कल्याणकारी झूठ

पइआ किरतु न मेटै कोइ ॥
नानक जानै सचा सोइ ॥

अगर हम झूठ किसी के अच्छे के लिए बोलते है तो वह झूठ अच्छा होता है और ऐसा झूठ बोलने से दुसरो का कल्याण ही होता है।

किसी गांव में एक संत निवास करते थे। उस गांव में संत को छोड़कर सब लोग कंजूस प्रवृति के थे। कोई किसी को कुछ नहीं देता था। संत की कुटिया एक बगीचे में थी। कोई व्यक्ति उनके पास आता तो वह उसे अपने बगीचे से फल तोड़कर खाने को देते और बकरी का दूध भी लोगो को पीने के लिए देते थे।

एक बार इस संत ने किसी से कहा की बहुत ही जल्द तुम्हे गड़ा हुआ खजाना मिलने वाला है और उसकी बात सच निकली। फिर कुछ समय के बाद संत ने किसी से कहा की तुम्हारे घर की छत आज रात को गिरने वाली है।

उस व्यक्ति ने संत की बात मान ली और घर से बाहर रहने लगा। एक बार फिरसे संत की बात सच हुई और उस व्यक्ति की छत वास्तव में अगले दिन गिर गई।

अब पुरे गांव में सभी के अंदर एक धारणा बन गई थी कि संत कि कही बात कभी गलत नहीं होती। उसी गांव में एक अनाथ आश्रम भी था, जिसमे कुछ दिनों से बिलकुल भी दान नहीं आ रहा था। वहा के बच्चे भोजन और वस्त्र के लिए तरस रहे थे।

ऐसी स्थिति में उस अनाथ आश्रम के अध्यक्ष इस संत के पास पहुंचे और उनसे विनती की और कहा – है संत महात्मन आपने आज तक जो भी कहा है वह सत्य ही हुआ है।

मै आपसे एक झूठ बोलने की प्राथना करता हु, आप बस इतना कह दे की 3 दिन बाद प्रलय होने वाला है। संत ने कहा मेरे बोलने से कुछ नहीं होने वाला , झूठ तो झूठ ही रहेगा।

इस पर व्यक्ति बोला, मै जानता हु परन्तु आपके एक झूठ से अनाथालय के बहुत सारे बच्चो को जिंदगी मिल सकती है। संत बोले मेरे झूठ बोलने से बच्चो का क्या सम्बंध?

संत ने ये भी कहा की पर अगर तुम्हे लगता है की मेरे झूठ बोलने से बच्चो को भोजन मिल सकता है तो मुझे सहर्ष स्वीकार है। दूसरे दिन संत ने किसी से कहा की तीन दिनों मे प्रलय होने वाला है। ये बात आग की तरह पुरे गांव मे फैल गई।

सभी जानते थे की संत की बात हमेशा सच होती है। किसी ने कहा की प्रलय के समय जल और थल मिल जाते है, ऐसा जानकर सभी मंदिर के प्रांगण मे एकत्र होकर प्राथना करने लगे।

एक दिन पहले ही अनाथ आश्रम का अध्यक्ष मंदिर के पुजारी से मिलकर सारी बात बता चूका था। मंदिर के पुजारी ने घोषणा की कि सबको अगर समाप्त ही होना है तो क्यों न दान – पुण्य कर ही मरे!

यह सुनकर सभी लोग अपने घर कि और दौड़े। जिसने जो पाया, अन्न, धन, पशु, वस्त्र सभी कुछ दान कर दिए। अनाथ आश्रम मे भी दान दिया। फिर तीसरा दिन आया और चला भी गया। कोई प्रलय जैसा चीज़ नहीं घटी, परन्तु दान – पुण्य से ग्रामवासियो को अद्भुत आनंद मिला, तृप्ति मिली। जिसका स्वाद वे पुरे जीवन मे नहीं चखे थे।

उस दिन के बाद वहा के लोगो मे परिवर्तन आ गया और लोगो ने अपनी कृपणता छोड़ दी। परहित चिंतन मे छिपे स्वाद को वे चख चुके थे।

Scroll to Top