गावनि पंडित पड़नि रखीसर जुगु जुगु वेदा नाले…

गावनि पंडित पड़नि रखीसर जुगु जुगु वेदा नाले ॥
गावहि मोहणीआ मनु मोहनि सुरगा मछ पइआले ॥

 

पंडित और धार्मिक विद्वान वेदों के साथ ईश्वर की स्तुति गाते हैं, वे अनंत काल से वेदों का पाठ कर रहे हैं।
मोहिनी (आकर्षक) देवियाँ, जो मन को मोह लेती हैं, स्वर्गों में और समुद्रों में ईश्वर की महिमा गाती हैं।

इस पंक्ति का गहरा विश्लेषण:

1. धार्मिक विद्वानों द्वारा ईश्वर की स्तुति:

“गावनि पंडित पड़नि रखीसर जुगु जुगु वेदा नाले” का अर्थ है कि पंडित (धार्मिक विद्वान) और ऋषि-मुनि वेदों के साथ-साथ ईश्वर की स्तुति गाते हैं। यह दर्शाता है कि वेद, जो हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन और पवित्र ग्रंथ माने जाते हैं, उन्हें सदियों से विद्वान और पंडित पढ़ते आ रहे हैं और उनके माध्यम से ईश्वर की महिमा करते रहे हैं। यहाँ यह बताने की कोशिश की गई है कि सच्चे ज्ञान और विद्वता का उद्देश्य ईश्वर की स्तुति और उनकी महिमा को समझना है।

2. वेदों की अनंत महिमा:

“जुगु जुगु वेदा नाले” का मतलब है कि वेदों का पाठ युगों-युगों से होता आ रहा है। वेद शाश्वत सत्य का प्रतीक हैं, और उनका अध्ययन और गान अनंत काल तक जारी रहेगा। वेदों के माध्यम से ईश्वर की महिमा गाई जाती है, क्योंकि वेदों में ईश्वर की महानता और सृष्टि के रहस्यों का वर्णन होता है। यह दर्शाता है कि वेद और धार्मिक ग्रंथों का मूल उद्देश्य ईश्वर की भक्ति और उनके प्रति समर्पण को बढ़ावा देना है।

3. मोहिनी देवियों द्वारा ईश्वर की स्तुति:

“गावहि मोहणीआ मनु मोहनि” का अर्थ है कि मोहिनी देवियाँ, जो मन को आकर्षित करती हैं, वे भी ईश्वर की स्तुति गाती हैं। मोहिनी देवियाँ यहाँ उन शक्तियों का प्रतीक हैं, जो संसार में लोगों को आकर्षित करती हैं। यहाँ यह दिखाया गया है कि मोहिनी देवियाँ, जो आकर्षण की प्रतीक हैं, वे भी ईश्वर की महिमा का गान करती हैं। यह इस तथ्य को दर्शाता है कि जो भी संसार में सुंदर और आकर्षक है, वह भी ईश्वर का एक अंश है और उनकी महिमा का ही विस्तार है।

4. स्वर्ग और समुद्रों में स्तुति:

“सुरगा मछ पइआले” का मतलब है कि स्वर्गों में और समुद्रों में भी ईश्वर की महिमा गाई जाती है। यह दर्शाता है कि चाहे वह स्वर्ग हो या समुद्र, हर जगह ईश्वर की स्तुति हो रही है। स्वर्ग और समुद्र, दो बिलकुल अलग-अलग स्थान, यह बताते हैं कि ईश्वर की महिमा और उनका साम्राज्य हर जगह व्याप्त है—आकाश में (स्वर्ग) और धरती के नीचे (समुद्र)। इसका गहरा अर्थ यह है कि ईश्वर की महिमा किसी एक जगह तक सीमित नहीं है, बल्कि वह पूरी सृष्टि में व्याप्त है।

5. मोहिनी शक्तियों का ईश्वर के प्रति समर्पण:

यह शबद यह भी बताता है कि संसार की मोहिनी शक्तियाँ, जो मनुष्य को भटकाने का कार्य करती हैं, वे भी अंततः ईश्वर की ही महिमा गा रही हैं। यानी, जो कुछ भी संसार में आकर्षण का कारण बनता है, उसका मूल स्रोत भी ईश्वर ही हैं। संसार के सभी आकर्षण ईश्वर के ही अंश हैं, और वे भी ईश्वर की स्तुति में लीन रहते हैं।

6. ज्ञान और मोह दोनों का समर्पण:

इस शबद का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि चाहे वह विद्वानों का ज्ञान हो या संसार की मोहिनी शक्तियाँ, दोनों ही ईश्वर के प्रति समर्पित हैं। विद्वान वेदों के ज्ञान के माध्यम से ईश्वर की महिमा गाते हैं, और मोहिनी शक्तियाँ अपने आकर्षण के बावजूद ईश्वर की स्तुति करती हैं। यह हमें यह सिखाता है कि ज्ञान और मोह दोनों का अंतिम उद्देश्य ईश्वर की भक्ति और उनके प्रति समर्पण है।

सारांश:

“गावनि पंडित पड़नि रखीसर जुगु जुगु वेदा नाले ॥
गावहि मोहणीआ मनु मोहनि सुरगा मछ पइआले ॥”
का संदेश यह है कि पंडित, धार्मिक विद्वान और ऋषि-मुनि सदियों से वेदों का पाठ करते हुए ईश्वर की महिमा गाते आ रहे हैं। साथ ही, मोहिनी देवियाँ, जो मन को आकर्षित करती हैं, वे भी स्वर्गों और समुद्रों में ईश्वर की स्तुति गाती हैं। यह पंक्ति हमें यह सिखाती है कि सच्चा ज्ञान और संसार के आकर्षण, दोनों ही ईश्वर की महिमा के गान में समर्पित हैं, क्योंकि ईश्वर ही सभी के मूल स्रोत हैं।

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