पाठशाला

काम क्रोध अरु लोभ मोह बिनसि जाइ अहमेव ॥
नानक प्रभ सरणागती करि प्रसादु गुरदेव ॥१॥

 

वेणुगोपाल सर कक्षा में आये। उन्होंने गृह कार्य चेक करने के लिए एक लड़के को… सभी बच्चों की कॉपियां इकट्ठा करने का आदेश दिया। दो तीन लड़के कॉपी लेकर नहीं आए थे, उन्हें मुर्गा बना दिया गया। कुछ लड़के उन्हें मुर्गा बना देखकर मुंह छुपा कर हंसने लगे तो कुछ इशारों से बात करने लगे। वेणुगोपाल सर ने दो-तीन कॉपियां ही जांची थी कि नरेंद्र की कॉपी उनके सामने आ गई। कॉफी जांचते हुए वह मुस्कुरा उठे। नरेंद्र उनके चेहरे पर आते जाते भाव से कुछ-कुछ अंदाजा लगाने की कोशिश करता है।

“नरेंद्र, खड़े हो जाओ।” भारी भरकम आवाज सुनकर सभी का ध्यान उस बच्चे की ओर चला गया।

“संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी कौन सी है?”

“सर, वाशिंगटन।”

“बिल्कुल गलत। अगर तुम्हें नहीं आता था तो पिताजी से पूछ लेते, पुस्तक में देख लेते। जो मन में आया वही लिख दिया।” अध्यापक गुस्से में बोल उठे।

“पर मुझे उत्तर पता है तो फिर किसी से क्यों पूंछूं?” नरेंद्र ने आराम से उत्तर दिया।

वेणुगोपाल जी उग्र स्वभाव वाले अध्यापक हैं। पलट कर कोई जवाब दे, यह उनके लिए असहनीय है। एकदम चीख कर बोले- “अमेरिका की राजधानी न्यूयॉर्क है। एक तो गलत जवाब लिखते हो, ऊपर से बहस।”

नरेंद्र को पूरा विश्वास है कि उसने गलत नहीं लिखा। फिर भला वह चुप क्यों रहे।

“नहीं गुरु जी। यह गलत है। न्यूयॉर्क नहीं, वाशिंगटन ही अमेरिका की राजधानी है।”

इस बार वेणुगोपाल की आग बबूला हो गए।

“एक तो गलती ऊपर से सीना-जोरी। अध्यापक के सामने जबान चलाते हो। तुम्हारी इतनी हिम्मत?” कक्षा के लड़के सकते में आ गए। लगा अब नरेंद्र की खैर नहीं। अब चांटा पड़ा कि तब? नरेंद्र बिना डरे बोला-
“यदि मैं आपकी बात मान भी लूं तो भी अमेरिका की राजधानी तो वही रहेगी। बदल तो नहीं जाएगी ना?”

अब तो सहन करना मुश्किल हो उठा। वेणु गोपाल जी ने मेज पर पड़ी अपनी छड़ी उठाई और कहा- “हाथ आगे बढ़ाओ।”

नरेंद्र ने पहली बार में हाथ आगे कर दिया। सर्र, सर्र, सर्र.. चार पाँच बेंत जोर-जोर से नन्ही हथेली पर पड़े।

“अब बताओ, संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी कौन-सी है?”

“अभी भी वाशिंगटन ही है।”
नरेंद्र ने अपनी कलाई पर काबू पाते हुए कहा।
वेणुगोपाल जी चौंक उठे। अभी तक ऐसा नहीं हुआ। न जाने कितने शरारती और बदतमीज लड़कों की अकल ठिकाने लगाई है। आज कुछ गड़बड़ लग रही है। क्या वे सचमुच गलत है? सत्य मनुष्य को ताकत देता है। वे कुर्सी पर बैठ गए और पुस्तक के पन्ने पलटने लगे। उन्हें अपने प्रश्न का जवाब मिल गया। भूल उन्हीं की ही थी। उन्होंने नजर उठाकर नरेंद्र को देखा और मुस्करा उठे।

“नरेंद्र मुझे खुशी है कि तुम सत्य पर टिके रहे। तुम्हारी इसी दृढ़ता के कारण मेरी भूल में सुधार हुआ। यही सत्य तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत बनेगा, शक्ति बनेगा।”
ना तो वेणुगोपाल सर के मन में कोई अपराध भाव रहा और ना ही नरेंद्र के मन में अपने गुरु जी के प्रति रोष। यही बालक बड़ा होकर स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सत्य पर अटल विश्वास एवं तर्कशक्ति के बल पर ही संसार में नाम कमाया। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। प्रत्येक वर्ष स्वामी विवेकानंद की जयंती पर देश के युवाओं को प्रेरित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय युवा दिवस (Yuva Diwas) मनाया जाता है। अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से प्रेरित होकर उन्होंने वेदों का प्रचार किया। उन्होंने भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी धर्म के सही स्वरूप का प्रचार-प्रसार किया। भारत देश के प्रति उनके मन में भक्ति भाव था।
मात्र 39 साल की उम्र में 04 जुलाई 1902 को इनकी मृत्यु हुई।
विवेकानन्द स्मारक शिला (Vivekananda Rock Memorial) भारत के तमिलनाडु के कन्याकुमारी में समुद्र में स्थित एक स्मारक है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन गया है। यह भूमि तट से लगभग 500 मीटर अन्दर समुद्र में स्थित दो चट्टानों में से एक के ऊपर निर्मित किया गया है।
एकनाथ रानडे ने विवेकानंद शिला पर विवेकानंद स्मारक मन्दिर बनाने में विशेष कार्य किया। एकनाथ रानडे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह थे। दो सितंबर 1970 को विवेकानंद शिला स्मारक बन कर पूरा हुआ था।

स्वामी जी के अनमोल विचार

– संगति आप को ऊंचा उठा भी सकती है और यह आप की ऊंचाई से गिरा भी सकती है। …

– उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।

– तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। …

– सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे हम सब कुछ वापस पा सकते हैं।

– बहुत सी कमियों के बाद भी हम खुद से प्रेम करते हैं, तो दूसरों में एक कमी से कैसे घृणा कर सकते हैं?

Scroll to Top