गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले…

गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥
गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे ॥
गावहि खंड मंडल वरभंडा करि करि रखे धारे ॥

 

तेरे द्वारा उत्पन्न किए गए रत्न (कीमती गुण) और 68 तीर्थ स्थान भी तेरी महिमा गाते हैं।
वीर योद्धा, शक्तिशाली सूरमा, और चारों प्रकार की जीवन श्रेणियाँ (खाणी) भी तेरा गुणगान करती हैं।
सभी खंड (भूभाग), मंडल (ग्रह-मंडल), और सृष्टि के विशाल संसार, जो तूने रचे और स्थिर रखे हैं, वे भी तेरी महिमा गाते हैं।

इस पंक्ति का गहरा विश्लेषण:

1. रत्नों और तीर्थों द्वारा ईश्वर की स्तुति:

“गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले” का अर्थ है कि जिन रत्नों (गुणों) को ईश्वर ने उत्पन्न किया है और 68 तीर्थ स्थान, ये सब मिलकर ईश्वर की महिमा गाते हैं। यहाँ “रत्न” का अर्थ केवल भौतिक रत्नों से नहीं है, बल्कि उन गुणों, सिद्धांतों, और अनमोल तत्वों से है, जिन्हें ईश्वर ने सृष्टि में उत्पन्न किया है। 68 तीर्थ स्थान भी प्रतीक हैं, जो मानव जीवन के शुद्धिकरण के लिए जाने जाते हैं। इन तीर्थों का उद्देश्य भी ईश्वर की महिमा को बढ़ाना और उनकी दिव्यता को समझाना है।

2. वीर योद्धाओं और शक्तिशाली पुरुषों द्वारा स्तुति:

“गावहि जोध महाबल सूरा” का अर्थ है कि वीर योद्धा, जो अत्यधिक शक्तिशाली और साहसी होते हैं, वे भी ईश्वर की स्तुति गाते हैं। इस पंक्ति से यह पता चलता है कि भले ही योद्धा अपनी ताकत और वीरता के लिए जाने जाते हैं, लेकिन वे भी समझते हैं कि उनकी शक्ति और साहस का स्रोत ईश्वर ही है। उनका अस्तित्व और उनकी वीरता भी ईश्वर की महिमा का हिस्सा है। यहाँ यह सिखाया जा रहा है कि संसार के शक्तिशाली और वीर लोग भी ईश्वर की स्तुति में लीन होते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी शक्तियाँ ईश्वर की ही देन हैं।

3. चार खाणियों का वर्णन:

“गावहि खाणी चारे” का मतलब है कि सृष्टि के चार प्रकार की जीवन श्रेणियाँ, जिन्हें चार खाणियाँ कहा गया है, वे भी ईश्वर की स्तुति गाते हैं। ये चार खाणियाँ हैं:

  1. अंडज – अंड से उत्पन्न होने वाले प्राणी।
  2. जेरज – गर्भ से उत्पन्न होने वाले प्राणी।
  3. उत्भुज – धरती से उत्पन्न होने वाले प्राणी।
  4. सेतज – पसीने या नमी से उत्पन्न होने वाले प्राणी।

यह बताता है कि सृष्टि के सभी जीव-जंतु, चाहे वे किसी भी प्रकार से उत्पन्न हुए हों, वे भी ईश्वर की महिमा गाते हैं। इसका अर्थ है कि समस्त जीव-जंतु और सृष्टि में मौजूद सभी प्राणी ईश्वर की रचना हैं और वे उनकी स्तुति में लगे रहते हैं।

4. खंड, मंडल, और विश्व के विशाल ढाँचे द्वारा स्तुति:

“गावहि खंड मंडल वरभंडा” का अर्थ है कि समस्त खंड (भूमि खंड), मंडल (ग्रह-मंडल), और वरभंडा (सृष्टि के विशाल ढाँचे) जो ईश्वर ने रचे हैं और उन्हें स्थिर रखा है, वे भी ईश्वर की महिमा गाते हैं। यह पंक्ति इस बात को दर्शाती है कि संपूर्ण ब्रह्मांड, जिसमें विभिन्न ग्रह, तारे, आकाशगंगाएँ, और पृथ्वी के भूभाग शामिल हैं, वे भी ईश्वर की रचना का हिस्सा हैं और उनकी स्तुति करते हैं। यह दर्शाता है कि ईश्वर की महिमा न केवल पृथ्वी पर बल्कि पूरे ब्रह्मांड में फैली हुई है।

5. सृष्टि के स्थायित्व का महत्व:

“करि करि रखे धारे” का अर्थ है कि ईश्वर ने जो कुछ भी रचा है, उसे बनाए रखा है और उसकी स्थिरता भी उन्हीं की कृपा पर निर्भर है। यह बताता है कि सृष्टि के निर्माण के बाद भी ईश्वर ही उसे संभालते हैं और उसकी देखभाल करते हैं। चाहे वह ग्रह हों, तारे हों या जीव-जंतु, उनकी स्थिरता और अस्तित्व ईश्वर के हाथों में है। इसका गहरा संदेश यह है कि संसार की सभी चीज़ें ईश्वर की रचना हैं, और उनका अस्तित्व ईश्वर की कृपा से ही संभव है।

6. संपूर्ण सृष्टि का ईश्वर के प्रति समर्पण:

इस पंक्ति का एक महत्वपूर्ण संदेश यह है कि सृष्टि के हर कण, चाहे वह भौतिक हो या आत्मिक, चाहे वह जीव हो या निर्जीव, सब कुछ ईश्वर की महिमा का गान करता है। ईश्वर की सर्वव्यापकता और सर्वशक्तिमानता का यह वर्णन हमें बताता है कि सृष्टि की हर चीज़, चाहे वह कितनी भी महान या छोटी हो, वह ईश्वर की कृपा और उनकी शक्ति से ही चलती है।

सारांश:

“गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥
गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे ॥
गावहि खंड मंडल वरभंडा करि करि रखे धारे ॥”
का संदेश यह है कि ईश्वर द्वारा उत्पन्न किए गए रत्न (गुण) और 68 तीर्थ स्थान, वीर योद्धा, शक्तिशाली लोग, चारों प्रकार की जीवन श्रेणियाँ, सभी भूखंड, ग्रह-मंडल, और विशाल ब्रह्मांड की रचना ईश्वर की महिमा गाती है। यह पंक्ति दर्शाती है कि सृष्टि की हर छोटी-बड़ी चीज़, चाहे वह पृथ्वी पर हो या आकाश में, सभी कुछ ईश्वर के प्रति समर्पित हैं और उनकी स्तुति करते हैं।

 

 

 

 

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