गावहि तुहनो पउणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥
गावहि चितु गुपतु लिखि जाणहि लिखि लिखि धरमु वीचारे ॥
तुम्हारी (ईश्वर की) स्तुति वायु, जल और अग्नि भी गाते हैं, और न्याय के देवता (धर्मराज) तुम्हारे दरवाजे पर तुम्हारी महिमा गाते हैं।
चित्त और गुप्त कर्मों को जानने वाले भी तुम्हारी स्तुति करते हैं, जो लिखते हैं और लिख-लिखकर धर्म का विचार करते हैं।
इस पंक्ति का विश्लेषण:
1. प्रकृति द्वारा ईश्वर की स्तुति:
“गावहि तुहनो पउणु पाणी बैसंतरु” का अर्थ है कि हवा (पवन), पानी (जल), और अग्नि (बैसंतर) सभी ईश्वर की महिमा गाते हैं। यह पंक्ति दर्शाती है कि ईश्वर की स्तुति केवल जीवों या मनुष्यों द्वारा नहीं की जाती, बल्कि प्रकृति के हर तत्व—वायु, जल, और अग्नि—भी ईश्वर की महानता का गान करते हैं। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि ईश्वर सर्वव्यापी हैं और उनकी महिमा को प्रकृति के हर रूप से महसूस किया जा सकता है। प्रकृति का हर तत्व अपने तरीके से ईश्वर की आराधना करता है, क्योंकि वे सभी ईश्वर की रचना हैं।
2. धर्मराज की महिमा:
“गावै राजा धरमु दुआरे” का अर्थ है कि धर्मराज, जो न्याय और धर्म के प्रतीक हैं, ईश्वर की महिमा गाते हैं। धर्मराज वह हैं जो प्राणियों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं और उनके आधार पर न्याय करते हैं। यहाँ, धर्मराज को यह समझा जाता है कि वह स्वयं ईश्वर की महिमा के गान में लीन रहते हैं। यह दर्शाता है कि यहाँ तक कि न्याय के अधिष्ठाता भी ईश्वर की महिमा के गायक हैं, क्योंकि ईश्वर की सर्वव्यापकता और न्याय का अधिकार उन्हीं से प्राप्त होता है।
3. चित्त और गुप्त कर्मों का ज्ञान:
“गावहि चितु गुपतु लिखि जाणहि” का अर्थ है कि वह भी ईश्वर की स्तुति गाते हैं, जो चित्त (मन) और गुप्त (छिपे हुए) कर्मों का ज्ञान रखते हैं। इसका मतलब है कि जिन लोगों को मनुष्य के हर अच्छे और बुरे कर्मों का ज्ञान है, वे भी ईश्वर की महिमा गाते हैं। यह इस तथ्य को व्यक्त करता है कि कोई भी कर्म, चाहे वह गुप्त हो या प्रकट, ईश्वर की दृष्टि से छिपा नहीं है। हर कार्य और हर विचार ईश्वर के सामने उजागर होता है, और यह जानने वाले भी उसकी महिमा का गान करते हैं।
4. धर्म का विचार:
“लिखि लिखि धरमु वीचारे” का अर्थ है कि जो लोग कर्मों को लिखते हैं और धर्म का विचार करते हैं, वे भी ईश्वर की महिमा गाते हैं। यह उन विद्वानों और विचारकों की ओर संकेत करता है, जो धर्म के नियमों और सिद्धांतों का पालन करते हैं और उनका अध्ययन करते हैं। यह दर्शाता है कि धर्म का सच्चा अनुसरण भी ईश्वर की महिमा का गान है। धर्म के अनुसार जीवन जीने वाले, धर्म का पालन करने वाले और न्याय करने वाले सभी लोग ईश्वर की स्तुति में लगे रहते हैं।
5. ईश्वर की सर्वज्ञता:
यह पंक्ति हमें यह सिखाती है कि ईश्वर सर्वज्ञ हैं, जो हर एक विचार और कर्म से परिचित हैं। चाहे वह मन में छिपा हुआ हो या बाहरी रूप से प्रकट हुआ हो, ईश्वर को सब कुछ पता होता है। इसलिए, हमें यह समझना चाहिए कि ईश्वर की दृष्टि से कुछ भी छिपा नहीं है, और हमें अपने विचारों और कर्मों में पवित्रता और सच्चाई रखनी चाहिए।
6. प्राकृतिक और आध्यात्मिक समर्पण:
यह शबद प्रकृति और आध्यात्मिकता के गहरे संबंध को भी दर्शाता है। हर तत्व, हर जीव, हर मनुष्य और हर आत्मा ईश्वर की महिमा का गान कर रहे हैं। यह हमें सिखाता है कि हमें भी अपनी जिंदगी को धर्म और सच्चाई के मार्ग पर चलाना चाहिए, क्योंकि यही वास्तविक भक्ति और ईश्वर की स्तुति है।
सारांश:
“गावहि तुहनो पउणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥
गावहि चितु गुपतु लिखि जाणहि लिखि लिखि धरमु वीचारे ॥” का गहरा संदेश यह है कि ईश्वर की महिमा हर जीव, प्रकृति के हर तत्व, और धर्म के अनुयायियों द्वारा गाई जाती है। चाहे वह वायु, जल, अग्नि हो, या धर्मराज और विद्वान हों, सभी ईश्वर की स्तुति में लीन हैं। ईश्वर सर्वज्ञ हैं, और उनके सामने कोई कर्म या विचार छिपा नहीं है। यह हमें धर्म और सच्चाई के मार्ग पर चलने और ईश्वर की महिमा को समझने की प्रेरणा देता है।