करतूति पसू की मानस जाति ॥ लोक पचारा करै दिनु राति ॥
बाहरि भेख अंतरि मलु माइआ ॥ छपसि नाहि कछु करै छपाइआ ॥
अगर आप कोई काम सेवा के भाव से कर रहे हो तो आपको वो काम छोटा हो या फिर बड़ा उसे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
एक दिन महात्मा गाँधी के पास एक लड़का आया और बोला, गांधीजी मैं भी देश की सेवा करना चाहता हू। मैंने बहुत लोगो से सुना है की, देश की सेवा के लिए आपसे अच्छा माध्यम कोई और हो ही नहीं सकता है। आप कृपया मुझे भी अपने साथ काम करने का अवसर दीजिये।
गांधीजी कभी खाली नहीं बैठते थे। उन्होंने उस लड़के को देखा और बोले, ठीक है। अभी मैं चरखा चला रहा हू, तुम ये सूत इकठ्ठा कर दो। उस लड़के ने ये काम कर दिया।
वहा कुछ बर्तन भी रखे हुए थे। गांधीजी ने लड़के से कहा, ये बर्तन भी साफ़ कर दो। कुछ देर बाद गांधीजी ने आश्रम में झाड़ू लगाने का काम दे दिया।
इस तरह गांधीजी उस लड़के से छोटे-छोटे काम करवा रहे थे। ये सभी काम उस लड़के की नजर में सही नहीं थे, लेकिन वह अनमने मन से कर रहा था। उसे ये सब काम करने में बिलकुल भी मजा नहीं आ रहा था।
चार-पांच दिन के बाद उस लड़के ने गांधीजी से क्षमा मांगी और बोला, मैं अब जा रहा हू। मुझे आगे क्या करना है, इसका विचार करुगा।
गांधीजी ने उससे पूछा की तुम क्यों जा रहे हो? उस लड़के ने कहा, मैं पढ़ा-लिखा हू। अच्छे परिवार से हू। ये काम मेरे लिए सही नहीं है, जो आप मुझसे करवा रहे है।
गांधीजी बोले, मैं तुम्हारी यही परीक्षा लेना चाहता था। जिन लोगो को देश की सेवा करनी है, वे लोग ये नहीं देखते है की काम छोटा है या बड़ा है। वे सिर्फ सेवा के भाव से काम करते है।
गांधीजी को श्रीमद भगवद गीता बहुत पसंद थी। वे कहा करते थे, गीता कहने वाले श्रीकृष्ण बहुत महान और ज्ञानी थे। श्रीकृष्ण छोटे से छोटा काम भी बहुत प्रसन्न होकर करते थे।
युधिष्ठिर जब चक्रवर्ती सम्राट बने, तब श्रीकृष्ण ने उनके यहाँ लोगो के जूठे दोने-पत्तल उठाये थे। महाभारत युद्ध में वे अर्जुन के सारथी बने। जो व्यक्ति हर छोटा काम सेवा मानकर करता है, वही गीता का ज्ञान दे सकता है।
सेवा करने वाले लोगो को छोटे और बड़े काम में फर्क नहीं करना चाहिए।