जिन कउ नदरि करमु तिन कार ॥ नानक नदरी नदरि निहाल ॥

जिन कउ नदरि करमु तिन कार ॥ नानक नदरी नदरि निहाल ॥

 

जिन पर ईश्वर की कृपा दृष्टि होती है, वे ही सच्चे कर्म कर पाते हैं।
हे नानक! ईश्वर की कृपा दृष्टि से ही जीव आनंदित और संतुष्ट हो सकता है।

गहरा विश्लेषण:

  1. ईश्वर की कृपा से कर्म: “जिन कउ नदरि करमु तिन कार” का अर्थ है कि जिन पर ईश्वर की कृपा दृष्टि होती है, वे ही सच्चे, नेक, और परोपकारी कर्म कर पाते हैं। ये कर्म स्वयं की इच्छा से नहीं बल्कि ईश्वरीय प्रेरणा से होते हैं, और उनके माध्यम से जीव परमात्मा की सेवा में अपने जीवन का उपयोग करता है। यह भक्ति भावना में कर्म करने का संकेत है, जिसमें अहंकार का त्याग और निःस्वार्थता होती है।
  2. कृपा दृष्टि से संतुष्टि: “नानक नदरी नदरि निहाल” का अर्थ है कि केवल ईश्वर की कृपा से ही जीवन में आनंद, संतोष और आंतरिक शांति प्राप्त की जा सकती है। कृपा दृष्टि का आशय है कि व्यक्ति को उस आत्मिक संतोष का अनुभव होता है जो सांसारिक इच्छाओं और उपलब्धियों से परे है। ईश्वर का सच्चा अनुभव प्राप्त करना तभी संभव है जब उनकी दृष्टि या अनुकंपा हो।

संदेश:

इस पंक्ति का गहरा संदेश यह है कि मानव जीवन में सच्चे कर्म और आनंद ईश्वर की कृपा से ही संभव होते हैं। हम अपने प्रयासों के बावजूद अपनी सीमाओं में बंधे रहते हैं, लेकिन जब ईश्वर कृपा करते हैं, तो हमारे जीवन में आंतरिक शांति, संतोष, और सच्चे सेवा भाव का संचार होता है। यह पंक्ति आत्म-समर्पण, भक्ति, और ईश्वर की इच्छा को सर्वोपरि मानने का आह्वान करती है।

सारांश:

“जिन कउ नदरि करमु तिन कार” से लेकर “नानक नदरी नदरि निहाल” तक का संदेश यह है कि सच्चे कर्म और आत्मिक संतोष का स्रोत ईश्वर की कृपा है। उनकी दृष्टि की कृपा से ही व्यक्ति सच्चे मार्ग पर चल पाता है और वास्तविक आनंद और संतोष का अनुभव करता है।

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