जेवडु भावै तेवडु होइ ॥ नानक जाणै साचा सोइ ॥
जे को आखै बोलुविगाड़ु ॥ ता लिखीऐ सिरि गावारा गावारु ॥
जितना ईश्वर को भाता है, उतना ही होता है।
नानक कहते हैं कि केवल वही सच्चा है जो ईश्वर को जानता है।
अगर कोई बेतुकी बात कहता है,
तो उसे मूर्खों का सरदार समझकर उसके सिर पर ‘मूर्ख’ लिख देना चाहिए।
इस पंक्ति का विश्लेषण:
1. ईश्वर की इच्छा ही सर्वोपरि है:
“जेवडु भावै तेवडु होइ” का अर्थ है कि जो कुछ भी होता है, वह ईश्वर की इच्छा के अनुसार ही होता है। दुनिया में जो भी घटनाएँ घटती हैं, वह सब ईश्वर की मर्ज़ी से होती हैं। यह पंक्ति हमें यह सिखाती है कि हमें ईश्वर की इच्छा को समझकर उसे स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि उसकी इच्छा ही सत्य है और जो कुछ भी होता है, उसी के अनुसार होता है।
2. सच्चा ज्ञान:
“नानक जाणै साचा सोइ” का मतलब है कि नानक कहते हैं, केवल वही व्यक्ति सच्चा ज्ञान रखता है जो ईश्वर को जानता है। ईश्वर को जानने और उनकी इच्छा को समझने वाला व्यक्ति ही सच्चे मार्ग पर होता है। यह हमें सिखाता है कि सच्चाई और सत्यता का ज्ञान केवल उस व्यक्ति को होता है, जो ईश्वर से जुड़ा हुआ है और उनके साथ एकता का अनुभव करता है।
3. अर्थहीन बातें करने वालों की निंदा:
“जे को आखै बोलुविगाड़ु” का अर्थ है कि अगर कोई बेतुकी या अनुचित बातें करता है, तो वह सही मार्ग पर नहीं है। इसका मतलब यह है कि जो लोग ईश्वर की इच्छा को नकारते हैं या जो कुछ भी अनुचित और अज्ञानता से भरी बातें करते हैं, वे अपने ही शब्दों से मूर्खता का प्रदर्शन करते हैं। यह हमें विवेकपूर्ण और ध्यानपूर्वक बोलने की सीख देता है।
4. मूर्खता की पहचान:
“ता लिखीऐ सिरि गावारा गावारु” का मतलब है कि ऐसे लोगों को मूर्खों का सरदार समझना चाहिए और उनके माथे पर ‘मूर्ख’ लिख देना चाहिए। इसका भाव यह है कि जब कोई व्यक्ति बिना समझे और बिना किसी सच्चाई के बोलता है, तो वह खुद को मूर्ख साबित करता है। नानक जी यहाँ यह सिखाते हैं कि हमें बेवकूफी से भरी बातों से दूर रहना चाहिए और सोच-समझकर ही बोलना चाहिए।
5. बोलने में जिम्मेदारी:
इस पंक्ति में गुरबाणी हमें बोलने की जिम्मेदारी और विचारशीलता का महत्व सिखाती है। हमें यह समझना चाहिए कि जो हम बोलते हैं, उसका प्रभाव केवल हमारे जीवन पर नहीं, बल्कि दूसरों पर भी पड़ता है। इसलिए, हमें हमेशा सच्चाई और विवेकपूर्ण तरीके से बात करनी चाहिए, न कि बेवकूफी से और बिना सोचे-समझे।
6. विनम्रता और समर्पण:
यह शबद हमें विनम्रता और समर्पण का महत्व भी सिखाता है। सच्चा ज्ञान वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है, जो अपने अहंकार को त्यागकर ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करता है। बेवकूफी से भरी बातें और अनुचित विचार केवल हमारे अहंकार और अज्ञानता को दर्शाते हैं, जो हमें सच्चाई से दूर ले जाते हैं।
इस प्रकार, “जेवडु भावै तेवडु होइ ॥ नानक जाणै साचा सोइ ॥
जे को आखै बोलुविगाड़ु ॥ ता लिखीऐ सिरि गावारा गावारु ॥” यह सिखाता है कि ईश्वर की इच्छा ही सर्वोपरि है, और सच्चा ज्ञान केवल उसी को होता है, जो ईश्वर की महिमा को समझता है। बेवकूफी और बिना सोचे-समझे की गई बातें हमें मूर्ख बना देती हैं, इसलिए हमें हमेशा विवेकपूर्ण और सच्चाई से भरी बातें ही कहनी चाहिए।