मिथिआ नाही रसना परस ॥
मन महि प्रीति निरंजन दरस ॥
एक सेठ ट्रेन से उतरे….. उनके पास कुछ सामान था आसपास नजर दौडाई तो उन्हें एक मजदूर दिखाई दिया
सेठ ने उसे बुलाकर कहा- अमुक स्थान तक इस सामान को ले जाने के कितने पैसे लोगे….
आपकी मर्जी जो देना हो दे देना…
लेकिन मेरी शर्त है कि जब मैं सामान लेकर चलूँ तो रास्ते में या तो मेरी सुनना या आप सुनाना…
अब उस मजदूर के अलावा कोई दूसरा वहां था नही सो सेठ ने मजबूरी में हां कर दिया
सेठ का घर स्टेशन से लगभग 500 मीटर की दूरी पर था
मजदूर सामान उठा कर सेठ के साथ चल दिया और बोला- सेठजी, आप कुछ सुनाओगे या मैं सुनाऊँ…
सेठ ने कह दिया कि तू ही सुना…
मजदूर ने खुश होकर कहा- जो कुछ मैं बोलू, उसे ध्यान से सुनना। मजदूर पूरे रास्ते बोलता गया और दोनों मकान तक पहुँच गये…
मजदूर ने बरामदे में सामान रख दिया …
सेठ ने जो पैसे दिये, ले लिये और सेठ से बोला- सेठजी, मेरी बात आपने ध्यान से सुनी या नही…
सेठ ने कहा- मैने तेरी बात नहीं सुनी…. मुझे तो अपना काम निकालना था…
मजदूर बोला- सेठजी….आपने जीवन की बहुत बड़ी गलती कर दी। कल ठीक सात बजे आपकी मौत होने वाली है…
सेठ को गुस्सा आया और बोले: तेरी बकवास बहुत सुन ली। अब जा रहा है या तेरी पिटाई करूँ…
मजदूर बोला: मारो या छोड़ो, कल शाम को आपकी मौत होनी है। अब भी मेरी बात ध्यान से सुन लो।
अब सेठ थोड़ा गम्भीर हुआ और बोला: सभी को मरना है। अगर मेरी मौत कल शाम होनी है तो होगी, इसमें मैं क्या कर सकता हूँ!
मजदूर बोला: तभी तो कह रहा हूँ कि अब भी मेरी बात ध्यान से सुन लो।
सेठ बोला: सुना, ध्यान देकर सुनुँगा।
मरने के बाद आप ऊपर जाओगे तो आपसे यह पूछा जायेगा कि हे मनुष्य! पहले पाप का फल भोगेगा या पुण्य का? क्योंकि मनुष्य अपने जीवन में पाप-पुण्य दोनों ही करता है। तब आप कहना कि पाप का फल भुगतने को तैयार हूँ लेकिन पुण्य का फल आँखों से देखना चाहता हूँ।
इतना कहकर मजदूर चला गया।दूसरे दिन ठीक सात बजे सेठ की मौत हो गयी।
सेठ ऊपर पहुँचा तो यमराज ने प्रश्न किया कि पहले पाप का फल भोगना चाहता है कि पुण्य का।सेठ ने मजदूर के बताये अनुसार कहा- पाप का फल भुगतने को तैयार हूँ, लेकिन जो भी जीवन में मैंने पुण्य किया हो, उसका फल आंखों से देखना चाहता हूँ।
यमराज बोले- हमारे यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यहाँ तो दोनों के फल भुगतवाए जाते हैं।
सेठ ने कहा कि फिर मुझसे पूछा क्यों? अब पूछा है तो उसे पूरा करो। धरती पर तो अन्याय होते देखा है,पर यहाँ पर भी अन्याय है।
यमराज ने सोचा कि बात तो यह सही कह रहा है। इससे पूछकर बड़े बुरे फंसे। मेरे पास कोई ऐसी व्यवस्था ही नहीं है जिससे इस जीव की इच्छा पूरी हो जाय।
विवश होकर यमराज उस सेठ को ब्रह्मा जी के पास ले गये और पूरी बात बतायी।
ब्रह्मा जी को भी सेठ की इच्छा पूरी करने का कोई उपाय नहीं सूझा।
ब्रह्मा जी विवश होकर यमराज और सेठ को साथ लेकर भगवानबके पास पहुँचे और समस्या बतायी।
भगवान ने यमराज और ब्रह्मा से कहा: जाइये, अपना-अपना काम देखिये। दोनों चले गये।
भगवान ने सेठ से कहा- अब बोलो, तुम क्या कहना चाहते हो!
सेठ बोला- अजी साहब, मैं तो शुरु से एक ही बात कह रहा हूँ कि पाप का फल भुगतने को तैयार हूँ लेकिन पुण्य का फल आँखों से देखना चाहता हूँ।
भगवान बोले- धन्य है वह तेरा सद्गुरु (मजदूर) जिसने तेरे अंतिम समय में तेरा कल्याण करा दिया!
अरे मूर्ख! उसके बताये उपाय के कारण ही तू मेरे सामने खड़ा है। अपनी आँखों से इससे और बड़ा पुण्य का फल क्या देखना चाहता है। मेरे दर्शन से तेरे सभी पाप भस्मीभूत हो गये।
इसीलिए बचपन से हमें सिखाया जाता है कि बड़ों की बात ध्यान से सुनो। पता नहीं कौन सी बात जीवन में कब काम आ जाये!