परमात्मा

रामा मै साधू चरन धुवीजै ॥
किलबिख दहन होहि खिन अंतरि मेरे ठाकुर किरपा कीजै ॥

एक बार एक राजा नगर भ्रमण को गया, रास्ते में देखा एक छोटा बच्चा माटी के खिलौनों को कान में कुछ कहता फिर तोड कर माटी में मिला रहा है।

राजा ने अचरज से पूछा- ‘तुम ये सब क्या कर रहे हो ?’

बच्चे ने जवाब दिया- ‘मैं इन से पूछता हूँ, कभी राम नाम जपा?

ये नही बोलते तो माटी को माटी में मिला देता हूँ।’

राजा ने सोचा इतना छोटा सा बच्चा इतनी ज्ञान की बात।

राजा ने बच्चे से पूछा- ‘तुम मेरे साथ मेरे राजमहल में रहोगे ?’

बच्चे ने कहा- ‘जरुर रहूंगा, पर मेरी चार शर्त हैं-

जब मैं सोऊं, तुम्हे जागना पड़ेगा।

जब मैं भोजन करूँगा तुम्हें भूखा रहना पड़ेगा,

मैं कपड़े पहनूंगा मगर तुम्हें नग्न रहना पड़ेगा और

जब मैं कभी मुसीबत में होऊं तो तुम्हें अपने सारे काम छोड़ कर मेरे पास आना पड़ेगा।

अगर आपको ये शर्तें मंजूर हैं तो मैं आपके राजमहल में चलने को तैयार हूँ।’

राजा ने कहा- ‘ये तो असम्भव है।’

बच्चे ने कहा- ‘राजन तो मैं उस परमात्मा का आसरा छोड़ कर आपके आसरे क्यों रहूँ,
जो खुद नग्न रह कर मुझे पहनाता है।
खुद भूखा रह कर मुझे खिलाता है।
खुद जागता है और मैं निश्चिंत सोता हूँ,
और जब मैं किसी मुश्किल में होता हूँ तो वो बिना बुलाए मेरे लिए अपने सारे काम छोड़ कर दौड़ा आता है।’

भाव केवल इतना ही है कि हम लोग सब कुछ जानते समझते हुए भी बेकार के विषय विकारों में उलझ कर परमात्मा को भुलाए बैठे हैं जो हमारी पल-पल रक्षा कर रहे हैं उस प्यारे के नाम को भूलाए बैठे हैं।

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