केते देव दानव मुनि केते केते रतन समुंद ॥
केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद ॥
केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंतु न अंतु ॥
कितने ही देवता, दानव, और मुनि (ऋषि-मुनि) हैं, और कितने ही रत्नों से भरे समुद्र हैं।
कितनी ही खाणियाँ (जीवों के जन्म स्थान), कितनी ही भाषाएँ, और कितने ही राजा (नरेश) हैं।
कितनी ही सुरतियाँ (ध्यान लगाने वाले) और सेवक हैं, नानक कहते हैं, इनका कोई अंत नहीं है।
गहरा विश्लेषण:
- देवता, दानव और मुनि: “केते देव दानव मुनि” का अर्थ है कि इस संसार में अनगिनत देवता (जो दिव्य शक्तियाँ हैं), दानव (जो बुराई और नकारात्मक शक्तियों का प्रतीक हैं), और मुनि (जो ज्ञान और ध्यान में लीन ऋषि-मुनि हैं) विद्यमान हैं। यह दर्शाता है कि सृष्टि में अच्छाई, बुराई, और ज्ञान के अनगिनत रूप हैं, जो एक संतुलन बनाए रखते हैं।
- रत्न और समुद्र: “केते रतन समुंद” का तात्पर्य यह है कि अनगिनत रत्नों से भरे समुद्र हैं, जो ईश्वर की कृपा और सृष्टि की अनंतता का प्रतीक हैं। रत्न यहाँ ज्ञान, गुण, और जीवन की विभिन्न संभावनाओं को भी दर्शा सकते हैं, जो सृष्टि के भीतर बिखरे हुए हैं।
- खाणियाँ और बाणियाँ: “केतीआ खाणी केतीआ बाणी” का मतलब है कि इस सृष्टि में अनगिनत खाणियाँ (जीवों के जन्म स्थान) हैं, जहाँ जीवन विभिन्न रूपों में प्रकट होता है। “बाणी” का अर्थ है अनगिनत भाषाएँ, शब्द, और ध्वनियाँ, जिनके माध्यम से इस संसार में संवाद और शिक्षा होती है।
- राजा और नरेश: “केते पात नरिंद” का तात्पर्य है कि इस संसार में अनगिनत राजा और नरेश हैं, जो अलग-अलग क्षेत्रों पर शासन करते हैं। यह बताता है कि सृष्टि की विविधता केवल सामान्य लोगों में ही नहीं, बल्कि शासकों और नेताओं के रूप में भी है।
- सुरतियाँ और सेवक: “केतीआ सुरती सेवक” का अर्थ है कि अनगिनत लोग हैं जो ध्यान लगाते हैं और ईश्वर की सेवा में लीन रहते हैं। ये भक्त ईश्वर के प्रति समर्पित होकर अपने जीवन का मार्ग खोजते हैं।
- अंत का अभाव: “नानक अंतु न अंतु” का मतलब है कि इस अनंत सृष्टि का कोई अंत नहीं है। नानक जी कहते हैं कि यह सृष्टि इतनी विशाल और अनगिनत रूपों में फैली हुई है कि इसका कोई अंत नहीं है। ईश्वर की रचना और उसकी महिमा अनंत है, और इसे पूरी तरह से समझना असंभव है।
संदेश:
यह शबद हमें सिखाता है कि सृष्टि में अनगिनत देवता, दानव, ऋषि, रत्न, खाणियाँ, भाषाएँ, राजा, और सेवक हैं। सृष्टि की विशालता और विविधता का कोई अंत नहीं है। यह सृष्टि अनंत है और ईश्वर की रचना की अद्भुतता को समझ पाना मानवीय क्षमता से परे है।
सारांश:
“केते देव दानव मुनि” से लेकर “नानक अंतु न अंतु” तक का संदेश यह है कि इस संसार में हर चीज़ अनगिनत और अनंत है—देवता, दानव, मुनि, रत्न, भाषाएँ, राजा, और सेवक। नानक कहते हैं कि इस सृष्टि का कोई अंत नहीं है, और इसकी महिमा को पूरी तरह समझना असंभव है। सृष्टि की विविधता और विस्तार अद्भुत है, और हमें इसे स्वीकार करते हुए ईश्वर की महिमा का गुणगान करना चाहिए।