जह आपि रचिओ परपंचु अकारु ॥ तिहु गुण महि कीनो बिसथारु ॥
पापु पुंनु तह भई कहावत ॥ कोऊ नरक कोऊ सुरग बंछावत ॥
रिश्तों में अहंकार को समझना और संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है। जब किसी के अहंकार में संतुलन होता है, तो व्यक्ति अपनी मूल्यों और स्वभाव को समझकर अच्छे से बनाए रख सकता है। यह उसकी स्वतंत्रता और आत्म-समर्पण की भावना को बढ़ाता है, जो एक स्वस्थ रिश्ते के लिए महत्वपूर्ण हैं।
हालांकि, अगर किसी का अहंकार अधिक हो जाता है, तो यह रिश्तों को प्रभावित कर सकता है। अधिक अहंकार से उत्पन्न अवसाद, दूरी और असहमति की स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। एक व्यक्ति को अपने अहंकार को समय-समय पर समीक्षा करना और दूसरों के साथ सहयोग करना चाहिए, ताकि संबंध सुधारे जा सकें।
अहंकार का संतुलन बनाए रखना, व्यक्ति को उसके साथी के भावनाओं को समझने में मदद कर सकता है और साथ ही उसे अपने आत्मविकास में भी सहायक हो सकता है। एक संबंध में सहयोग और समर्थन में अहंकार का सही मात्रा में होना चाहिए, ताकि संबंध मजबूत और सुखी रह सके।
माफ़ी मांग लोगे तो अनजान भी आपको याद करेंगे लेकिन “अहंकार” में ही रहोगे तो अपने भी आपको भूल जायेंगे।
सभी रिश्ते टूट चुके है इस भ्रम में कि मैं सही हूँ, केवल बस मैं ही सही हूँ।
कुछ लोग अपने रिश्ते को सिर्फ इसलिए नष्ट कर देते हैं क्योंकि वे अपने अहंकार को एक तरफ रखना नहीं चाहते।
असफल और टूटे हुए रिश्तों का नंबर एक कारण अहंकार है।
अहंकार की सबसे सरल परिभाषा यह है कि यह अपने रास्ते पर आने वाली हर चीज़ को नष्ट कर देता है।
जो ये बात बोलता है कि मुझे समझने के लिए आपका समझदार होना ज़रूरी है, दरअसल वह खुद अभी नासमझ है।
उन्ही रिश्तों में जान होती है, जो “अहसानों” से नहीं बल्कि “अहसासों” से बन कर तैयार होते है।
जो लोग सोचते है कि उनके बिना दुनिया नहीं चल सकती, उन जैसे सैकड़ो लोग कब्रिस्तान में दफ़न है।
अगर रिश्तों को निभाना चाहते हो तो झुकना सीखो, क्योंकि इंसान अकड़ता तो मरने के बाद है।
अहंकार में अँधा होकर इंसान अक्सर अपनी औकात भूल जाता है या फिर उस औकात से बाहर निकल जाता है।
जिस दिन आप “हम” शब्द को छोड़ कर “मैं” का प्रयोग करने लग जाते है, वही से आपका अहंकार शुरू होने लग जाता है।
कोई भी रिश्ता कभी भी स्वाभाविक मौत नहीं मरता। इसकी हत्या हमेशा अहंकार, दृष्टिकोण और अज्ञानता द्वारा की जाती है।
माफी मांगने का मतलब हमेशा यह नहीं होता कि आप गलत हैं, इसका मतलब सिर्फ यह है कि आप अपने अहंकार से ज्यादा अपने रिश्ते को महत्व देते हैं।
अपने दिल की तसल्ली के लिए बिना किसी वजह के दूसरो का अपमान जब करते हो, दरअसल उस समय तुम अपना खुद का सम्मान खोते हो।