केते आखहि आखणि पाहि ॥ केते कहि कहि उठि उठि जाहि ॥
एते कीते होरि करेहि ॥ ता आखि न सकहि केई केइ ॥
बहुत से लोग ईश्वर का वर्णन करने के लिए प्रयास करते हैं।
कई बार लोग कह-कहकर थक जाते हैं और चले जाते हैं।
अगर ईश्वर और भी अधिक गुणों की रचना करें,
तब भी कोई उनका पूरा वर्णन नहीं कर सकता।
इस पंक्ति का गहरा अर्थ:
1. ईश्वर का वर्णन एक असीम प्रयास है:
“केते आखहि आखणि पाहि” का अर्थ है कि बहुत से लोग ईश्वर का वर्णन करने का प्रयास करते हैं, और इसके लिए साधन और तरीके ढूंढते रहते हैं। यह दर्शाता है कि ईश्वर की महिमा इतनी महान है कि उसे समझने और व्यक्त करने की निरंतर कोशिश की जाती है। लेकिन, इन प्रयासों के बावजूद, ईश्वर की संपूर्णता को जान पाना संभव नहीं है।
2. व्यक्त करने की सीमाएँ:
“केते कहि कहि उठि उठि जाहि” का मतलब है कि लोग बार-बार कोशिश करते हैं, कई बातें कहते हैं, लेकिन अंततः थककर हार मान लेते हैं। इसका संदेश यह है कि हमारे शब्द और साधन सीमित हैं, और चाहे हम कितनी भी कोशिश करें, ईश्वर की महिमा का सम्पूर्ण वर्णन करना असंभव है। लोग इस प्रयास में थक जाते हैं और यह महसूस करते हैं कि उनकी कोशिशें अधूरी हैं।
3. असीम ईश्वरीय गुण:
“एते कीते होरि करेहि” का अर्थ है कि अगर ईश्वर और भी अधिक गुणों का निर्माण करें, तो भी। ईश्वर के गुण असीम हैं, और वे निरंतर अपनी रचनाओं और गुणों का विस्तार कर सकते हैं। चाहे वह कितनी भी रचनाएँ करें, उनकी महिमा की कोई सीमा नहीं है। यह दर्शाता है कि ईश्वर की अनंतता और उसकी सृष्टि की विशालता को कोई माप नहीं सकता।
4. वर्णन की असंभवता:
“ता आखि न सकहि केई केइ” का मतलब है कि तब भी कोई भी ईश्वर का पूरा वर्णन नहीं कर सकता। यह बताता है कि ईश्वर की महिमा इतनी अनंत और गहरी है कि मानव मस्तिष्क और शब्द उसके संपूर्ण वर्णन के योग्य नहीं हैं। चाहे कितने भी गुण हों, या कितनी भी कोशिशें की जाएं, ईश्वर की वास्तविकता और महिमा का सम्पूर्ण वर्णन संभव नहीं है।
5. मानव प्रयासों की सीमाएँ:
यह पंक्ति मानव प्रयासों की सीमाओं को दर्शाती है। हम अपनी ओर से पूरी कोशिश कर सकते हैं, लेकिन हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि ईश्वर की महिमा और असीमता हमारी सीमाओं से परे हैं। हमें विनम्रता के साथ यह समझना चाहिए कि ईश्वर की संपूर्णता का वर्णन करने का प्रयास असंभव है, और यह प्रयास ही हमें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद करता है।
6. आध्यात्मिक समर्पण का संदेश:
इस पंक्ति का गहरा संदेश यह है कि हमें अपनी सीमाओं को स्वीकार करना चाहिए और समर्पण की भावना विकसित करनी चाहिए। ईश्वर की महिमा को समझने और व्यक्त करने का प्रयास महत्वपूर्ण है, लेकिन अंततः हमें यह समझना होगा कि ईश्वर को पूरी तरह से जानना हमारे लिए संभव नहीं है। यह समर्पण और विनम्रता का मार्ग है, जो हमें आध्यात्मिक विकास और ईश्वर के करीब लाता है।
इस प्रकार, “केते आखहि आखणि पाहि ॥ केते कहि कहि उठि उठि जाहि ॥
एते कीते होरि करेहि ॥ ता आखि न सकहि केई केइ ॥” यह सिखाता है कि ईश्वर की महिमा का सम्पूर्ण वर्णन कोई नहीं कर सकता। चाहे लोग कितने भी प्रयास करें और कितनी भी बार कोशिश करें, ईश्वर की असीमता और उसकी महिमा शब्दों से परे हैं। हमें इसके प्रति विनम्रता और समर्पण के साथ अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति को स्वीकार करना चाहिए।