केतिआ दूख भूख सद मार ॥ एहि भि दाति तेरी दातार ॥

केतिआ दूख भूख सद मार ॥ एहि भि दाति तेरी दातार ॥

 

कितने ही कष्ट, भूख और स्थायी पीड़ा हो, फिर भी यह सभी आपकी ही दी हुई दात (भेंट) हैं, हे दातार (दाता)।

इस पंक्ति का विभिन्न जीवन संदर्भों में अर्थ:

1. कष्ट और संघर्ष के संदर्भ में:

जीवन में चाहे कितने भी दुःख और कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, हमें यह समझना चाहिए कि ये भी ईश्वर की ओर से हैं। इनसे हमें सीख मिलती है और हमारी आत्मा को मजबूत बनाया जाता है। ईश्वर ही हमारे कष्टों को दूर करने वाला है, और हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि ये भी उसकी कृपा से हैं, ताकि हम कठिनाइयों का सामना कर सकें।

2. धैर्य और सहनशीलता के संदर्भ में:

जब जीवन में भूख, तृष्णा या इच्छाएँ पूरी नहीं होती हैं और निरंतर संघर्ष करते रहना पड़ता है, तब यह समझना चाहिए कि ये भी ईश्वर की ही इच्छा है। धैर्य और सहनशीलता से इनका सामना करना चाहिए। यह स्थिति हमें आत्मिक और मानसिक रूप से दृढ़ बनाती है।

3. कृतज्ञता और समर्पण के संदर्भ में:

इस वाक्य का एक अन्य अर्थ है कि चाहे हमें दुःख मिले या सुख, हमें यह जानना चाहिए कि यह सब ईश्वर की दात (भेंट) है। इसलिए, हमें हर स्थिति में कृतज्ञ रहना चाहिए और ईश्वर के प्रति समर्पित रहना चाहिए। सुख-दुःख दोनों को ईश्वर का प्रसाद मानकर स्वीकार करना चाहिए।

4. सकारात्मक दृष्टिकोण के संदर्भ में:

यह पंक्ति सिखाती है कि हमें जीवन की सभी परिस्थितियों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए। दुःख और कष्ट भी हमें बेहतर बनाने के लिए ही आते हैं। ये जीवन के अनुभव हैं, जो हमें ईश्वर के करीब ले जाते हैं और हमारे आंतरिक विकास में सहायक होते हैं।

इसलिए, जीवन में आने वाले हर दुःख और भूख को एक दाता की कृपा मानकर, हमें धैर्य और समर्पण के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

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