तुम मात पिता हम बारिक तेरे ॥
तुमरी क्रिपा महि सूख घनेरे ॥
कोइ न जानै तुमरा अंतु ॥
ऊचे ते ऊचा भगवंत ॥
सबको अपनी अपनी ड्यूटी मिल गयी लेकिन माटसाब का नाम आ गया रिजर्व दल में।
रिजर्व दल वालों की हालत उस फूफा जैसी होती है जिसको सम्मान चाहिए लेकिन कोई पानी तक नहीं पूछता।
इसलिए माटसाब किस्मत को दोष दे रहे थे कि इससे अच्छा तो रनिंग में ड्यूटी आ जाती तो कम से कम दिन तो काम करते करते आराम से कट जाता।
रिजर्व दल वालों को किसी कस्बे की कोई एक सरकारी बिल्डिंग में पटक दिया जाता है और वहां से जरूरत पड़ने पर उठा लिया जाता है।
तो माटसाब के ग्रुप को भी एक पुरानी तहसील बिल्डिंग में पटक दिया जहाँ सभी टीमों के मेम्बर्स ने अपना अपना कोना पकड़ लिया।
जैसे तैसे शाम हुई सभी को खाने की चिंता सताने लग गयी क्योंकि रिजर्व पार्टी को खाने पीने की सारी व्यवस्थाएं अपने स्तर पर देखनी होती है।
माटसाब भी अपने पेट भरने के जुगाड़ में किसी होटल में गए। वहाँ 280 वाली थाली ऑर्डर की.
खाना शुरू ही किया था कि अधिकारियों का कॉल आ गया। और माटसाब को ऑर्डर दिया गया कि आपको तुरंत फलाने बूथ पर अतिरिक्त मतदान अधिकारी द्वितीय के रूप में लगाया जाता है।
माटसाब जल्दी से खाना खाकर वहां पहुंचे तो उन्हें लेने जीप आई जिसमें उनके जैसे ड्यूटी लगने वाले और भी कार्मिक थे।
माटसाब को उनके बूथ पर छोड़ दिया गया जहाँ पर उन्होंने बाकी साथियों से परिचय किया और उन्हें आश्वासन दिया कि काम मे कोई कमी नहीं आएगी।
खैर रात तो जैसे तैसे गुजर गई। अगले दिन सुबह 4 बजे उठकर मतदान की तैयारियां शुरू की।
निर्धारित समय पर मतदान शुरू हो गया। माटसाब PO2 थे इसलिए उनका काम था आने वाले मतदाता की रजिस्टर में एंट्री करना।
9 बजे के आसपास भीड़ ज्यादा ही थी इसलिए माटसाब को ऊपर देखने का टाइम ही नहीं मिल रहा था।
PO1 मतदाता का निर्वाचक नामावली में नम्बर और नाम जोर से पुकारता और माटसाब बस ID मांगते और रजिस्टर में एंट्री कर देते। चूंकि टीम में 2 PO2 थे इसलिए दूसरे को पर्ची देने और स्याही लगाने का काम दे दिया।
अचानक से माटसाब के कानो में एक परिचित सा नाम सुनाई पड़ा। उन्होंने गौर नही किया और पूर्ववत अपने काम मे लगे रहे, रजिस्टर में नम्बर एंट्री की और ID के लिए हाथ आगे बढ़ाया।
उनके हाथ मे एक आधार कार्ड आया जिसको देखकर उनके हाथ रुक गए। हालांकि उन्हें केवल उसके अंतिम 4 अंक ही लिखने थे। लेकिन उनकी नजर आधार कार्ड की फोटो पर चली गयी। फिर उन्होंने नाम पढ़ा “अरुणा” और ऊपर नजर उठाकर देखा तो देखते ही रह गए। गोद मे बच्चा लिए हुए बहुत दुबली पतली सी एक औरत सामने खड़ी थी जिसके चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी।
माटसाब के मुंह से निकला अरुणा!
माटसाब ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस लड़की से कभी जीवन मे दुबारा मुलाकात होगी।
पूरे 15 साल बीत गए थे फिर भी उसने देखते ही माटसाब को पहचान लिया।
और पहचानती भी क्यो नहीं, क्योंकि कॉलेज के दिनों में अरुणा माटसाब के साथ पढ़ती थी। माटसाब की अच्छी दोस्त थी। माटसाब उसे छोटी बहन की तरह मानते थे।
एक पल के लिए समय रुक गया और माटसाब फ्लेशबैक में चले गए जब माटसाब एक स्टूडेंट थे।
माटसाब के पास एक दिन अरुणा के पापा का फोन आया, उन्हें साहिल के बारे में पता चल गया था। और इसी सिलसिले में बात करने के लिए उन्होंने माटसाब को घर बुलाया था
दरअसल अरुणा साहिल से बहुत प्यार करती थी। और उनके रिश्ते के बारे में माटसाब को भी पता था। माटसाब अरुणा को बहुत समझाते भी थे कि ये लड़का तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। क्योंकि साहिल छपरी लौंडा था, नशे भी करता था। लेकिन अरुणा का मानना था कि प्यार अंधा होता है। धीरे धीरे साहिल सुधर जाएगा।
कोई साहिल के लिए कुछ भी कहता तो अरुणा कहाँ किसी की सुनती…
माटसाब उनके घर पहुंचे वहां अरुणा और अरुणा के पापा पहले से बहस कर रहे थे।
दरअसल अरुणा के लिए एक रिश्ता आया था लड़का स्टेशन मास्टर था।
माटसाब ने अरुणा को समझाया कि अगर सच मे साहिल अच्छा लड़का होता तो मैं जरूर तुम्हारे पापा को समझाता
लेकिन वो साहिल के प्यार में इस कदर अंधी थी कि उसे किसी की बात समझ नहीं आती।
उसके पापा ने तो पगड़ी भी उसके पाँव में रख दी। खूब हाथ जोड़े लेकिन वो टस से मस नही हुई।
अब एक तरफ साहिल का प्यार था दूसरी तरफ उसके पापा की पगड़ी थी। एक तरफ साहिल की खुशी दूसरी तरफ उसके पिता के आँसू। साफ था कि उसे साहिल या पिता में से किसी एक को चुनना था।
माटसाब ने अरुणा से कहा कि तुम्हें किसी एक का चुनाव करना होगा और ये चुनाव तुम्हारा भविष्य तय करेगा।
इतना कहकर माटसाब वहां से चले गए।
उस दिन के बाद माटसाब ने कभी अरुणा को नहीं देखा। क्योंकि अरुणा ने साहिल को चुना। अरुणा के पिता ये सदमा नहीं सहन कर सके और उन्हें हार्ट अटैक आ गया।
अचानक से आवाज आई माटसाब थोड़ा जल्दी काम करो भीड़ बढ़ रही है। माटसाब की चेतना लौटी।
उन्होंने अरुणा को देखा और मुस्कुरा दिए।
अरुणा की आंखें पश्चाताप से झुक गयी।
उसे एहसास हो गया था कि उसका चुनाव गलत था।
माटसाब अपने काम मे बिजी हो गए।
शाम को पेटियां जमा कराने के लिए बस से जाते टाइम माटसाब सोचते रहे कि एक गलत चुनाव की वजह से अरुणा की जिंदगी पर क्या असर पड़ा…
इसलिए चुनाव कोई भी हो, उसमें दूरदर्शिता जरूरी है। किसी भी चुनाव से अपने भविष्य पर पड़ने वाले असर पर जरूर गौर करें। अपना कीमती वोट चाहे जिसे दे। पर वोट अवश्य करे। ओर देश ओर धर्म की उन्नति में सहभागी बने।