आखहि ईसर आखहि सिध ॥ आखहि केते कीते बुध…

आखहि ईसर आखहि सिध ॥ आखहि केते कीते बुध ॥
आखहि दानव आखहि देव ॥ आखहि सुरि नर मुनि जन सेव ॥

 

ईश्वर का वर्णन शिव और सिद्ध करते हैं।
बहुत से ज्ञानी और बुद्धिमान उनका वर्णन करते हैं।
दानव (असुर) और देवता भी उनका वर्णन करते हैं।
देवता, मनुष्य, मुनि (संत) और सेवक भी उनका गुणगान करते हैं।

इस पंक्ति का आध्यात्मिक और व्यावहारिक अर्थ:

1. ईश्वर का वर्णन सर्वत्र होता है:

“आखहि ईसर आखहि सिध” का अर्थ है कि भगवान शिव (ईसर) और सिद्ध (जिन्होंने आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त की है) ईश्वर का वर्णन करते हैं। यह बताता है कि ईश्वर का गुणगान केवल सांसारिक लोग ही नहीं, बल्कि देवता और सिद्ध पुरुष भी करते हैं। उनकी महिमा इतनी व्यापक और गहरी है कि सर्वश्रेष्ठ आत्माएँ भी उनका ध्यान और वर्णन करती हैं।

2. बुद्धिमान और ज्ञानी भी उनका वर्णन करते हैं:

“आखहि केते कीते बुध” का मतलब है कि बहुत से बुद्धिमान और ज्ञानी लोग भी ईश्वर का वर्णन करते हैं। चाहे कोई कितना भी बुद्धिमान हो, वे भी ईश्वर की महिमा का वर्णन करने में लगे रहते हैं। यह इस बात पर जोर देता है कि ईश्वर की महिमा को समझने और व्यक्त करने के लिए केवल ज्ञान और बुद्धिमत्ता ही पर्याप्त नहीं होती, बल्कि उसके लिए समर्पण और भक्ति की आवश्यकता होती है।

3. असुर और देवता दोनों उनका वर्णन करते हैं:

“आखहि दानव आखहि देव” का अर्थ है कि दानव (असुर) और देवता भी ईश्वर का वर्णन करते हैं। यह बताता है कि ईश्वर केवल अच्छे लोगों के नहीं, बल्कि सभी के लिए हैं। असुर (जो बुरे कर्म करते हैं) और देवता (जो अच्छे कर्म करते हैं), दोनों ही ईश्वर की महिमा का वर्णन करते हैं, चाहे उनके दृष्टिकोण भिन्न हों। यह इस विचार को प्रस्तुत करता है कि ईश्वर की कृपा और महिमा किसी पर भी सीमित नहीं है; वह सभी के लिए है, चाहे वे अच्छे हों या बुरे।

4. संत, मनुष्य, और सेवक सभी उनका गुणगान करते हैं:

“आखहि सुरि नर मुनि जन सेव” का अर्थ है कि देवता, मनुष्य, मुनि (संत), और सेवक (जो भगवान की सेवा करते हैं) सभी ईश्वर का गुणगान करते हैं। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि चाहे कोई साधारण मनुष्य हो, कोई संत हो, या फिर कोई सेवक, सभी ईश्वर की महिमा में एक समान होते हैं। सभी उनके प्रति प्रेम और भक्ति के कारण उनकी आराधना और सेवा करते हैं।

5. ईश्वर की महिमा को हर कोई व्यक्त करता है:

यह पंक्ति हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की महिमा इतनी विशाल और व्यापक है कि हर वर्ग, चाहे वे देवता हों, संत हों, ज्ञानी हों, या साधारण मनुष्य, सभी उनका गुणगान करते हैं। यह गुणगान और भक्ति का सार्वभौमिक रूप दर्शाता है कि ईश्वर किसी विशेष वर्ग के लिए नहीं हैं, बल्कि वह सबके लिए हैं। ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति सबके दिलों में है, और उनकी महिमा का बखान हर कोई करता है।

6. समानता और समर्पण का संदेश:

यह शबद हमें सिखाता है कि ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण में सभी समान हैं। चाहे कोई कितना भी बड़ा ज्ञानी हो या कितनी ही साधारण आत्मा हो, ईश्वर के सामने सब एक समान हैं। केवल भक्ति, प्रेम, और समर्पण ही वह मार्ग है जिससे ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।

इस प्रकार, “आखहि ईसर आखहि सिध ॥ आखहि केते कीते बुध ॥
आखहि दानव आखहि देव ॥ आखहि सुरि नर मुनि जन सेव ॥”
यह शबद हमें यह सिखाता है कि ईश्वर की महिमा का वर्णन हर कोई करता है—चाहे वे देवता, मुनि, असुर, मनुष्य, या ज्ञानी हों। यह सार्वभौमिक भक्ति और समर्पण का संदेश देता है, जिसमें सभी को ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति में लीन होने की प्रेरणा मिलती है।

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