जली हुई कड़क रोटी

नामि लगे से ऊबरे बिनु नावै जम पुरि जांहि ॥
नानक बिनु नावै सुखु नही आइ गए पछुताहि ॥

 

एक शाम की बात है। माँ ने दिनभर की लम्बी थकान और ढेर सारे काम के बाद जब रात का भोजन बनाया, तो पापा के सामने एक प्लेट में सब्जी और एक जली हुई रोटी रख दी। मैं वहाँ बैठा यह देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि कोई तो इस जली रोटी पर कुछ बोलेगा। परंतु हैरानी की बात यह थी कि पापा ने बिना कुछ कहे उस जली हुई रोटी को आराम से खा लिया। कुछ देर बाद मैंने माँ को पापा से इस गलती के लिए “सॉरी” कहते सुना। और जो बात पापा ने जवाब में कही, वह मेरे दिल में हमेशा के लिए बस गई।

पापा मुस्कुराते हुए बोले, “अरे, मुझे तो जली हुई कड़क रोटी बहुत पसंद है!”

रात को जब मैं पापा के पास गया तो खुद को रोक नहीं पाया और उनसे पूछ बैठा, “क्या सच में आपको जली हुई रोटी पसंद है?”

पापा ने हल्के से हँसते हुए जवाब दिया, “तुम्हारी माँ ने आज दिनभर खूब मेहनत की, और वह सच में बहुत थकी हुई थी। और… वैसे भी, बेटा, एक जली हुई रोटी किसी का दिल नहीं दुखाती, पर कठोर शब्द या आलोचना किसी को जरूर ठेस पहुंचा सकती है।”

पापा ने कुछ देर के लिए रुककर कहा, “देखो बेटा, जिंदगी अपूर्ण चीजों और अपूर्ण लोगों से भरी हुई है। हर किसी में कुछ न कुछ कमी होती है, मुझमें भी। मैं स्वयं कोई आदर्श व्यक्ति नहीं हूँ। मैंने यह सीखा है कि हमें एक-दूसरे की गलतियों को समझना और स्वीकार करना चाहिए, उन्हें अनदेखा करना चाहिए, और सबसे बढ़कर अपने रिश्तों का सम्मान और आनंद लेना चाहिए।”

पापा की यह बात मेरे दिल को छू गई। सचमुच, जिंदगी बहुत छोटी है। इसे हर सुबह किसी दुख, पछतावे या खेद के साथ शुरू करके बर्बाद करने का कोई अर्थ नहीं। जो लोग हमारे प्रति अच्छा व्यवहार रखते हैं, उन्हें प्यार देना चाहिए, और जो ऐसा नहीं करते, उनके लिए सहानुभूति और दया का भाव रखना चाहिए।

संबंधों में छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करना, एक-दूसरे को सहारा देना और रिश्तों का सम्मान करना हमें जीवन में शांति और खुशी देता है।

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