जीवन का आधार

काम क्रोध का चोलड़ा सभ गलि आए पाइ ॥
इकि उपजहि इकि बिनसि जांहि हुकमे आवै जाइ ॥
जमणु मरणु न चुकई रंगु लगा दूजै भाइ ॥
बंधनि बंधि भवाईअनु करणा कछू न जाइ ॥

 

एक दिन अचानक मेरी पत्नी अंजलि मुझसे बोली, “सुनो, अगर मैं तुम्हें किसी और के साथ डिनर और फिल्म के लिए बाहर जाने को कहूँ तो तुम क्या कहोगे?”

मैंने जवाब दिया, “मैं सोचूंगा कि तुम मुझसे अब प्यार नहीं करती।”

अंजलि हँसकर बोली, “नहीं, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, लेकिन मुझे पता है कि ये एक औरत है जो तुमसे बहुत प्यार करती है, और तुम्हारे साथ कुछ समय बिताना उसके लिए एक सपने जैसा होगा।”

वह अन्य कोई और नहीं, मेरी माँ, सविता जी थीं, जो मुझसे अलग रहती थीं। मेरा ऑफिस घर से दूर था, और काम के चलते मैं अपने माता-पिता से मिल नहीं पाता था।

अंजलि की बात से प्रेरित होकर, मैंने माँ को फोन किया और उन्हें डिनर और एक फिल्म के लिए चलने का न्योता दिया।

“तुम ठीक तो हो ना? तुम्हारे और अंजलि के बीच कुछ तो नहीं हुआ?” माँ ने फिक्र से पूछा।

“नहीं, माँ, सब ठीक है। बस मैंने सोचा कि हम दोनों थोड़ा वक्त साथ बिताएं,” मैंने जवाब दिया।

“ठीक है, बेटा।” माँ ने हल्की मुस्कान के साथ हामी भरी।

जब मैं घर पहुंचा, तो माँ दरवाजे पर तैयार खड़ी थीं, उन्होंने सुंदर साड़ी पहनी थी, और उनका चेहरा खुशी से दमक रहा था।

कार में बैठते ही माँ ने कहा, “मैंने अपनी सहेलियों को बताया कि मैं अपने बेटे के साथ डिनर पर जा रही हूँ। वे सब बहुत खुश हुईं। और मैंने तुम्हारे पिताजी को भी फोन करके बताया, वह भी काफी खुश हुए।”

मुझे यह सुनकर अच्छा लगा और सोचा कि अगली बार पिताजी के साथ भी कुछ समय बिताना चाहिए।

हम माँ के पसंदीदा रेस्तरां में पहुंचे। मेन्यू देखते हुए माँ ने कहा, “जब तुम छोटे थे, तो मैं तुम्हारे लिए मेन्यू पढ़ती थी।”

मैं मुस्कुराते हुए बोला, “अब मैं आपके लिए मेन्यू पढ़ता हूँ, माँ।”

हमने ढेर सारी बातें कीं और समय कैसे बीता, हमें पता ही नहीं चला। फिल्म का समय भी निकल गया, लेकिन हमें इसका कोई अफसोस नहीं था।

वापस घर आते वक्त माँ ने कहा, “अगली बार, अगर मुझे बिल भरने दो, तो फिर से डिनर के लिए आना पड़ेगा।”

मैंने हंसकर कहा, “माँ, जब चाहो हम साथ जा सकते हैं। बिल का कोई मुद्दा नहीं है।”

घर पहुंचने पर देखा कि पिताजी वापस आ चुके थे। मैंने पिताजी से मिलकर खुशी महसूस की। घर में अंजलि ने पूछा, “कैसा रहा आपका डिनर?”

“बहुत ही अच्छा, जैसा सोचा था, उससे भी बेहतर,” मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

लेकिन कुछ ही दिनों बाद, अचानक मेरी माँ का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। यह इतनी अचानक हुआ कि मैं कुछ नहीं कर पाया। माँ के जाने के बाद पिताजी हमारे साथ रहने आ गए।

कुछ दिनों बाद, पिताजी ने मुझे एक लिफाफा दिया। उसमें माँ का एक पत्र और रेस्टोरेंट की एडवांस पेमेंट की रसीद थी। पत्र में माँ ने लिखा था:

“मेरे बेटे, मुझे नहीं पता कि मैं तुम्हारे साथ दोबारा डिनर पर जा पाऊंगी या नहीं, इसलिए मैंने दो लोगों के खाने का एडवांस पेमेंट कर दिया है। अगर मैं नहीं जा पाई, तो तुम अपनी पत्नी के साथ डिनर के लिए जरूर जाना। तुम नहीं जानते, उस रात तुम्हारे साथ बिताया हर पल मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत समय था। भगवान तुम्हें सदा खुश रखे। आई लव यू, बेटा। – माँ।”

इस पत्र को पढ़कर मेरी आँखों में आंसू आ गए। मैंने उस रात का महत्व समझा और जाना कि अपने प्रियजनों को समय देना कितना महत्वपूर्ण है। माँ के जाने के बाद, मैंने पिताजी के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना शुरू किया।

जब हम अगली बार डिनर पर गए, तो पिताजी भी हमारे साथ थे। रेस्टोरेंट में बैठे हुए उनकी आँखों में आँसू थे, और माँ की यादें ताजा हो गईं।

संदेश स्पष्ट था – जीवन में धन-दौलत, तकनीक, और काम से बढ़कर अपने परिजनों को समय देना जरूरी है। हमारे परिवार ही हमारे जीवन का आधार हैं, और जब हम उन्हें खो देते हैं, तब हमें इसका अहसास होता है।

शेयर करें जिनके बूढ़े माता-पिता हैं, या जिनके छोटे बच्चे हैं। समय कभी लौटकर नहीं आता, इसलिए इसे प्यार और खुशी से बिताइए।

 

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