केते पवण पाणी वैसंतर केते कान महेस ॥
केते बरमे घाड़ति घड़ीअहि रूप रंग के वेस ॥
कितने ही पवन (हवा), जल (पानी), और अग्नि (वैसंतर) हैं।
कितने ही कर्ण (महेश) और शिव (महेस) हैं।
कितने ही ब्रह्मा (बरमे) हैं, जो विभिन्न रूपों और रंगों के आकार में बनते और ढलते रहते हैं।
गहरा विश्लेषण:
- प्रकृति के तत्वों की विशालता: “केते पवण पाणी वैसंतर” का अर्थ है कि इस संसार में अनगिनत पवन (हवा), पाणी (जल), और वैसंतर (अग्नि) हैं। यह शबद सृष्टि की विशालता और विविधता को दर्शाता है। यह बताता है कि ईश्वर ने इस सृष्टि में कितनी अद्भुत और अनंत चीजें बनाई हैं, जिनका अंत समझ पाना कठिन है।
- ईश्वर के अनगिनत रूप: “केते कान महेस” का मतलब है कि अनगिनत शिव (महेश) और कान (शिव के रूप) हैं। यह बताता है कि ईश्वर के रूप और उनके अवतार भी अनगिनत हैं। हर दिशा में हमें उनके अलग-अलग रूप और शक्तियों का अनुभव होता है।
- ब्रह्मा के अनगिनत सृजन: “केते बरमे घाड़ति घड़ीअहि रूप रंग के वेस” का अर्थ है कि अनगिनत ब्रह्मा हैं जो अनगिनत रूप, रंग, और वेष में सृष्टि का निर्माण करते हैं। यह सृष्टि की अनंतता और उसके विभिन्न रूपों को दर्शाता है। हर जीव, वस्तु और तत्व ईश्वर की रचना है, जो विभिन्न रंगों और आकारों में प्रकट होती है।
संदेश:
यह शबद हमें बताता है कि इस सृष्टि में अनंत तत्व, रूप, और शक्तियाँ हैं। ईश्वर की रचना की महत्ता और विविधता को समझ पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। पवन, पानी, अग्नि, शिव, ब्रह्मा—सभी अनगिनत रूपों में विद्यमान हैं और सृष्टि के निर्माण और संचालन में अपनी भूमिका निभाते हैं।
यह शबद हमें सिखाता है कि सृष्टि और उसके रचयिता की विशालता और विविधता को समझना हमारे लिए कठिन है। हमें इस विशाल सृष्टि और उसके रचयिता के प्रति आदर और भक्ति रखनी चाहिए।
सारांश:
“केते पवण पाणी वैसंतर” से लेकर “केते बरमे घाड़ति घड़ीअहि रूप रंग के वेस” तक का संदेश यह है कि इस सृष्टि में अनगिनत पवन, पानी, अग्नि, शिव, और ब्रह्मा हैं। सृष्टि के रूप और रंग अनंत हैं, और ईश्वर की रचना का विस्तार और विविधता अद्भुत है। ईश्वर की इस अनंतता को समझ पाना मानवीय सोच से परे है।