्व और स्थिरता लाता है और हमें परमात्मा की ओर ले जाता है।
संदेश:
यह पंक्ति एक आत्मिक यात्रा की प्रक्रिया को दर्शाती है जिसमें हमें भक्ति भाव में रहकर अपने भीतर प्रेम और श्रद्धा का अमृत भरना है और गुरु के वचनों से ढलकर एक सत्य और सुंदर व्यक्ति बनना है। यह हमें अपने आंतरिक परिवर्तन के माध्यम से ईश्वर से जोड़ने का मार्ग दिखाता है।
सारांश:
“भउ खला अगनि तप ताउ” से लेकर “घड़ीऐ सबदु सची टकसाल” तक का संदेश है कि परमात्मा के प्रति भय, प्रेम, और गुरु के वचनों का अनुसरण हमें एक शुद्ध और सच्चे व्यक्तित्व की ओर ले जाता है। यह प्रक्रिया हमें अहंकार और इच्छाओं से मुक्त कर परमात्मा की ओर उन्मुख करती है।